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Updated: 22 जून, 2016 03:41 PM
सुशील कुमार
सुशील कुमार
  @sushil.aryan
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केन्द्र सरकार ने एफडीआई नीति में बड़ा बदलाव करते हुए रक्षा, उड्डयन से लेकर ई- कॉमर्स तक के क्षेत्र में 100 फ़ीसदी विदेशी निवेश का रास्ता खोल दिया है. इसके अलावा बीमा, पेंशन और फार्मा क्षेत्र में भी सौ फीसदी विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी है. जिन अन्य क्षेत्रों में एफडीआई नियमों को उदार बनाया गया है उनमें खाद्य उत्पादों का ई-कॉमर्स क्षेत्र, प्रसारण कैरेज सेवाएं, निजी सुरक्षा एजेंसियां और पशुपालन शामिल हैं. सरकार के इस फैसले के बाद ज्यादातर क्षेत्रों में एफडीआई स्वत: मंजूर मार्ग के तहत की जा सकेगी. केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद अब भारत दुनिया का सबसे खुला बाजार हो गया है.

FDI की सीमा पहले और अब सरकार के फैसले के बाद अब रक्षा क्षेत्र में FDI की सीमा 49 फीसदी से बढ़कर 100 फीसदी हो गई है. दो साल पहले मोदी सरकार ने ही रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए 26 फीसदी के कैप को हटाकर 49 फीसदी कर दिया था जो अब शत प्रतिशत हो गई है. इसी तरह निजी सुरक्षा एजेंसियों के संदर्भ में स्वत: मंजूरी मार्ग से 49 प्रतिशत FDI की अनुमति दी गई है, जबकि सरकार से मंजूरी के बाद इस क्षेत्र में 74 फीसदी तक FDI की अनुमति होगी. फिलहाल यह कैप 49 प्रतिशत तक थी. इसी तरह फार्मास्युटिकल के क्षेत्र में पुरानी परियोजनाओं में स्वत: मंजूरी मार्ग से 74 फीसदी FDI की अनुमति देने का फैसला किया गया है, जबकि नई फार्मा परियोजना में 100 फीसदी तक FDI की अनुमति दी गई है. उड्डयन के क्षेत्र में भी FDI को 100 फीसदी कर दिया गया है अब तक इस क्षेत्र में 49 फीसदी का कैप था यानी इससे अधिक विदेशी निवेश नहीं हो सकता था.

लंबे समय से केन्द्र सरकार FDI नीति को उदार बनाने पर काम कर रही थी. माना जा रहा है कि सरकार के इस फैसले से देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सहायता मिलेगी. विकास कार्यों के लिए सरकार के पास फंड उपलब्द्ध होंगे और देश में रोजगार सृजन को प्रोत्साहन मिलेगा.

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मोदी सरकार की उदार एफडीआई नीति

सरकार के कदम पर सवाल हालांकि, सरकार के इस कदम पर सवाल भी उठ रहे हैं. सवाल ये है कि क्या देश की अर्थव्यस्था को सुधारने का सिर्फ यही एक रास्ता है. जानकारों की माने तो FDI देश के लिए तात्कालिक फायदे की बात जरूर हो सकती है लेकिन अर्थव्यवस्था में तेजी लाने का ये स्थायी समाधान नहीं हो सकता. इसके लिए घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा. क्योंकि आज भी देश की GDP बहुत हद तक कृषि पर आधारित है. जिस वर्ष बारिश अच्छी होती है उस वर्ष जीडीपी के आंकड़े बेहतर होते हैं और जिस वर्ष बारिश कम होती है सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि विदेशी पूंजी के सहारे देश की अर्थव्यवस्था में जान लाने की ये कवायद कितनी मददगार साबित होगी.

FDI के फायदे FDI के पक्ष में सबसे बड़ा तर्क जो दिया जाता है वो ये है कि इससे देश में नौकरियों की तादाद बढ़ेगी, युवाओं को नए अवसर मिलेंगे. माना जाता है कि विदेशी कंपनियों के आने से बाजार में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी. इससे प्रोडक्ट सस्ते होंगे और सेवाओं में सुधार होगा. साथ ही सप्लाई चेन भी सुधरेगी. इससे कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को फायदा होगा और किसानों को उनके फसल के उचित कीमत मिलेंगी. सबसे बडी बात कि FDI से देश में नई तकनीक आएगी इससे लोगों की आय बढ़ेगी और इसका सीधा फायदा औद्योगिक विकास दर को मिलेगा.

FDI के नुकसान FDI से सबसे अधिक नुकसान अकुशल श्रमिकों को उठाना होगा. बड़ी कंपनियां स्किल्ड लोगों को तो नौकरी मुहैया कराएगी लेकिन अनस्किल्ड लोगों को नौकरी मिलना मुश्किल हो जाएगा. जैसे-जैसे बड़ी कंपनियों का प्रभाव बढ़ेगा, छोटे दुकानदारों की दुकानें बंद होनी शुरू होंगी. इससे लाखों अनस्किल्ड लोगों के सामने आजीविका की समस्या खड़ी होगी. देश में अनस्किल्ड लोगों की तादाद काफी बड़ी है जो छोटे मोटे कल कारखानों और दुकानों में काम कर अपनी आजीविका चलाते हैं. इसके अलावा ये भी देखने में आया है कि बाजार पर कब्जा के लिए बड़ी कंपनियां लोगों को कई तरह के ऑफर देते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा खरीदार उनके स्टोर तक पहुंचे. शुरू में लोगों को सस्ते दरों पर सामान उपलब्ध कराए जाते हैं लेकिन जब बाजार रफ्तार पकड़ लेता है तब इनकी कीमतें बढ़ा दी जाती हैं. इसका असर सीधे सीधे महंगाई पर पड़ता है जिसपर काबू पाना आसान नहीं रहता.

सरकार के इस फैसले से देश में वॉलमार्ट औऱ अमेजन जैसी मल्टीनेशनल नेशनल कंपनियों का प्रभाव बढ़ेगा, जो पिछले काफी समय से मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर में घुसने के फिराक में हैं. अब इन जैसी कंपनियों को फायदा मिलेगा. सरकार ने भले ही मल्टी ब्रांड रिटेल में 100 फीसदी FDI को हरी झंडी नहीं दी हो, लेकिन खाने पीने के उत्पादों की बिक्री में ये मंजूरी दे दी गई है. अभी तक वॉलमार्ट के स्टोर थोक सप्लाई के काम करते थे. लेकिन अब इनके स्टोर्स भी देश के अलग-अलग इलाकों में देखने को मिलेंगे.

FDI के फायदे औऱ नुकसान का आंकलन सभी सरकारें अपने हिसाब से करती रहीं हैं. केन्द्र में जब कांग्रेस की सरकार थी तब कई क्षेत्रों में FDI को मंजूरी दी गई. हालांकि रक्षा, बीमा समेत कई सेक्टरों को बाजार के हवाले करने के फैसले पर विपक्ष के विरोध का भी सामना करना पड़ा. FDI का विरोध करने वाली मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी आज सत्ता में है और आज पीएम मोदी के नेतृत्व में वही बीजेपी FDI को देश की अर्थव्यवस्था के लिए मुफीद मान रही है.

सवाल ये है कि केन्द्र की सत्ता में आने के बाद बीजेपी का ये यू टर्न क्या मायने रखता है? क्या सरकार ये मान चुकी है कि उनकी योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए पैसे की जरूरत है और ये पैसे FDI के जरिए ही आ सकते हैं. इसका फायदा ये होगा कि सरकार को अपनी जेबें भी ढीली नहीं करनी पड़ेगी और ढांचागत विकास भी हो जाएगा. लेकिन ये विकास किस कीमत पर होगा इसका आंकलन करना आसान नहीं है.

लेखक

सुशील कुमार सुशील कुमार @sushil.aryan

लेखक आज तक में पत्रकार हैं

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