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Updated: 31 अगस्त, 2015 06:36 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतत: 15 महीनों तक अडिग रहने के बाद भूमि अधिग्रहण कानून पर अपना रुख पलट दिया. रविवार को मन की बात करते हुए प्रधानमंत्री ने घोषणा कर दी कि सरकार अब भूमि अधिग्रहण कानून को मार्केट फ्रेंडली बनाने के लिए लाए गए अध्यादेश को एक बार फिर से नहीं थोपने जा रही है. नतीजतन, 31 अगस्त से एक बार फिर 2013 में यूपीए कार्यकाल में पारित भूमि अधिग्रहण कानून अपनी जगह पर कायम हो जाएगा.

क्यों लाया गया था अध्यादेश

साल 2013 तक देश में अंग्रेजों के जमाने का भूमि अधिग्रहण बिल 1894 लागू था जिसके तहत सरकार देश में विकास की बयार के लिए किसी की जमीन का अधिग्रहण कर सकती थी. लेकिन यूपीए सरकार ने साल 2014 में 100 साल से ज्यादा पुराने इस कानून को मौजूदा आर्थिक चुनौतियों के लिहाज से बदल दिया. हालांकि इसी साल एनडीए की सरकार बनने के बाद देश में कारोबारी तेजी के लिए कंस्ट्रक्शन और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को बूस्ट देने के लिए इस कानून में अध्यादेश के जरिए कई अहम फेरबदल किए गए जिसे मोदी सरकार को भारी विरोध और राजनीतिक मजबूरी के चलते वापस लेना पड़ा.

क्या हैं यूपीए और एनडीए के कानून की जरूरी बातें.यूपीए के कानून में किसानों के लिए क्या था खास

1. भूमि अधिग्रहण के बाद पांच साल में काम शुरू नहीं हुआ तो किसानों को जमान का मालिकाना हक वापस करने का प्रावधान.

2. सरकारी प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण करने के लिए प्रभावित हो रहे किसानों के 70 फीसदी लोगों की मंजूरी लेना जरूरी है.

3. निजी कंपनियों को जमीन अधिग्रहण करने के लिए 80 फीसदी किसानों की मंजूरी जरूरी है.

4. अधिग्रहण के खिलाफ किसान कोर्ट जाने के लिए स्वतंत्र है.

5. सरकार और निजी कंपनियां उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण नहीं कर सकती.

6. जमीन लेने के लिए किसान की मंजूरी जरूरी.

एनडीए के अध्यादेश 2015 से किसानों को नुकसान

1. पांच साल के बाद भी अधिग्रहण की हुई जमीन पर काम शुरू हो सकता है लिहाजा प्रोजेक्ट में कितना भी विलंब हो किसानों को जमीन वापस करने का कोई प्रावधान नहीं था.

2. दोनों सरकार अथवा निजी कंपनियों के लिए जमीन अधिग्रहित करने के लिए महज 51 फीसदी किसानों की सहमति का प्रावधान था.

3. जमीन अधिग्रहण के खिलाफ किसान को कोर्ट जाने की इजाजत नहीं थी और जबरन अधिग्रहण पर किसानों को जमीन की मार्केट वैल्यू का चार गुना मुआवजा दिए जाने का प्रावधान था.

4. सरकार और निजी कंपनियां बंजर के साथ-साथ उपजाऊ जमीन का भी अधिग्रहण कर सकती थीं.

5. अगर केन्द्र सरकार चाहे तो बिना किसान की मंजूरी के भी अधिग्रहण कर सकती है, और यदि वह विरोध में कंपनसेशन लेने से मना करता है तो वह राशि सरकारी खजाने में जमा कर दी जाएगी, लिहाजा, मुफ्त में भी सरकार किसान की जमीन पर कब्जा कर सकती थी.

यू-टर्न से मोदी को यह 5 नुकसान

1. प्रधानमंत्री मोदी ने घरेलू इंडस्ट्री और विदेशी निवेशकों के लिए देश में कारोबार आसान करने के अपने संकल्प के चलते देश में भूमि अधिग्रहण कानून को अपने अध्यादेश से सरल करने की कोशिश की. लिहाजा यह उनकी इस कोशिश को बड़ा झटका है.

2. आमतौर पर देखा गया है कि इंफ्रा और कंस्ट्रक्शन क्षेत्रों में ज्यादातर सरकारी और गैर सरकारी प्रोजेक्ट जमीन अधिग्रहण की दिक्कतों के चलते लंबित पड़े रहते हैं. जमीन लेने की कानूनी अड़चनों के चलते निवेशकों का भी नए प्रोजेक्ट पर रुझान नहीं बनता. लिहाजा, सरकार का अध्यादेश वापस लेने का फैसला देश में कारोबारी तेजी लाने में चुनौतियों को बढ़ा देगा.

3. इस अध्यादेश से जहां देश में किसानों को यह डर सता रहा था कि उसकी जमीन सरकार और निजी कंपनियों जबरन ले सकती हैं, उन्हें राहत मिली है. खासतौर पर जब देश में बिहार का अहम विधान सभा चुनाव सामने हो तो केन्द्र सरकार को इस पर अडिग रहने में राजनीतिक नुकसान महसूस होना स्वाभाविक है. लेकिन, इस फैसले से एक बार फिर विपक्ष को सरकार पर उंगली उठाने का मौका मिलने के साथ-साथ अपनी जीत का एहसास हो रहा है.

4. देश में 24 घंटे बिजली देने के सपने को अब उम्मीद से ज्यादा वक्त लग सकता है क्योंकि न्यूक्लियर पावर और सोलर पावर के प्रोजेक्ट को अब भूमि अधिग्रहण करने में कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है.

5. देश में 100 स्मार्ट सिटी और सभी के लिए घर की योजना को भी इस अध्यादेश के हटने से झटका लगा है. अब केन्द्र सरकार और रियल स्टेट डेवलपर्स को इन योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण करने में नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

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लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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