New

होम -> इकोनॉमी

 |  2-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 21 अगस्त, 2015 03:59 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
  • Total Shares

पिछले हफ्ते चीन के केन्द्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने ग्लोबल करेंसी मार्केट में अपनी मुद्रा युआन में लगभग 4 फीसदी का डिवैल्यूएशन करके हड़कंप मचा दिया. चीन के इस कदम के बाद भारत सहित दुनियाभर के उभरते बाजारों की मुद्राओं में भी बड़ी गिरावट दर्ज हुई. लेकिन कई पैमाने हैं, जहां हमारा रुपया दो साल की सबसे बड़ी गिरावट के बावजूद ताकतवर बना हुआ है. जानिए ऐसा क्यों...

1. काबू में है महंगाई
खुदरा महंगाई के जुलाई आंकडे देश में लगातार कम हो रही महंगाई को साफ दिखा रहे हैं. वहीं कुछ खाद्य सामग्रियों में भले तेजी जारी है लेकिन वह इसलिए जायज है क्योंकि पिछले साल भी इन सामग्रियों में इस दौरान तेजी देखने को मिल रही थी. लिहाजा एक बात साफ है कि रिजर्व बैंक जनवरी 2016 के अपने महंगाई काबू करने के टार्गेट को पूरा करने जा रहा है. मुद्रा में गिरावट से महंगाई बढ़ने का खतरा रहता है लेकिन रुपये को इसका डर नहीं है क्योंकि ग्लोबल स्तर पर क्रूड की कीमतों से रुपये को राहत जारी है.

2. फॉरेक्स रिजर्व में हुआ है इजाफा
पिछले कुछ समय से रिजर्व बैंक लगातार स्पॉट और फॉर्वर्ड मार्केट में डॉलर की खरीदारी कर रहा है. रिजर्व बैंक यह काम अमेरिका में ब्याज दरों में इजाफा होने की आशंका से कर रहा है, जिससे अमेरिका के फैसले से उबरने के लिए देश तैयार रहे. बीते 4 अगस्त को मौद्रिक समीक्षा में रघुराम राजन ने साफ कहा था कि देश में फॉरेक्स रिजर्व सम्मानित स्तर पर है.

3. भारतीय कंपनियों के पास मौजूद अच्छा डॉलर रिजर्व
रुपये में किसी तरह की बड़ी गिरावट से भारतीय कंपनियों की बैलेंसशीट पर बुरा असर पड़ता है क्योंकि एक झटके में उनकी विदेशी देनदारी बढ़ जाती है. इस खतरे के लिए आईएमएफ भी लगातार चेतावनी देता रहा है. लेकिन हाल में आए आंकड़ों के मुताबिक भारतीय कंपनियों ने भी पिछली कई तिमाही से अपने डॉलर रिजर्व में अच्छा खासा इजाफा किया है. आंकडों के मुताबिक पिछली कुछ तिमाही में भारतीय कंपनियों ने विदेशी देनदारी के लिए डॉलर हेजिंग के स्तर को 15 फीसदी से बढ़ाकर लगभग 41 फीसदी कर लिया है. हालांकि अभी भी कंपनियों के आधे से अधिक विदेशी कर्ज सुरक्षा के इस दायरे से बाहर हैं.

4. विदेशी निवेशकों को भारत में रुकने में फायदा
रुपये में किसी तरह की बड़ी गिरावट सीधे तौर पर विदेशी निवेशकों के प्रॉफिट पर प्रहार करता है. वहीं कोई विदेशी निवेशक यदि देश से बाहर निकलना चाहता है तो रुपये में बड़ी गिरावट के चलते वह बाजार में कुछ और दिन रुकना फायदेमंद मानता है. गौरतलब है कि साल 2014 में बड़ी संख्या में विदेशी निवेश भारत में आया और 2015 में यह सिलसिला जारी है, लिहाजा जब फॉरेक्स मार्केट में रुपया लगभग 2 साल के सपाट स्तर पर है ऐसे में निवेशकों का रुझान भारतीय बाजारों में बने रहने का होना स्वाभाविक है.

#रुपए, #मुद्रा बाजार, #फॉरेक्‍स, रुपया, मुद्रा बाजार, फॉरेक्‍स

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय