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5 फ़िल्में जिन्हें Holi के 5 बेस्ट सीक्वेंस के लिए भी याद कर सकते हैं!

    • आईचौक
    • Updated: 17 मार्च, 2022 07:15 PM
  • 17 मार्च, 2022 07:14 PM
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सिनेमा और होली का त्यौहार अलग नहीं किया जा सकता. कई फिल्मों को तो होली के सीक्वेंस ने ख़ूबसूरत बना दिया. सोचिए कि अगर इन फिल्मों में होली का सीक्वेंस नहीं होता तो फिल्म किस तरह की होती.

बॉलीवुड फिल्मों की एक बड़ी खासियत यह भी रही है कि कहानियों और उनके गानों में भारतीय संस्कृति के साथ उनकी परंपराएं और तीज-त्योहार नजर आते हैं. रोमांटिक, नायक नायिका के नोकझोंक और खुशनुमा माहौल दिखाने के लिए होली के त्योहार का खासकर खूब इस्तेमाल किया गया है. होली के रंग बॉलीवुड को कहानियां आगे बढ़ाने के लिए हमेशा लुभाते रहे हैं. फिल्मों की लिस्ट बनाई जाए तो यह बहुत लंबी-चौड़ी होगी. हालांकि दर्जनभर फ़िल्में ऐसी हैं जिनके होली सीक्वेंस ने लोगों को आकर्षित किया है. इनमें से आज पांच फिल्मों पर बातें जो बॉलीवुड और होली के सतह साथ जिक्र पर हमेशा प्रासंगिक रहेगी.

1) नवरंग

इसे वी. शांताराम ने बनाया था. वी. शांताराम के जिक्र के बिना ना तो हिंदी सिनेमा की यात्रा पूरी होगी और ना ही हिंदी सिनेमा और होली के रंग का तालमेल पता चलेगा. नवरंग साल 1959 में आई थी और इसकी गिनती भारतीय सिनेमा की श्रेष्ठ क्लासिक में की जाती है. यह फिल्म अपने अनूठे प्रस्तुतीकरण के लिए मशहूर तो है ही इसके गानों और डांस ने लोगों को हैरान ही कर दिया. पहली बार इसी फिल्म से दर्शक महेंद्र कपूर की आवाज से रूबरू हुए थे. खैर यह तो बाद की बात हुई. फिल्म के एक होली सीक्वेंस ने लोगों का जबरदस्त ध्यान खींचा.

असल में नवरंग का नायक एक कवि है. गांववाले होली के त्यौहार के दौरान उससे एक ऐसे गाने की उम्मीद में हैं जिसे सुनकर ना सिर्फ गांव वाले होली खेलने के लिए आएंगे बल्कि उन्हें लगता है कि भगवान गणेश भी आएंगे होली मनाने. और फिल्म का हीरो जो गाना रचता है वह है- जा रे हट नटखट... नवरंग में होली का सीक्वेंस एक गाने के रूप में आया है. एक ऐसा गाना जो आज भी सदाबहार बना हुआ है. जा रे हट नटखट... के बोल उसका फिल्मांकन होली के मूड के हिसाब से परफेक्ट हैं. इसमें होली की शैतानियों और हुडदंग तो है ही उसके आध्यात्मिक मायने भी दिखते हैं. सी रामचंद्र का संगीत, आशा भोंसले और महेंद्र की आवाज और संध्या के डांस किसी का भी मन मोहने के लिए पर्याप्त हैं.

2) शोले

1975 में आई...

बॉलीवुड फिल्मों की एक बड़ी खासियत यह भी रही है कि कहानियों और उनके गानों में भारतीय संस्कृति के साथ उनकी परंपराएं और तीज-त्योहार नजर आते हैं. रोमांटिक, नायक नायिका के नोकझोंक और खुशनुमा माहौल दिखाने के लिए होली के त्योहार का खासकर खूब इस्तेमाल किया गया है. होली के रंग बॉलीवुड को कहानियां आगे बढ़ाने के लिए हमेशा लुभाते रहे हैं. फिल्मों की लिस्ट बनाई जाए तो यह बहुत लंबी-चौड़ी होगी. हालांकि दर्जनभर फ़िल्में ऐसी हैं जिनके होली सीक्वेंस ने लोगों को आकर्षित किया है. इनमें से आज पांच फिल्मों पर बातें जो बॉलीवुड और होली के सतह साथ जिक्र पर हमेशा प्रासंगिक रहेगी.

1) नवरंग

इसे वी. शांताराम ने बनाया था. वी. शांताराम के जिक्र के बिना ना तो हिंदी सिनेमा की यात्रा पूरी होगी और ना ही हिंदी सिनेमा और होली के रंग का तालमेल पता चलेगा. नवरंग साल 1959 में आई थी और इसकी गिनती भारतीय सिनेमा की श्रेष्ठ क्लासिक में की जाती है. यह फिल्म अपने अनूठे प्रस्तुतीकरण के लिए मशहूर तो है ही इसके गानों और डांस ने लोगों को हैरान ही कर दिया. पहली बार इसी फिल्म से दर्शक महेंद्र कपूर की आवाज से रूबरू हुए थे. खैर यह तो बाद की बात हुई. फिल्म के एक होली सीक्वेंस ने लोगों का जबरदस्त ध्यान खींचा.

असल में नवरंग का नायक एक कवि है. गांववाले होली के त्यौहार के दौरान उससे एक ऐसे गाने की उम्मीद में हैं जिसे सुनकर ना सिर्फ गांव वाले होली खेलने के लिए आएंगे बल्कि उन्हें लगता है कि भगवान गणेश भी आएंगे होली मनाने. और फिल्म का हीरो जो गाना रचता है वह है- जा रे हट नटखट... नवरंग में होली का सीक्वेंस एक गाने के रूप में आया है. एक ऐसा गाना जो आज भी सदाबहार बना हुआ है. जा रे हट नटखट... के बोल उसका फिल्मांकन होली के मूड के हिसाब से परफेक्ट हैं. इसमें होली की शैतानियों और हुडदंग तो है ही उसके आध्यात्मिक मायने भी दिखते हैं. सी रामचंद्र का संगीत, आशा भोंसले और महेंद्र की आवाज और संध्या के डांस किसी का भी मन मोहने के लिए पर्याप्त हैं.

2) शोले

1975 में आई शोले की गिनती भारतीय सिनेमा के इतिहास की कालजयी फिल्मों में यूं नही की जाती है. इसे सिनेमा इतिहास की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शुमार किया जाता है जिन्होंने दर्शकों को तो प्रभावित किया ही फिल्म मेकिंग की धार को भी बदलकर रख दिया. शोले में होली के सीक्वेंस का दिलचस्प इस्तेमाल किया गया है. दो सीक्वेंस हैं. एक सीक्वेंस गाने के रूप में और एक दूसरा सीक्वेंस फ्लैशबैक में है. दोनों सीक्वेंस फिल्म के कथानक को रफ़्तार देते हैं और किरदारों के अलग-अलग शेड्स को समझाते भी हैं.

शोले का होली गाना आज भी लोकप्रियता की बुलंदी पर ही नजर आता है. होली के दिन दिल मिल जाते हैं... को किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने दिल खोलकर गाया था. इस एक गाने में हर्ष, उल्लास, प्रेम, बिछोह सब तरह के भाव देखने को मिलते हैं. फ्लैशबैक होली सीक्वेंस के जरिए यह समझाने की कोशिश की गई है कि ठाकुर की छोटी बहू आम बच्चियों की तरह किसी जमाने में नटखट और शैतान थी. उसका जीवन होली के रंगों की तरह थी. लेकिन गब्बर सिंह ने उसके पति समेत समूचे ठाकुर परिवार की हत्या कर जीवन बदरंग कर दिया. शोले ऐसी लोकप्रिय फिल्म है जिसके बारे में शायद ही किसी दर्शक को ज्यादा बताने की जरूरत पड़े.

3) सिलसिला

यशराज फिल्म्स की सिलसिला एक ऐसी फिल्म है जिसमें विषय के मूड से होली का जितना ख़ूबसूरत इस्तेमाल किया गया शायद ही किसी फिल्म में किया गया हो. यह रोमांटिक ड्रामा है जिसमें शादी के बाद दो जोड़ों की जिंदगी में प्रेम परिवार और जिम्मेदारी की कसमस को दिखाया गया है. वह प्रेम जो मुकाम नहीं पा सका, उसकी कसक नजर आती है. इसे शर्म से खुद में धंसती दिख रही रेखा के उस संवाद से समझ सकते हैं कि 'होली का रंग देख के ज ना जाने क्यों पहला प्यार याद आ जाता है.' जाया बच्चन कहती हैं- "इस देश में पति प्रेमी नहीं होता."

इसके बाद अमिताभ की आवाज में 'रंग बरसे का' का गाना है. होली का त्योहार जिस मूड के लिए जाना जाता है इस एक गाने में वह सबकुछ नजर आता है. अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, रेखा जया और तमाम लोगों को स्क्रीन पर देखते लगता है जैसे आप भी होली के सभी हुडदंग का हिस्सा बने हुए हैं.   

4) बाग़बान

अमिताभ बच्चन के खाते में बॉलीवुड के तीन सबसे बेहतरीन सीक्वेंस आए हैं. शोले और सिलसिला के बाद उनकी बाग़बान को भी इसमें शुमार किया जा सकता है. बाग़बान में एक खुशहाल परिवार और उसके दोस्तों को दिखाने के लिए होरी गीत का इस्तेमाल किया गया है. होरी खेले रघुवीरा अवध में... असल में यह गाना त्योहार के दौरान भारत के पारंपरिक घरेलू माहौल को जीवंत करता है. गाना तो खैर होली के बेहतरीन नम्बर्स में शुमार ही है.

होली के पारंपरिक त्योहार में 'भांग, पान और गान' का सबसे बेहतरीन उदाहरण यहां देखने को मिलता है. आदेश श्रीवास्तव के संगीत में अमिताभ, अल्का याज्ञनिक, सुखविंदर सिंह और उदित नारायण ने जिस हुडदंगी माहौल में गाना गाया है उसका कोई जवाब नहीं.

5) डर

डर को यशराज कैम्प ने ही बनाया था. यह साल 1993 में आई थी. असल में फिल्म की कहानी है कि सनी देओल और जूही चावला के रूप में दो प्रेमी जोड़े की. लेकिन इनके बीच शाहरुख खान के रूप एक तीसरा अनजान आदमी जबरदस्ती घुस जाता है. साइको किस्म का है. क्लासिक शिव-हरी ने क्या ख़ूबसूरत धुन बनाई है इस गाने के लिए. अंग से अंग लगाना में 'डर' का पूरा सब्जेक्ट होली के बहाने खिल उठता है. सनी देओल की गंभीरता, अनुपम खेर का अल्हडपन, जूही चावला का बचपना और शाहरुख खान की जलन सबकुछ एक साथ नजर आती है.






इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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