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Updated: 12 अगस्त, 2015 06:42 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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दिल्ली की जंग अब पुलिस से हट कर भिखारियों पर शिफ्ट हो गई है. जब से मोदी सरकार के नए पब्लिसिटी आइडिया की बात सामने आई है केजरीवाल सरकार हरकत में आ गई है. इस तरह भिखारियों पर दावेदारी को लेकर नए सिरे से जंग छिड़ गई है.

तेरा इलाका, मेरा इलाका

लड़ाई अब इलाके को लेकर होने लगी है. इलाके का झगड़ा भिखारियों में नहीं है. ये लड़ाई तो दो सरकारों के बीच है. मोदी सरकार और केजरीवाल सरकार के बीच. जो भिखारी ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांग रहे हैं उस पर दिल्ली पुलिस दावेदारी जता रही है. ऐसे भिखारी दिल्ली सरकार की पहुंच के बाहर हो जा रहे हैं क्योंकि दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के हिस्से में है. केंद्रीय प्रतिष्ठानों के इर्द-गिर्द तैनात भिखारियों से भी दिल्ली सरकार वंचित है. ले देकर उसके हिस्से सिर्फ दिल्ली सचिवालय और दूर दराज की बस्तियों में सक्रिय भिखारी ही आ रहे हैं.

कई बार तो ऐसी भी स्थिति हो जा रही है कि किसी भिखारी का एक हाथ दिल्ली पुलिस की टीम खींच रही होती है तो दूसरा हाथ दिल्ली सरकार के कर्मचारी. दिल्ली सचिवालय के आस पास की लाल बत्ती पर ये नजारा कभी भी देखा जा सकता है.

डबल बेनिफिट वाले

कई भिखारी तो उन ड्राइवरों की तरह काम कर रहे हैं जो उबर और ओला दोनों के लिए एक साथ काम करते हैं. ऐसे ड्राइवर दोनों के डिवाइस एक साथ ऑन रखते हैं और जहां की कॉल पहले आती है दूसरी डिवाइस बंद कर चल देते हैं.

ठीक उन्हीं की तरह कुछ भिखारी सुबह और शाम के हिसाब से बारी बारी दोनों जगहों पर काम कर रहे हैं. ये लोग केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों के डबल पब्लिसिटी एजेंट बने हुए हैं.

एजेंसियां भी सक्रिय

अब तक मेड और डोमेस्टिक हेल्प मुहैया करा रही एजेंसियों को भी फायदा समझ में आ गया है. ऐसी एजेंसियां अब भिखारियों की सप्लाई के धंधे में कूद पड़ी हैं. मजे की बात ये है कि उनके पास एमबीए और बीटेक किए हुए कैंडिडेट भी अप्लाई कर रहे हैं. जिन बेरोजगारों के पास बीपीएल कार्ड पहले से है उन्हें एजेंसियां खास तरजीह दे रही हैं.

सरकारी नौकरी?

इस बीच कुछ लोगों ने अफवाह फैला दी है कि भिखारियों को सरकारी नौकरी मिल रही है. ये सुनने के बाद तो बस होड़ और भी तेज हो गई है. कुछ लोगों ने समझाने की कोशिश की तो अप्लाई करनेवालों का कहना था कि कोई बात नहीं काम करने लगेंगे तो एक न एक दिन नौकरी पक्की तो हो ही जाएगी - और नहीं भी होगी तो क्या फर्क पड़ता है? कुछ दिन काम कर लेने के बाद कोर्ट जाने लायक तो हो ही जाएंगे.

मध्य प्रदेश से आए कुछ उम्मीदवारों का कहना था कि व्यापम से तो अच्छा ही रहेगा - कम से कम जिंदा तो रहेंगे.

भिखारियों को जमा कर लेने के बाद इनकी ग्रूमिंग की जानी है. इसके लिए ऐड एजेंसियों से टेंडर मंगाए गए हैं. हालांकि, ये सब इस बार ई-ऑक्शन के जरिए हो रहा है ताकि सब कुछ ट्रांसपेरेंट रहे.

जल्द ही ट्रेनों में और उसके बाद शायद दूसरी जगहों पर भिखारियों को नए कलेवर में देखा जा सकेगा. और कुछ भले न हो, मगर देखते ही देखते गरीबी इस मुल्क से छू मंतर हो जाएगी.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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