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Updated: 27 अगस्त, 2015 04:52 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मंगल गोलावासी मित्रो...

मुझे बताने की जरूरत नहीं कि मैं कहां से आया हूं. मैं न तो आया हूं, न मुझे भेजा गया है - मुझे तो मंगलदेव ने बुलाया है.

और बुलाया क्यों है मित्रो? भई ये भी तो पता होना चाहिए ना. होना चाहिए कि नहीं.

"शीं-शीं, शीं-शीं"

[टीम मोदी के सदस्यों को समझ नहीं आता कि वे हां बोल रहे हैं या ना. फिर भी डिकोड करने की कोशिश जारी रहती है.]

भई, मैं तो... मैं तो इसी गोला का हूं. बिलकुल आपका अपना. बिलकुल ताजा.

लेकिन बड़े दुख की बात है मित्रो... धरती का इमीडिएट पड़ोसी है मंगल... लेकिन धरती के पीएम को यहां पहुंचने में 68 साल लग गए...

"शीं-शीं, शीं-शीं"...

[डिकोड करने की कोशिश जारी थी.]

अब मैं आपको एक कहानी सुनाता हू्ं. बात द्वारका की है. खूब बारिश हो रही थी. वो दुनिया की पहली बारिश थी. ओले भी पड़ रहे थे. ओलों के साथ एलियन भी टपक रहे थे. तभी भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत उठा लाए और लोगों को बारिश, ओला और एलियन से बचा लिया. बाद में एलियन को वापस भेजने के लिए उन्होंने सुदर्शन चक्र को बोला. इस कोशिश में गोवर्धन पर्वत के टुकड़े ब्रह्मांड में छिटक गए और जहां तहां बिखर गए. उन टुकड़ों से कुछ बड़े कुछ छोटे गोले बने. उन्हीं में से एक मंगल बना.

"शीं-शीं, शीं-शीं"...

[इस बार उनकी आवाज काफी तेज थी. शोर काफी बढ़ गया. तब तक इतना डिकोड किया जा सका कि वे "झूठ-झूठ" बोल रहे हैं. फिर तो साहेब का क्रोध बढ़ जाएगा, ये सोच कर टीम के सुपरवाइजर ने धरती पर संपर्क किया. फिर मांगने पर उसने वो ऑडियो फाइल भेज दी.]

गोलावासियों हकीकत हमने बता दी. अब कोई इसको फसाना बनाना चाहे तो बना सकता है. मेरी बात पर गौर कीजिए. मैं बस इतना कहूंगा कि समझने वाले समझ गए होंगे. जो ना समझें उनके बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा.

"मोडी-मोडी, मोडी-मोडी."

[गोलावासी ताज्जुब के साथ अगल-बगल देख रहे थे. कुछ लोग ऊपर नीचे भी देख रहे थे. दरअसल भारतीय वैज्ञानिकों ने जुगाड़ से उनके "शीं-शीं, शीं-शीं" को "मोडी-मोडी, मोडी-मोडी" में कनवर्ट कर दिया. वैज्ञानिकों ने तो मोदी किया था लेकिन मशीन 'द' नहीं बोल पा रही थी. फिर भी राहत की बात थी.]

मित्रो, आप चिंता मत कीजिए. अब हम आ गए हैं. हम यहां चुनाव भी कराएंगे और सरकार भी बनाएंगे. बराक से मेरी बात हो चुकी है वो भी रिटायर होने के बाद भाजप्पा ज्वाइन करने जा रहा है. आपको तो पता ही होगा.

वैसे आप लोगों को तो अखबार टीवी की भी जरूरत पड़ती नहीं. आप तो मन को ही पढ़ लेते हैं. चलिए मेरा निवेदन है कि आप मेरा हाथ थाम लीजिए. इसका फायदा ये होगा कि मुझे आपसे मन की बात कहनी नहीं पड़ेगी.

हां, तो मैं बराक की बात कर रहा था. गोलावासियों यही वो जगह है जहां मैं और बराक पतंग उड़ाया करते थे. यही वो जमीन है जहां दुनिया में पहली बार क्रांति और संघर्ष की नींव पड़ी. यहीं से बराक ने रंगभेद के खिलाफ और मैंने सांप्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष शुरू किया.

"मोडी-मोडी, मोडी-मोडी."

[तब तक "शीं-शीं, शीं-शीं" वाली फाइल को पूरी तरह ओवरराइट कर "मोडी-मोडी" कर दिया गया था.]

तो इसलिए इस बार आपको बराक को मंगल का मुख्यमंत्री बनाना है. ठीक है?

मित्रो, आपको सोचना पड़ेगा. सतर्क रहना होगा - क्योंकि यहां और भी लोग आएंगे. मैगसेसेवाले भी आएंगे - और अंड बंड डीएनए वाले ही. सभी अड्डा जमाएंगे. गोलावासियों, आपकी एक छोटी सी भूल यहां मंगलराज की जगह जंगलराज कायम कर देगी.

[लाइव टेलीकास्ट पूरी दुनिया में हो रहा है.]

हां, तो गोलावासियो... बताइए... आपको नसीबवाला चाहिए या बदनसीब?

भीड़ से आवाज आई... बदनसीब.

सुनते ही हर कोई हैरान हो उठा. शायद जुगाड़ में कुछ खराबी आ गई थी. असल में जिस जुगाड़ से उनके एक्सप्रेशन को ईको कराया जा रहा था उसी ने लास्ट वर्ड को ज्यों का त्यों सुना दिया.

तभी... स्क्रीन पर एंकर अपीअर हुआ... अब वक्त हो चला है एक ब्रेक का... ब्रेक के बाद फिर मिलते हैं कुछ और जुमलों के साथ... उसके मुंह से यूं ही निकल पड़ा. और ये उसकी आखिरी एंकरिंग रही.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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