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Updated: 17 मार्च, 2016 03:27 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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अगर आप प्रसिद्धि पाना चाहते हैं तो इसके दो ही तरीके माने गए हैं, कि या तो कुछ बहुत अच्छा काम करिए या फिर कुछ बुरा काम कर दीजिए. लेकिन, आज इन दोनों से इतर एक नया तरीका चलन में आया हुआ नजर आ रहा है. वो तरीका है कि अगर दस लोग ‘दो दुनी चार’ कहते हैं तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ‘दो दुनी पांच’ कहना शुरू कर दीजिये. सबका ध्यान आपकी तरफ होगा और मीडिया भी दिन-रात आपका ही जाप करने लगेगा. सब आपको मूर्ख, पागल वगैरह कुछ भी कहें, पर आप प्रसिद्ध अवश्य हो जाएंगे. इस काम में न तो मेहनत लगनी है और न ही किसी तरह का खतरा ही है. मतलब कि ये बिना हींग-फिटकरी के एकदम चोखा रंग लाने वाले किसी नुस्खे जैसा है.

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अब आज के समय में हमारे इस अतिबौद्धिक समाज के कर्महीन किंतु प्रसिद्धिप्रेमी सूरमाओं द्वारा अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार इसी तरीके का अनुसरण किया जा रहा है. वैसे, प्रसिद्धि प्राप्ति के इस महान तरीके की खोज का श्रेय यहाँ तो हमारे सियासी नेताओं को ही जाता है, क्योंकि इसका सर्वाधिक अनुप्रयोग हमारी सियासत में ही हो रहा है. और इसके अनुप्रयोग के मामले में सभी सियासी दल ‘मै तेरी परछाई हूँ’ गीत को चरितार्थ कर रहे हैं. कोई किसी से कम नहीं रहना चाहता. कभी एक दल के नेताजी ‘दो दुनी पांच’ टाइप कुछ कहते हैं, जिसपर दूसरे दलों के सब नेता लोग ऐसे पिल पड़ते हैं कि मानों उन नेताजी के मुँह से ‘दो दुनी चार’ कहलवाना ही देश की राष्ट्रीय समस्या है. लेकिन इसी बीच इन दूसरे दल के नेताओं में से भी कोई नेताजी कुछ कह जाते हैं, ऐसे में मीडिया जिसकी इस तरीके के क्रियान्वयन में महती भूमिका होती है, द्वारा यह देखा जाता है कि किन नेताजी की बात में ज्यादा मसाला है, ज्यादा अट्रैक्शन उन्हीं की तरफ रहता है. जैसे कि अभी मीडिया को ‘भारत माता की जय नहीं बोलूँगा’ और ‘भारत माता की जय बोलना मेरा अधिकार है’ कहने वाले दो नेताजी लोगों में से एक को चुनना था तो मीडिया ने बड़े आराम से पहले वाले को चुन लिया, क्योंकि उन नेताजी की बात में ‘दो दुनी पांच’ वाला नियम शत-प्रतिशत लागू था. आम लोगों ने भी मीडिया के इस चयन को हाथों हाथ लिया. परिणाम ये हुआ कि देश के एक राज्य के एक मोहल्ला टाइप छोटे-से नेताजी राष्ट्रीय पटल पर छा गए. ये सब और किसी का नहीं, सिर्फ और सिर्फ प्रसिद्धि के ‘दो दुनी पांच’ तरीके का ही कमाल था. इस तरीके की सफलता के ऐसे ही और भी तमाम उदाहरण हैं.

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वैसे, अब तो धीरे-धीरे नेता जी लोगों से प्रेरित होकर इस तरीके का प्रयोग सियासत से इतर अन्य क्षेत्रों के लोगों द्वारा भी सफलतापूर्वक किया जाने लगा है. यहाँ तक कि छात्र तक इस तरीके को आजमाने लगे हैं. जेएनयू के कुछ छात्रों द्वारा अभी कुछ समय पहले जो किया गया, उसके मूल में इसी तरीके का अनुप्रयोग तो था. अब ये अलग बात है कि छात्र तो छात्र ही हैं, पूरी सफाई से इस तरीके का अनुप्रयोग न कर पाए. परिणामतः फंस गए और जेल तक जाना पड़ गया. हालांकि बावजूद इसके प्रसिद्धि तो उन्हें भी मिल ही गई.

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि यदि बिना परिश्रम, प्रयास और जोखिम के आपको प्रसिद्धि पानी है तो आज के समय में इस ‘दो दुनी पांच’ तरीके से श्रेष्ठ कोई और तरीका नहीं है. आपकी जेब में चवन्नी न हो और दिमाग में भूसा भरा हो, लेकिन फिर भी अगर आपने इस तरीके को समझ लिया तो आपको प्रसिद्धि पाने से कोई रोक नहीं सकता है. फिर बेशक दुनिया उसे सस्ती प्रसिद्धि कहती रहे, क्या फर्क पड़ता है.

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लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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