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Updated: 18 दिसम्बर, 2018 03:11 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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2018 के आखिरी विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए नए साल से जुड़ी उम्मीदें लेकर आए हैं और राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस पार्टी शायद ये नहीं चाहती है कि उनके 2019 के सपने को कुछ हो इसीलिए तो जो वादे राहुल गांधी ने अपनी चुनावी रैलियों में किए थे वो पूरे करने के लिए तीनों राज्यों के सीएम जुट गए हैं. एक तरफ जहां सीएम बनने के 24 घंटे के अंदर ही कमलनाथ ने मध्यप्रदेश और भूपेंद्र बघेल ने छत्तीसगढ़ के किसानों का कर्ज माफ कर दिया है वहीं राजस्थान में अशोक गहलोत भी इसको लेकर बैठक कर रहे हैं. सीएम कमलनाथ ने तो 'ट्रंप' कार्ड खेला है और कहा है कि यूपी बिहार वाले लोग मध्यप्रदेश में आकर नौकरी करते हैं और बाद में यहां के लोगों के लिए नौकरियां नहीं मिलती हैं. इसलिए सब्सिडी के लिए भी वही कंपनियां वैध्य रहेंगी जिनमें 70% मध्यप्रदेश के स्थानीय नागरिक हैं.

कांग्रेस सरकार अपनी कर्जमाफी की मुहिम को पूरी करने में जुटी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका असर क्या हो सकता है? कर्ज माफी भारत में एक अहम मुद्दा रही है और हमेशा से ही इसे एक ऐसे मुद्दे के रूप में देखा जाता है जिसे रामबाण समझा जाए. किसानों की कर्जमाफी 1990 की राजीव गांधी सरकार के बाद से ही हर चुनाव का बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है. आखिर हो भी क्यों न कुछ फ्री का मिले तो अच्छा तो लगता ही है. ऐसे में कर्ज फाफी फ्री का फंड लग सकता है. पर क्या आपने कभी सोचा कि इसका असर भारत में क्या पड़ता और कैसे उस असर के कारण देश की तरक्की में रुकावटें आ रही हैं.

1. बैंकों और अर्थव्यवस्था पर पड़ता अतिरिक्त भार-

बैंक कर्ज देते हैं, अपना कर्ज वापस पाने और उसी के साथ इंट्रेस्ट मिलने की उम्मीद करते हैं. जो पैसा किसानों को दिया जाता है वो इंट्रेस्ट के साथ अगर वापस मिलता है तो उससे देश की अर्थव्यवस्था बेहतर होती है. Moneycontrol.com की रिपोर्ट बताती है कि जिन भी राज्यों में कर्ज माफी की गई है वहां क्रेडिट ऑफटेक तेज़ी से गिरा है. ऐसे में न सिर्फ किसानों का क्रेडिट स्कोर गिरता है बल्कि इससे अर्थव्यवस्था पर पड़ता है.

मध्य प्रदेश, कमलनाथ, कर्जमाफी, राहुल गांधी, कांग्रेस, किसानकिसानों की कर्ज माफी से बैंकों पर जो भार पड़ता है वो देश के लिए नुकसानदेह है.

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट जिसमें RBI के डेटा की जानकारी थी कहती है कि खेती की क्रेडिट ग्रोथ लगभग न के बराबर ही है. 2017 में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, आंद्रप्रदेश हर तरफ के किसान कर्ज माफी के लिए धरना करते हैं. ऐेसे में सरकारी खजाने से आए पैसे का इस्तेमाल बैंक करते हैं और इससे न सिर्फ डेवलपमेंट में कमी आती है बल्कि आर्थिक स्थिती बिगड़ती है. क्रेडिट ऑफसेट जितना कम होता है बैंक और अर्थव्यवस्था पर उतना ही असर पड़ता है. अगर ये आंकड़ा कम होगा मतलब क्रेडिट डिमांड भी कम होगी और बैंकों के पास कम रेवेन्यू देने वाली योजनाओं पर इन्वेस्ट करने के अलावा और कोई चारा नहीं रहेगा.

2. पैसे लेकर न देने की आदत भी बन सकती है-

ऐसा सभी के लिए नहीं कहा जा सकता, लेकिन इस लोन लेकर न देने की आदत का कुछ लोग अनऔपचारिक फायदा भी उठाते हैं. कुछ लोग लोन वापस करने की स्थिती में भी लोन वापस नहीं करते क्योंकि सरकार को कर्ज माफी दे ही देगी. ऐसे लोगों के लिए खुद को किसान बताकर क्रेडिट लेना आसान होता है और जब पैसा वापस करने की स्थिती आए तब सरकार की कर्जमाफी को याद दिला दी जाए. किसी एक राज्य की अगर लोन माफी हुई है तो दूसरे राज्य के किसानों की तरफ से भी ये मांग बढ़ सकती है. ऐसे में सरकारी स्कीम, बजट और देश की तरक्की पर कितना भार हर साल पड़ता है इसका अनुमान खुद लगा लीजिए.

3. लोन का पैसा टैक्स से जाता है-

जो सरकारी खज़ाना है असल में वो सरकारी रेवेन्यू के साथ-साथ आम नागरिकों के टैक्स के पैसे से भी आता है. ऐसे में लोन माफ करने का मतलब है देश की तरक्की के लिए दिए गए टैक्स का इस्तेमाल कर्ज चुकाने में करना. ऐसे में कितने लोगों के लिए ये आसान तरीका होगा कि वो लोन लें और कभी पैसा वापस करें ही न. जितना ज्यादा पैसा लोन माफ करने में लगाया जाएगा उतना ही कम पैसा देश को चलाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.

4. जो किसान मेहनत कर पैसा चुका देते हैं उनका क्या?

कर्ज माफी का आदेश तो दे दिया जाता है और ये उन किसानों के लिए बेहतर विकल्प दिखता है जो कर्ज चुका नहीं सकते, लेकिन क्या ये उन किसानों के साथ नाइंसाफी नहीं होती जो खुद अपना लोन चुका देते हैं? ऐसे में एक मिसाल बन सकती है कि कर्ज तो माफ हो ही जाएगा क्यों मेहनत की जाए.

RBI का एक रिसर्च पेपर बताता है कि जहां किसानों की कर्जमाफी का सिलसिला साल दर साल 16-20 प्रतिशत बढ़ा है वहीं सही मौके पर पैसे चुकाने वाले किसानों की संख्या 11% कम हुई है. यानी आंकड़े भी इस बात को बता रहे हैं कि कर्जमाफी बढ़ने के साथ ही तय समय पर पैसा चुकाने वाले किसानों की संख्या कम हो गई है. ये किस तरह का ट्रेंड बन रहा है ये खुद ही सोच लीजिए.

कांग्रेस की पुरानी आदत है कर्ज माफ करना-

कर्ज माफी का मुद्दा वैसे तो सबसे पहले राजीव गांधी सरकार के साथ आया था. 1990 में उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों ने राजीव गांधी के खिलाफ धर्ना किया था और लोन माफी की अर्जी दी थी. उस समय कांग्रेस के लिए ये मजबूरी बन गया था. लेकिन मनमोहन सरकार के आने के बाद इसे एक अहम मुद्दा बना दिया गया. उसके बाद से हर इलेक्शन में इसे कांग्रेस के मेनिफेस्टो में देखा गया. साथ ही, 2008 में कांग्रेस की दोबारा सत्ता में वापसी के लिए भी कर्ज माफी ने राम मंदिर वाले मुद्दे जैसा काम किया.

2014 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना और 2016 में तमिलनाडु में भी इस स्कीम ने अच्छा काम किया और कर्ज माफी का वादा करने वाली पार्टियों को सत्ता मिली. ऐसे कांग्रेस का फॉर्मूला अब देश की अन्य पार्टियों पर भी असर डालने लगा.

किसानों को फसल की उचित रकम देना सही है या कर्जमाफ करना?

अब इस पूरी गणना के बारे में सोचिए. कर्ज माफी किसी समस्या का हल नहीं है. किसान कर्ज लें और वो समय पर चुकाएं इसके लिए सरकार कई पहल कर सकती है. किसानों को सही तरह से उनकी फसलों का दाम मिले. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को बेहतर बनाया जा सकता है जिससे हर किसान को बीमा मिले और फसल का उचित दाम न मिलने पर भी उन्हें अच्छा पैसा मिल सके. ऐसे सिस्टम बनाए जाएं कि किसान ज्यादा से ज्यादा उन्नत खेती कर सकें, उनके जीवन का तरीका कैसे बेहतर बनाया जाए उसपर विचार करना हल है न कि फ्री का पैसा देकर सरकारी खजाने को खाली करना.

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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