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Updated: 26 मार्च, 2015 07:42 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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बात उन दिनों की है जब मनीष सिसोदिया मुख्यमंत्री नहीं बने थे. अब ये मत कहिएगा कि मुख्यमंत्री तो वो अब भी नहीं हैं. तो क्या अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं? बिना विभाग के  भला कोई मुख्यमंत्री होता भी है क्या? खैर, बात कर रहे थे मनीष सिसोदिया की. उस वक्त उन्होंने इंटरव्यू का वादा किया था. तभी दिल्ली चुनाव आ गए. आप की सरकार बनी. 49 दिन चली. फिर चुनाव हुए. फिर सरकार बनी. इंटरव्यू की बात होती रही, वेन्यू वक्त और तारीख सब तय हो जाते, फिर एक नई तारीख मिल जाती है. इस बार 16 फरवरी की तारीख मिली थी, फिर भी इंटरव्यू नहीं हो सका. नसीबवाला नहीं हूं न मैं. क्या करूं? खैर, कोई बात नहीं. मेरे पास आपके लिए एक इंटरव्यू है - 'एक ऐसा इंटरव्यू जो कभी हो न सका'.

रिपोर्टर - मनीष जी. पहले तो आपको बहुत बहुत बधाई.मनीष सिसोदिया - सेम टू यू. ये तो आपकी सरकार है. जनता की सरकार है, इसलिए आपको भी बहुत बहुत बधाई. जी?

रिपोर्टर - आपके सरकार की प्राथमिकता क्या रहेगी?मनीष सिसोदिया - [गुस्से में] इतना डिटेल घोषणा पत्र जारी किया है. सारे डॉक्युमेंट वेबसाइट पर डाल दिये गये हैं. फिर भी सवाल पूछे जा रहे हो. थोड़ा पढ़-लिख भी लिया करो.  

रिपोर्टर - वो आपकी बात ठीक है. फिर भी मेरा सवाल है कि शासन के फोकस एरिया क्या होंगे?मनीष सिसोदिया - हम हमेशा कहते हैं कि जो हम कहते हैं वही करते हैं. जब हमने कह दिया कि घोषणा पत्र में जो वादे किए हैं उन्हें पूरा करेंगे. फिर फोकस एरिया का क्या मतलब है? कैसे उल्टे सीधे सवाल पूछते हैं आप लोग? किसने आपको पत्रकार बना दिया?

रिपोर्टर - मनीष जी, कहा जा रहा है कि आप मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए. सुना है कि केजरीवाल पहले आपको ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन बिहार में 'नीतीश एक्सपेरिमेंट' के खतरे को देखते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद अपने पास ही रखने का फैसला किया. मनीष सिसोदिया - [गुस्से पर काबू पाने की कोशिश करते हैं.] उस बात पर तो मैं कुछ नहीं कहूंगा. वैसे मैंने ही ये सुझाव उन्हें दिया था - क्योंकि अरविंद पर मैं खुद से ज्यादा भरोसा करता हूं.

रिपोर्टर - मनीष जी, बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी कभी पत्रकार नहीं रहे लेकिन पत्रकारों के लिए उन्होंने तमाम सुविधाओं की घोषणा की है. मांझी कैबिनेट ने तो पत्रकारों के लिए पेंशन को भी मंजूरी दे दी है. दिल्ली सरकार का इस बारे में क्या ख्याल है?मनीष सिसोदिया - [गुस्सा ठंडा पड़ चुका है] दिल्ली और बिहार के पत्रकारों की अलग अलग जरूरतें हैं. मुझे नहीं लगता कि मीडिया को दिल्ली में ऐसी कोई जरूरत है. हमारे ऊपर तो पहले से ही तोहमत है कि आम आदमी पार्टी मीडिया की उपज है. अब अगर हमने पत्रकारों के लिए कुछ अलग से कर दिया तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी. भाई-भतीजावाद के आरोप लगने लगेंगे. लोग कहेंगे कि आम आदमी की गाढ़ी कमाई घर परिवार में बांटी जा रही है. वैसे पत्रकारों को हमसे ज्यादा सुविधा भला कौन देता है. हमारे यहां तो पत्रकारों की सीधी भर्ती नेता के रूप में होती है. लोक सभा चुनाव में तो हमने दो पत्रकारों को दिल्ली से टिकट भी दिया था.  

रिपोर्टर - मनीष जी, ऐसा लगता है आप मीडिया से डरने लगे हैं. आप तो खुद मीडिया का हिस्सा रहे हैं. फिर माजरा क्या है?मनीष सिसोदिया - [अब चेहरे पर मुस्कुराहट भी है] सर जी, डर तो अपनों से ही लगता है ना. गैरों में इतना दम होता ही कहां है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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