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Updated: 20 जून, 2018 07:49 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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समय की मार बड़ी बुरी होती है. महबूबा मुफ़्ती के साथ भी यही हुआ. महबूबा मुफ़्ती के अलावा कश्मीर की आवाम के घरों में अभी ईद की सिवईं, मटर की चाट और दही बड़े खत्म भी नहीं हुए थे कि  PDP-BJP गठबंधन टूट गया. कहना गलत नहीं है कि ये सब लिखा हुआ था. वैसे भी बुजुर्ग यही कहते हैं कि जो चीजें लिखी हुई होती हैं वो होकर रहती हैं. लिखने वाले ने ये भी लिखा था कि अखिलेश एक दिन सरकारी बंगला छोड़ेंगे. मगर अखिलेश ऐसे तोड़ फोड़ कर और टोटियां और टाइल्स निकाल कर बंगला खाली करेंगे इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो.

महबूबा मुफ़्ती, पीडीपी, बीजेपी, गठबंधन    कहना गलत नहीं है कि अब महबूबा मुफ़्ती के अच्छे दिन बुरे दिनों में तब्दील हो गए हैं

ध्यान रहे कि टीवी चैनलों के माध्यम से अखिलेश के घर के जो विजुअल्स आए उसने न सिर्फ आलोचकों और समर्थकों तक को हैरत में डाला बल्कि लिखने वाले को भी ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि जब नहीं लिखा तो ये हाल है. अगर जो लिख दिया होता तो अखिलेश सरकारी बंगले के ऊपर 10-12 ट्रक मिटटी गिरवा कर उसे जमीन में दफ़न कर देते. फिर सौ-पांच सौ साल बाद ASIवाले हाथों में फावड़ा और खुरपी लिए हुए उसे खोदते और अवशेष बाहर निकालते.

अखिलेश उत्तर प्रदेश से हैं और घर से जा चुके हैं. महबूबा जम्मू कश्मीर से हैं और जल्द ही सरकारी आवाज़ छोड़कर किसी पॉश लोकेलिटी के किसी रेंटेड अपार्टमेंट में चली जाएंगी. यूं तो राजनीति के अलावा दोनों में कोई समानता नहीं है मगर बात जब राजनीति के इतर समानता की आएगी तो वजह बंगला हो होगा. अखिलेश का बंगला क्यों छिना यदि इसके कारण पर गौर करे तो वजह बीजेपी है. इसी तरह महबूबा के सरकारी घर से जाने की भी वजह बीजेपी होगी. यानी घर से बेघर करने के मामले में दोनों का दुश्मन एक है और वो दुश्मन है बीजेपी यानी भारतीय जनता पार्टी.

बहरहाल चूंकि अखिलेश तजुर्बेकार है अतः उनके पास मौका है. वो जाएं और महबूबा को सरकारी बंगले से टाइल्स और टोटी उखाड़ने की टिप्स दें. यदि महबूबा के बंगले में स्विमिंग पूल हो तो अखिलेश उन्हें ये भी बताएं कि उन्हें रातों रात कितनी मिट्टी डलवानी होगी ताकि उस स्विमिंग पूल को जल्द से जल्द पाटा जा सके. PDP-BJP का टूटा हुआ गठबंधन अखिलेश के लिए हर मायने में फायदेमंद है.

महबूबा मुफ़्ती, पीडीपी, बीजेपी, गठबंधन    इस बुरे वक़्त में अगर कोई आदमी महबूबा के काम आ सकता है तो वो केवल अखिलेश यादव हैं

कहना गलत नहीं है कि इस गठबंधन को टूटते देखकर अखिलेश को कहीं न कहीं ठीक वैसी ही खुशी मिल रही होगी जैसी खुशी तब मिलती है जब व्यक्ति होली या दिवाली में 5 लीटर का कूकर खरीदता है. कुकर के साथ उसे एक इनामी कूपन मिलता है जिसे यदि रगड़ा जाए तो अगर किस्मत बहुत भी बुरी हुई तो 6 चम्मचों का सेट या फिर दो स्टील की क्वार्टर प्लेट उसे मिल ही जाती है.

एक ऐसे वक़्त में जब भारत के सभी नेता मोदी विरोध में लिप्त हैं अखिलेश के लिए ये बम्पर बोनांजा जैसा है. अखिलेश सरकारी बंगले से टाइल्स और टोटी उखाड़ने में मदद के लिए खुद सामने आएं और महबूबा से बात करें. यदि वो इन मुश्किल क्षणों में महबूबा की मदद करने में कामयाब हो जाते हैं तो हो सकता है कि 2019 चुनावों के मद्देनजर और मोदी विरोध के कारण PDP-SP से गठबंधनकर ले और आने वाले वक़्त में हमें जम्मू कश्मीर की सड़कों पर समाजवादी साइकिल दौड़ती दिखाई दे.

अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि अखिलेश द्वारा टोटी और टाइल्स उखाड़ने में महबूबा को दी गई मदद भविष्य में दोनों की राजनीति के लिए फायदेमंद साबित होगी. बाक़ी अखिलेश अगर खुल कर सामने नहीं आते हैं तो महबूबा को खुद उनके पास जाना चाहिए और सरकारी आवास की तबाही के लिए मदद और टिप्स लेनी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि बड़ी खुशियों के लिए छोटी खुशियां जरूरी हैं और छोटी खुशी यही है कि अखिलेश की तर्ज पर महबूबा टोटियां उखाड़े और मीडिया की सुर्ख़ियों में रहें.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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