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Updated: 01 मार्च, 2016 06:54 PM
करुणेश कैथल
करुणेश कैथल
  @karuneshkaithal
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आपने अंधापन, बहरापन, गंजापन आदि का नाम तो सुना ही होगा लेकिन एक और रोग इस समय देश में खतरा बनकर मंडरा रहा है वह है ‘दंगापन’. इसका बहुत ही आसान सा लक्षण बताता हूं आपको. मन में तरह-तरह के उल्टे-सीधे सवाल उठना और जवाब न मिल पाने की दशा में किसी को पीट देना, किसी के यहां लूट-खसोट करना, बलात्कार जैसी घिनौनी वारदात तक को अंजाम दे देना आदि दंगापन के लक्षण हैं. इस तरह के रोगियों के बारे में सुना व देखा होगा मगर क्या आप इसका इलाज जानते हैं. आज इसका आसान इलाज बताएंगे हम.

वैसे तो देश में कोई साल या महीना ऐसा नहीं गुजरता जब किसी न किसी बात को लेकर रैलियां नहीं निकलती हों. लेकिन उन रैलियों की आड़ में तोड़फोड़, आगजनी, लूट व बलात्कार जैसी वारदातों को अंजाम देना, सरकारों को झुकाने का नया तरीका है. इसकी हालिया रिपोर्ट हरियाणा में हुए जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुए दंगों की खबरों में देखी व सुनी जा सकती है.

कहा जाता है कि अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से पूरा भारत आजाद करा लिया था. भारत में प्रदर्शन को पूर्ण मान्यता प्राप्त है, सभी को अपनी बात रखने की, कहने की पूरी आजादी है, सत्ताधारी या विपक्ष राजनीतिक पार्टियों या किसी अन्य के खिलाफ अपना रोष व्यक्त करने की भी पूरी आजादी है, लेकिन यह सब तब संभव है जब आप अपना पक्ष महात्मा गांधी के आदर्शों को अपनाते हुए शांतिपूर्ण तरीके से किसी के समक्ष रखें.

आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवित होते तो न्यायालय से अपने लिए इच्छामृत्यु की मांग करते! जिस तरह की घटनाओं को रैली, प्रदर्शन और आंदोलन के नाम पर अंजाम दिया जा रहा है शायद गांधी जी ने कभी ऐसा भारत बनाने का सपना नहीं देखा होगा. ऐसा लग रहा है जैसे राजनीति का मतलब देश की सेवा नहीं बल्कि खुद की सेवा करना रह गया है. हर राजनीतिक पार्टी हर मुद्दे पर एक-दूसरे के खिलाफ नजर आती हैं और ऐसा सभी पार्टियों के शासनकाल में होता है.

इस तरह की वारदातों के आरोपियों से सख्ती से निपटने के लिए राज्य व केन्द्र सरकार को भी दंगाईयों से ही क्षतिपूर्ति करने का कानून लाना चाहिए. जैसा कि अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक बयान में कहा है. अब यह सोचना सरकार का काम है कि जिन जगहों पर इस तरह के दंगे होंगे वहां का विकास कैसे संभव हो पाएगा. बड़े-बड़े उद्योग इन जगहों पर कैसे लगाएं जाएंगे. मेक इन इंडिया कैसे संभव हो पाएगा. खैर इस पर मंथन तो सरकारें कर ही रही होगी. फिलहाल हम आपको दंगेपन का इलाज बताते हैं.

एक देहाती कहावत है - ‘जब दिमाग काम नहीं करे तो समझें कि दिमाग सर में नहीं घुटनों में आ गया है’. दंगाईयों के साथ भी कुछ ऐसा ही होता नजर आ रहा है. अगर ऐसा वाकई में होता है तो सर की जगह घुटनों में ही नियमित मालिश किया करें दंगाई.

आंदोलन की आड़ लेकर अपने ही देश में, अपने ही गांव-शहर में दंगा करना बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है.

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