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Updated: 13 जून, 2015 07:49 PM
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2 जुलाई 2003 का दिन. मैं पटना में था. तेज बारिश हो रही थी. मॉनसून में हर साल बारिश होती है. लेकिन उस मॉनसून पर भारी पड़ रहा था एक और मॉनसून - रिलायंस का मॉनसून हंगामा ऑफर - 501 रुपये में मोबाइल फोन वो भी 100 रुपये के टॉक टाइम के साथ. मोबाइल की बारिश हो रही थी. लोग भीग रहे थे और मजे ले रहे थे. खास के पायदान से उतर कर मोबाइल आम बन चुकी थी.  

'कर लो दुनिया मुट्ठी में' - यही वो पंच लाइन थी, जिसने भारत में मोबाइल फोन मार्केट को बदल कर रख दिया. बहुत कम ऐड ऐसे होते हैं जो अपनी पंच लाइन पर खरे उतरते हैं. रिलायंस ने सही मायने में लोगों की मुट्ठी में मोबाइल थमा दिया था. 10 दिनों के भीतर 10 लाख लोगों ने इस ऑफर को हाथों-हाथ लिया था.

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501 रुपये में मोबाइल ऑफर के साथ 2003 में मुकेश अंबानी

मोबाइल अब आम है. इसके माध्यम से इंटरनेट तक पहुंच भी आम. इन दोनों के बीच खास है मोबाइल इंटरनेट की स्पीड, जो लोगों के धैर्य को पटक-पटक कर मारती है. जो खुद तो राउंड-राउंड घूमती है, पर लोगों को अगले 'स्टेशन' तक नहीं पहुंचा पाती.     

आपकी जेब में स्मार्टफोन 4000-5000 की रेंज से लेकर 60000-70000 तक का हो सकता है. लेकिन बात जब फास्ट इंटरनेट की आती है तो ये सब के सब फोन बन जाते हैं, स्मार्टनेस गायब हो जाती है. अब इतने बड़े कस्टमर बेस को मुकेश अंबानी हाथ से कैसे जानें दें!

धीरुभाई अंबानी ने कहा था कि मोबाइल टेलीफोन तभी ऊंची उड़ान भर सकता है जब इसकी कॉल दरें पोस्टकॉर्ड की दर से कम हो जाए. मुकेश अंबानी अपने पिताजी के उपदेशों का अनुसरण करते हुए फास्ट इंटरनेट (4G) और सस्ते स्मार्टफोन का कॉम्बो लेकर आए हैं - इस साल दिसंबर तक 4G सर्विस लॉन्च करने के साथ-साथ 4000 रुपये के 4जी सपोर्ट स्मार्टफोन भी बाजार में उतारेंगे. मासिक खर्च भी 300-500 रुपये ही बताया जा रहा है.    

मुकेश अंबानी भले ही इस लुभावने ऑफर से कस्टमर का दिल जीतना चाहते हैं, 2003 की सफलता को एक बार फिर से दोहराना चाहते हैं, लेकिन यह हकीकत से परे है. इसके दो कारण हैं:

पहला - 2003 में मोबाइल लग्जरी हुआ करता था. उस समय लोगों को 500 रुपये में मोबाइल एक सपने की भांति लगता था. रिलांयस ने उस सपनेे को हकीकत बनाया. लोगों ने रिलायंस के लिए सफलता की कहानी लिखी. 

दूसरा - अब मोबाइल तो मोबाइल, स्मार्टफोन भी लग्जरी नहीं, जरूरत है. मोबाइल में इंटरनेट होना ही नहीं बल्कि फास्ट इंटरनेट और भी जरूरी. अब एक पुरानी खबर पर गौर करें तो पाएंगे कि भारत में 4G सर्विस के लायक इंफ्रास्ट्रक्चर है ही नहीं. ऐसे में सिर्फ प्रोडक्ट लॉन्च और ऐड के भरोसे मार्केट को हिला कर रख देने लायक सफलता की संभावना कम ही है.    

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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