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Manoj Kumar: डेब्यू फिल्म में 'भिखारी' का किरदार निभाने वाले मनोज ऐसे बने 'भारत कुमार'

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 24 जुलाई, 2021 07:04 PM
  • 24 जुलाई, 2021 07:04 PM
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बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार आज अपना 84वां जन्मदिन मना रहे हैं. साल 1992 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. 'शहीद', 'वो कौन थी', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'पूरब और पश्चिम' और 'उपकार' जैसी फिल्मों में काम करने वाले मनोज कुमार की दास्तान बहुत दिलचस्प है.

'है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं; भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं'...अपनी फिल्मों के गीतों के जरिए हिंदुस्तान की दास्तान बयां करने वाले 'भारत कुमार' किसी परिचय के मोहताज नहीं है. बॉलीवुड जब रोमांस और ट्रेजडी की दो धाराओं के बीच बह रहा था, उस वक्त मनोज कुमार ने अपने लिए एक नई धारा तैयार की, वो थी देशभक्ति से ओतप्रोत प्रेम की धारा. इसमें खुद बहकर उन्होंने देश-दुनिया को असली हिंदुस्तान से परिचय कराया. उसकी ताकत बताई. लोगों के अंदर देशभक्ति का जज्बा जगाया. उनको चाहने वालों में आम से लेकर खास तक सभी हैं, जिसमें उस वक्त के सशक्त राजनेता और अपने देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी शामिल थे.

24 जुलाई, 1937 को मौजूदा पाकिस्तान के एबटाबाद में पैदा हुए मनोज कुमार आज अपना 84वां जन्मदिन मना रहे हैं. देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से दिल्ली चला आया था. यहां कुछ दिन किंग्सवे कैंप में गुजारने के बाद वे ओल्ड राजेंद्र नगर में शिफ्ट हो गए. दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से गेज्रुएशन करने के बाद उन्होंने फिल्मों में किस्मत आजमाने के बारे में सोचा. चूंकि बचपन से ही दिलीप कुमार और अशोक कुमार जैसे दिग्गज अभिनेताओं की फिल्मों देखकर वो बड़े हुए थे. उनकी तरह वो भी अभिनय करना चाहते थे. गोरे-चिट्टे और शानदार शरीर के मालिक मनोज कुमार को देखकर दूसरे लोग भी फिल्मों जाने की सलाह दिया करते थे.

फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज अभिनेता और निर्देशक मनोज कुमार आज अपना 84वां जन्मदिन मना रहे हैं.

हरिकिशन गोस्वामी से ऐसे बने मनोज कुमार

फिल्मों में जाने की चर्चा से पहले उनके नाम बदलने की दिलचस्प कहानी जान लेना भी जरूरी है. जैसा कि मनोज कुमार...

'है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं; भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं'...अपनी फिल्मों के गीतों के जरिए हिंदुस्तान की दास्तान बयां करने वाले 'भारत कुमार' किसी परिचय के मोहताज नहीं है. बॉलीवुड जब रोमांस और ट्रेजडी की दो धाराओं के बीच बह रहा था, उस वक्त मनोज कुमार ने अपने लिए एक नई धारा तैयार की, वो थी देशभक्ति से ओतप्रोत प्रेम की धारा. इसमें खुद बहकर उन्होंने देश-दुनिया को असली हिंदुस्तान से परिचय कराया. उसकी ताकत बताई. लोगों के अंदर देशभक्ति का जज्बा जगाया. उनको चाहने वालों में आम से लेकर खास तक सभी हैं, जिसमें उस वक्त के सशक्त राजनेता और अपने देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी शामिल थे.

24 जुलाई, 1937 को मौजूदा पाकिस्तान के एबटाबाद में पैदा हुए मनोज कुमार आज अपना 84वां जन्मदिन मना रहे हैं. देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से दिल्ली चला आया था. यहां कुछ दिन किंग्सवे कैंप में गुजारने के बाद वे ओल्ड राजेंद्र नगर में शिफ्ट हो गए. दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से गेज्रुएशन करने के बाद उन्होंने फिल्मों में किस्मत आजमाने के बारे में सोचा. चूंकि बचपन से ही दिलीप कुमार और अशोक कुमार जैसे दिग्गज अभिनेताओं की फिल्मों देखकर वो बड़े हुए थे. उनकी तरह वो भी अभिनय करना चाहते थे. गोरे-चिट्टे और शानदार शरीर के मालिक मनोज कुमार को देखकर दूसरे लोग भी फिल्मों जाने की सलाह दिया करते थे.

फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज अभिनेता और निर्देशक मनोज कुमार आज अपना 84वां जन्मदिन मना रहे हैं.

हरिकिशन गोस्वामी से ऐसे बने मनोज कुमार

फिल्मों में जाने की चर्चा से पहले उनके नाम बदलने की दिलचस्प कहानी जान लेना भी जरूरी है. जैसा कि मनोज कुमार फिल्मों के बहुत दीवाने थे. ऊपर से दिलीप कुमार तो उनके सबसे पसंदीदा अभिनेता हुआ करते थे. बात तब की है, जब वो 10 साल के थे. उस वक्त दिलीप कुमार की फिल्म 'शबनम' रिलीज हुई थी. इसमें उनके किरदार का नाम मनोज कुमार था. यह फिल्म और किरदार उनको इतना पसंद आया कि उन्होंने उसी वक्त फैसला कर लिया कि वो अपना नाम हरिकिशन गिरी गोस्वामी से मनोज कुमार रख लेंगे. इसके बाद हुआ भी यही, जब उन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखा तो उस वक्त उनका नाम मनोज कुमार ही था.

दिलीप कुमार के बड़े फैन हैं मनोज कुमार

मनोज कुमार कहते हैं, 'मैंने अपनी ज़िंदगी की सबसे पहली फ़िल्म दिलीप साहब की देखी थी और उनका फ़ैन हो गया था. बाद में जब फ़िल्मों में काम करने लगा तो मीडिया में कुछ लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया था कि मैं दिलीप साहब की कॉपी करता हूँ. ये बात आज भी लोग कहते हैं तो मुझे बुरा नहीं लगता. मेरी ज़िंदगी में वो दिन भी आया जब मैं निर्देशक और निर्माता बना. दिलीप साहब के साथ फिल्म क्रांति में बतौर निर्देशक और अभिनेता काम किया. एक बात मैं ज़रूर कहूंगा कि शूटिंग के दौरान उन्होंने इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं होने दिया कि तुम मेरी फ़िल्म देख अभिनेता बने हो. फ़िल्मों में आए और मुझे तेरी बात सुननी पड़ेगी और मैं उनसे कहता था दिलीप साहब ये सीन कर दीजिए. उन्होंने कभी किसी भी बात को लेकर उफ्फ तक नहीं किया. न ही किसी को कभी एहसास दिलाया कि वो दिग्गज अभिनेता हैं.'

फिल्म 'फैशन' से शुरू किया फिल्मी सफर

'शहीद', 'वो कौन थी', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'पूरब और पश्चिम' और 'उपकार' जैसी कई हिट फिल्मों में काम करने वाले मनोज कुमार ने साल 1957 में लेखराज भाकरी द्वारा निर्देशित फिल्म 'फैशन' से अपना फिल्मी सफर शुरू किया था. इस फिल्म में प्रदीप कुमार और माला सिन्हा मुख्य रोल में थे. इसमें 19 साल की उम्र में मनोज कुमार ने भिखारी का किरदार निभाया था. उन्होंने अपना किरदार इतनी दमदारी और शानदार तरीके से निभाया था कि उन्हें 90 साल के भिखारी के रोल में देखकर उनके परिजन और दोस्त भी पहचान नहीं पाए थे. एक इंटरव्यू में मनोज कुमार ने बताया था कि उनकी पत्नी शशि ने अपनी सहेलियों के साथ फिल्म 'फैशन' देखी थी. उन्हें भी काफी बाद में पता चला था कि ये उनकी पहली फिल्म थी. बहुत कम लोग जानते हैं कि लेखराज भाकरी ही मनोज कुमार को फिल्म इंडस्ट्री में लेकर आए थे.

हर जॉनर की फिल्मों में आजमाया हाथ

साल 1960 में फिल्म 'कांच की गुड़िया' में बतौर लीड एक्टर पहली बार उन्होंने काम किया. उसके बाद उनकी दो और फिल्में 'पिया मिलन की आस' और 'रेशमी रुमाल' आई, लेकिन उनकी पहली हिट फिल्म 'हरियाली और रास्ता' थी, जो साल 1962 में रिलीज हुई थी. 60 के दशक में हनीमून, अपना बनाके देखो, नकल नवाब, पत्थर के सनम, साजन और सावन की घटा जैसी रोमांटिक फिल्में, शादी, गृहस्थी, अपने हुए पराए और आदमी जैसी सामाजिक फिल्में और गुमनाम, अनीता जैसी थ्रिलर फिल्में शामिल थीं. इसके अलावा वो कौन थी और पिकनिक जैसी कॉमेडी फिल्में भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं. उनकी हिट फिल्मों में, शहीद, हरियाली और रास्ता, हिमालय की गोद में, गुमनाम, पत्थर के सनम, उपकार, क्रांति, रोटी कपड़ा और मकान, पूरब और पश्चिम जैसी फिल्में शामिल हैं, जो आज भी पसंद की जाती हैं.

लाल बहादुर शास्त्री के थे चहेते अभिनेता

मनोज कुमार के चाहने वालों में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी थे. साल 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद शास्त्री जी ने उनको 'जय जवान, जय किसान' पर एक फिल्म बनाने के लिए कहा था. इसके बाद साल 1967 में मनोज कुमार ने फिल्म उपकार बनाई थी. इसमें उन्होंने एक सैनिक और एक किसान की भूमिका निभाई थी. उन्हें फिल्म उपकार के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इतना ही नहीं उपकार को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद श्रेणी में फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था. फिल्म को द्वितीय सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ संवाद का बीएफजेए अवार्ड भी दिया गया था.

मनोज कुमार ऐसे बन गए 'भारत कुमार'

साल 1965 में रिलीज हुई फिल्म शहीद में मनोज कुमार ने लीड रोल किया था. इसके लिए वो शहीद भगत सिंह की मां से भी जाकर मिले थे. इस मुलाकात के बारे में खुद मनोज कुमार ने बताया था कि फिल्म मेकिंग के दौरान उन्होंने चंडीगढ़ में भगत सिंह की मां और भाईयों से मुलाकात की थी. इस दौरान उनकी मां अस्पताल में भर्ती थीं और वो उनसे मिले तो भावुक हो गए. उन्हें ये सौभाग्य मिला कि वो भगत सिंह की माताजी की गोद में सिर रख फूट-फूटकर रो सके थे. भगत सिंह के बाद उन्होंने कई देशभक्ति फिल्में कीं, जो सुपर हिट हुई थीं. ज्यादातर फिल्मों में उनके किरदार का नाम भारत था. इसके कारण लोग उन्हें भारत कुमार कहने लगे.

बड़े दिलवाले कलाकार हैं मनोज कुमार

मनोज कुमार जितने बड़े अभिनेता थे, उतने ही बड़े दिलवाले भी थे. लोगों की मदद करना उनकी फितरत में शामिल था. यहां तक कि जब अमिताभ बच्चन फिल्म इंडस्ट्री में असफल होने के बाद हताश-निराश होकर वापस दिल्ली जाने वाले थे, तब मनोज कुमार ने ही उनकी मदद की थी. उनको अपनी फिल्म 'रोटी, कपड़ा और मकान' में काम करने का मौका दिया था. मनोज कुमार कहते हैं, 'जब लोग अमिताभ को नाकामयाबी की वजह से ताने दे रहे थे, तब भी मुझे उन पर पूरा भरोसा था कि वो एक दिन बहुत बड़े स्टार बनेंगे.' मनोज कुमार ने इस फिल्म का निर्देशन भी किया था. उनकी फिल्म 'पूरब और पश्चिम' में काम करने के लिए दिलीप कुमार ने अपनी पत्नी सायरा बानो को मनाया. इसके बाद उन्होंने दिलीप कुमार को अपनी फिल्म 'क्रांति' में कास्ट किया था. वो दिलीप कुमार को अपना आदर्श मानते हैं.

है प्रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं...


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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