व्यंग्य: मोदी कहीं दाउद को लाने तो दुबई नहीं गए?
मोदी ने दुबई का प्लान आनन-फानन में बनाया. दाउद को लाने वाली बात मैंने अपने एक मित्र को बताई. अंदर की बात है, वह PMO में ही काम करता है. इसलिए नाम नहीं बताऊंगा. मेरी बात सुनते ही उसने एकदम से डांट दिया. कहा, ज्यादा 'काबिल' मत बनो.
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हर विदेश दौरों की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) दौरा भी चर्चा में हैं. अखबारों में, टीवी पर इस बारे में खूब बातें हो रही हैं. लेकिन सवाल है कि क्या मोदी इस दौरे के जरिए अंडरवर्ल्ड डॉन और मुंबई धमाकों के मास्टरमाइंड दाउद इब्राहिम और उसके गुर्गों पर भी शिकंजा कसने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं?
आप कहेंगे कि यह कैसा बेतुका सवाल है. दाउद तो पाकिस्तान में है. भारत की सरकार पाकिस्तान से दाउद को सौंपे जाने पर बात करती रही है. लेकिन पाकिस्तान है कि जवाब नहीं देता, टालमटोल करता है. अरे साहब (गलत न समझें, यहां साहब का मतलब पाठकों से है), माना कि दाउद पाकिस्तान या दुनिया के किसी और हिस्से में भागता-फिरता हो. लेकिन उसका एक बड़ा नेटवर्क दुबई में भी तो है. खासकर, बड़े पैमाने पर उसका बिजनेस तो वहीं से चलता है. यह बात किसी से छिपी भी नहीं है. हफ्ता वसूली के लिए अपने खान सुपरस्टारों को वहीं से तो फोन आते हैं. भारतीय की सुरक्षा एजेंसियां भी इससे वाकिफ हैं.
तो क्या मोदी ने दौरे से पहले इस संबंध में अपने अधिकारियों से बात नहीं की होगी! जरूर की होगी साहब (फिर साहब). मोदी अपने हिसाब से एजेंडा तय करने वाले नेता हैं. वह जानते हैं कि इस देश में दाउद को वापस लाने के मायने क्या हैं. इसलिए मुझे लगता है कि यूएई की यात्रा में अबु धाबी के शेख जायद जामा मस्जिद जाना, दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान से मिलना, अपने चिर-परिचित अंदाज में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करना आदि सब मोदी का मुख्य एजेंडा नहीं है. यकीन मानिए, वह वहां 'बड़ा' काम करने गए हैं.
भारत सरकार अगर दुबई में दाउद के बिजनेस पर रोक लगाने के लिए वहां की सरकार को राजी करने में कामयाब होती है तो भी मोदी के लिए यह बड़ी जीत होगी. एक बार 'डॉन' का बिजनेस मॉड्यूल धराशायी हुआ तो वह अपने आप उल्टे पांव भारत की ओर भागेगा. यहां तो वैसे भी जेल में बिरयानी मिलती ही है. पापी पेट सब करा देता है!!!
वैसे, सत्ता संभालने के बाद मोदी ने पहली बार किसी मुस्लिम देश का रूख किया है. पिछले तीन दशकों में यह पहला मौका है, जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री यूएई के दौरे पर हैं. यह इसलिए भी दिलचस्प है कि जिस देश में करीब 20 लाख भारतीय रहते हैं और हर साल कमाई के तौर पर 12 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा स्वदेश भेजते हैं, वहां 34 सालों में पहली बार हमारा कोई प्रधानमंत्री अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है.
अचानक ऐसा क्यों? मोदी ने दुबई का प्लान भी आनन-फानन में बनाया. दाउद को लाने वाली बात मैंने अपने एक मित्र को बताई. अंदर की बात है, वह PMO में ही काम करता है. इसलिए नाम नहीं बताऊंगा. मेरी बात सुनते ही उसने एकदम से डांट दिया. कहा, ज्यादा 'काबिल' मत बनो. तुम्हें यह बात किसने बताई. अगर बात पता चल ही गई है तो किसी को हरगिज मत बताना. मैंने पूछा, क्यों भला? उसका जवाब भी तैयार था, 'अरे, जानते नहीं हो तुम? मोदी जी काम पहले करते हैं, बताते बाद में हैं. इसलिए तो यह बात लीक नहीं हुई. मीडिया वालों को उल्टे-सीधे कार्यक्रम बता दिए गए.' मैंने ने भी उस समय उसकी हां में हां मिला दिया. लेकिन नारद मुनि वाली आदत जो है मुझमें. दोस्ती का ख्याल करते हुए लाख कोशिश की लेकिन बात बाहर आ ही गई. खैर छोड़िए, परवाह नहीं. मेरे लिए तो यह ब्रेकिंग न्यूज है. इसलिए दाउद और देश की समस्या पहले, दोस्ती बाद में.
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