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Updated: 22 जनवरी, 2019 10:38 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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यूं तो हफ्ते में 7 दिन हैं मगर ये बदकिस्मती मंडे की ही है जिसे कोई पसंद नहीं करता. स्कूल कॉलेज जाने वाले बच्चों से लेकर जॉब पर जाने वाले लोगों से पूछिये. हर कोई मंडे को गाली देगा, उसे कोसेगा. अच्छा चूंकि मंडे से पहले दो दिन की छुट्टी होती है. तो शायद ये भी वो एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से लोग मंडे से कन्नी काटते हैं. आप बच्चों को देखिये. मंडे है. स्कूल जाना है. मां उठाने आई तो दुनिया भर के बहाने. यही हाल नौकरी वालों का भी है. खबर है कि जिन्हें मंडे नहीं पसंद उनके लिए एक ऐसा टिश्यू निर्मित किया गया है जो उन्हें स्कूल में प्रिसिपल या फिर दफ्तर में बॉस के सामने बीमार, बहुत बीमार कर देगा. टिश्यू को कंपनी ने Snotty tissues कहा है जिन्हें सूंघने या ये कहें कि नाक में रखने मात्र से व्यक्ति 'एक दिन वाले जुकाम' की चपेट में आ जाता है.

टिश्यू,बीमारी, छुट्टी, बहाना    वैव नाम की कंपनी ने एक ऐसा टिश्यू बनाया है जिसका इस्तेमाल करके बीमार पड़ा जा सकता है

दुनिया में हर चीज की कीमत है. कुछ इसी सिद्धांत को दिमाग में रखते हुए इस टिश्यू को भी लाया गया है. टिश्यू का निर्माण करने वाली कंपनी वैव ने इसकी कीमत पांच हजार रुपए रखी है. यानी अगर किसी को मंडे या फिर और किसी मन चाहे दिन बीमार पड़ना हो तो उसे 5000 रुपए अपनी जेब से ढीले करने पड़ेंगे.

एक ऐसे समय में जब गोबर से लेकर नारियल का खोल तक सब कुछ आर्गेनिक कहकर ऑनलाइन बेचा जा रहा हो. कह सकते हैं कि आने वाले वक़्त में इस टिश्यू को भी चंद मुट्ठी भर लोगों द्वारा हाथों हाथ लिया जाएगा. इस टिश्यू का भविष्य क्या है हमें कोई आईडिया नहीं है मगर वर्तमान खासा दिलचस्प है. कम्पनी ने दावा किया है कि 1000 लोग दुनिया में ऐसे हैं जो इस 'ऐतिहासिक प्रोडक्ट' को अपने घर ले आए हैं और छुट्टी के लिए नकली स्टाइल में बीमार हो रहे हैं.

इंटरनेट पर जितनी जानकारी मिली उसके हिसाब से टिश्यू बनाने वाली कम्पनी लॉस एंजेलिस में स्थित है और एक स्टार्ट -अप है. इतनी जानकारी से ये बात खुद-ब-खुद साफ हो गई है कि जिन लोगों ने ये प्रोडक्ट खरीदा है वो सभी लोग अमेरिकन हैं. अब जबकि ये नकली बीमारी वाला टिश्यू हमारे सामने आ गया है तो सवाल उठता है कि क्या कभी ये प्रोडक्ट हमारे भारतीय बाजारों में लांच होगा ? जवाब है नहीं. अब इसके बाद फिर एक सवाल हो सकता है कि आखिर ऐसा क्यों ? तो इसका जवाब बस इतना है कि हमारे पास खुद इतने बहनों का अंबार है कि हमें 1 दिन की नकली बीमारी के लिए किसी टिश्यू की जरूरत तो हरगिज़ नहीं है.

ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि हम भारतीयों के पास इतने बहाने हैं कि अगर कहीं नोट करें तो न जाने कितने वॉल्यूम में किताबें छपकर बाजार में तहलका मचा दें. आइये जरा नजर डालें वो कौन कौन से बहाने हैं जिनको बनाकर हम अपने स्कूल-कॉलेज या फिर दफ्तर में छुट्टी अप्लाई करते हैं.

टिश्यू,बीमारी, छुट्टी, बहाना   कैसे इस्तेमाल किया जाए ये टिश्यू कंपनी ने इसकी भी जानकारी दी है

पेट दर्द

दर्द का समय नहीं होता. ये कभी भी और कहीं भी हो सकता है. अब जब बात पेट दर्द की हो तो फिर कहने ही क्या. अगर हम अपनी जिंदगी के सबसे प्राचीन बहनों की फेहरिस्त बनाएं तो शायद पेट दर्द उनमें टॉप पर रहेगा.

उल्टी

उल्टी का भी हाल पेट दर्द जैसा है. क्या बच्चे क्या बूढ़े उल्टी आने पर वीकनेस ही इतनी हो जाती है कि फिर आदमी से उठा नहीं जाता. बात जब उल्टी का बहाना बनाकर छुट्टी लेनी की हो तो इसे भी हम आदिम काल से अमली जामा पहनाते नजर आ रहे हैं.

कफ-कोल्ड-बुखार

भारत के सबसे कॉमन बहानों में यदि इनका जिक्र न हो तो फिर सारी बातें धरी की धरी रह जाती हैं.  कफ-कोल्ड-बुखार वो तीन कंधे हैं जिनपर बंदूक रखकर भारत देश के लोगों ने खूब मौज काटी है.

दस्त

यूं तो एक दिवसीय छुट्टी के लिए 465 बहाने हैं मगर वो बहाना जो बहानों की रेस में सदा से अव्वल रहा है वो और कोई नहीं बल्कि दस्त है. कोई माई का लाल ऐसा नहीं है जो दस्त को खारिज कर दे. कह सकते हैं कि इस शब्द में ही इतनी शक्ति है कि किसी व्यक्ति को एक या डेढ़ छुट्टी तो सिर्फ इसका नाम सुनकर मिल जाएगी.

घरेलू बहाने

बीमारियों के अलावा हमारे पास घरेलू बहनों की भी लम्बी लिस्ट है. मां की तबियत. बीवी की तबियत. बहन की ससुराल. अपनी खुद की ससुराल भी वो कारण हैं जिनका इस्तेमाल करते हुए हमें स्कूल-कॉलेज हों या दफ्तर आसानी से छुट्टी मिल जाती है. इसके अलावा गैस खत्म हो जाने से लेकर मकानमालिक के घर आने तक भी ऐसी कई बातें हैं जो हम भारतीयों से बेहतर कोई नहीं कर सकता.

अंत में बस इतना ही कि जिस देश के एक नागरिक है पास अपने आप में इतने बहाने हों उसे ऐसे किसी प्रोडक्ट की जरूरत नहीं है जिसके एवज में उसे 5000 रुपए के आस-पास खर्च करना पड़े. पहले भी हमारे बहाने जीते थे. आगे भी वो यूं ही जिंदाबाद रहेंगे.   

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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