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Updated: 15 अगस्त, 2018 12:30 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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महीना अगस्त का है और 15 अगस्त के रूप में दो बड़े त्योहार हमारे सामने हैं. पहला स्वतंत्रता दिवस और दूसरा है नाग पंचमी. हमें अंग्रेजों से आजाद हुए 71 साल हो गए हैं. इन गुजरे हुए वर्षों में न सिर्फ हमने जहां एक तरफ बहुत कुछ खोया है तो वहीं दूसरी तरह बहुत कुछ हासिल भी किया है. अब इसे संविधान से मिले विशेषाधिकार कहें या फिर हमारा स्वाभाव हम वक्त के किसी भी पहर 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर किसी को कुछ भी कह सकते हैं. कहीं पर भी किसी को 'डंस' सकते हैं.

सांप, आजादी, नाग पंचमी, स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त भले ही हम अपना 72वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हों मगर आज भी ऐसी बहुत सी बातें हैं जो हमें शर्मिंदा करने के लिए काफी हैं

जैसा कि हम पहले ही इस बात को बता चुके हैं कि दो बड़े त्योहार हमारे सामने हैं. तो बात आगे बढ़ाने और स्वतंत्रता पर कुछ बताने से पहले हम सांपों के विषय में बात करेंगे. सांपों को लेकर हमारे समाज में कई तरह की भ्रांतियां हैं. हालत तो यह है कि आज लोगों ने सांपों को डर और भय का पर्याय बना लिया है. खैर हर व्यक्ति की अपनी सोच है. ऐसे में यदि हम सांपों को हिंदी के मुहावरों की नजर में देखें तो हम भारतीयों की जुबान पर एक मुहावरा अक्सर ही आ जाता है 'आस्तीन के सांप'. यानी ऐसे लोग जो आपके साथ रहते हुए भी आपको डंसते हैं. पल पल आपको मारते हैं. आपकी समाप्ति की प्रार्थना करते हैं. प्रायः ये भी देखा गया है कि ये न सिर्फ व्यक्ति बल्कि देश तक के खिलाफ होते हैं और हर उस चीज में अपना दखल देते हैं जो देश हित में होती है.

ऐसे लोगों का नाम बताना समय की बर्बादी है. वैसे भी शेक्सपीयर ने इस बात को बहुत पहले ही कह दिया था कि 'नाम में क्या रखा है'. इशारा आप समझ ही गए होंगे. आपके आस पास भी यह आस्तीन के सांप मौजूद हैं. बस इन्हें देखने और समझने भर की देर है. इन पर गौर करिए. कई राजों पर से एक साथ पर्दा उठ जाएगा. जब आप इन्हें देख रहे होंगे तो मिलेगा कि ये होते पैदाइशी दिलचस्प हैं. आप इन्हें कितना भी दूध पिला लीजिये, कितना भी प्यार लुटा लीजिये ये हमेशा खिलाफ जाएंगे. कभी ये देश के खिलाफ होते हैं. तो कभी देश की सेना के. कभी ये देश के कानून पर फन मारते हैं तो कभी देश के निजाम पर विष उगलते हैं.

सांप, आजादी, नाग पंचमी, स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त  हमारे इर्द गिर्द ऐसे सांपों का जमावड़ा है जो लगातार हमें तिल-तिल कर मार रहे हैं

ये और इनके तर्क इतने प्रभावी होते हैं कि एक बार को आप भी विचलित हो जाएंगे. कहना गलत नहीं है कि इनके ऊपर चढ़ी केंचुली का रंग इतना गाढ़ा और चमकीला होता है कि ये आसानी से किसी को भी इंस्पायर कर देते हैं, इनके जैसा बनने के लिए. 'आस्तीन के सांपों' के विषय में एक दिलचस्प तथ्य और है. ये किसी को फौरन नहीं डंसते बल्कि व्यक्ति को तिल-तिल कर मारते हैं और अपना एजेंडा सेट करते हैं. इनके बारे में ये कहना कहीं से भी अतिश्योक्ति नहीं है कि 'देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर'

जहां बैड है वहां गुड भी है. अब जब सांप की बात चल ही चुकी है तो हमारे लिए ये बेहद जरूरी हो जाता है कि सांप केवल आस्तीन के नहीं होते. एक दूसरा सांप भी होता है. इस दूसरे सांप को हमने रूद्र या नीलकंठ के कंठ में पड़ा देखा है. ये भले ही देखने में भयानक हो मगर ये बेहद सौम्य, कोमल, निर्मल होता है. ये किसी को हानि नहीं पहुंचाता बल्कि श्रृंगार का प्रतीक होता है.

सांप, आजादी, नाग पंचमी, स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त   अब ये भी बिल्कुल जरूरी नहीं कि सभी सांप नुकसान ही पहुंचाएं

यह सांप भी है, विष इसमें भी है. मगर क्या वजह है जो इसकी तारीफों का बखान हो रहा है ? क्यों लोग इसे अपने साथ रखने में गुरेज नहीं करते? क्यों आज लोग इसे अपने से जोड़ने के आतुर हैं?  वजह बहुत साधारण है. इनको अपना उद्देश्य और लक्ष्यदोनों पता है. ये हमेशा सिस्टम के साथ हैं और अपनी तरफ से अपना योगदान दे रहे हैं.

बहरहाल अब चूंकि स्वतंत्रता दिवस आने में कुछ घंटे शेष हैं तो फैसले के सर्वाधिकार पूर्णतः हमारे पास सुरक्षित हैं कि हम किस सांप को चुनते हैं. एक वो जो आस्तीन में हैं और पूरे देश को डंसे जा रहा है दूसरा यह जो चुपचाप 'सौम्यता लिए हुए' कंठ में पड़ा है और निजाम को सुचारू रूप से चलने में अपना योगदान दे रहा है.

याद रहे अगर आज हम यह फैसला नहीं कर पाए की हमें इस स्वतंत्रता दिवस 'आस्तीन के सांप' और 'कंठ में पड़े सांप' में से किसी चुनना है तो शायद इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा. साथ ही ये हमसे हिसाब लेगा और पूछेगा कि जब मौका मिला तो हमने उन मौकों का फायदा क्यों नहीं उठाया.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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