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Updated: 29 दिसम्बर, 2019 06:13 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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आप चाहे किसी भी दुकान से कपड़े खरीदें, अधिकतर दुकानों में आपको कैरी बैग (Carry bag charges) के भी पैसे देने होते हैं. ऐसी इक्का दुक्का ही दुकानें हैं जो पैसे नहीं लेती हैं. पहले तो हर दुकान कैरी बैग मुफ्त में देती थी, लेकिन अब क्यों नहीं देती? दुकान वालों (Retailers) का तर्क होता है कि कपड़े के बैग प्लास्टिक बैग की तुलना में महंगे होते हैं, इसलिए वह ये बैग फ्री नहीं दे सकते. वहीं ग्राहकों (Customer) का तर्क ये होता है कि जो दुकान सामान बेच रही है, उसे ले जाने के लिए थैला भी दुकान को ही देना चाहिए. यहां तक कि एक ग्राहक ने तो उपभोक्ता फोरम में सेल्स ऑफ गुड्स एक्ट 1930 का हवाला देते हुए शिकायत भी की थी कि सामान को डिलीवर करने की स्थिति में देना दुकान की जिम्मेदारी होती है. वहीं कुछ लोगों का तर्क ये भी है कि जब बैग पर कंपनी अपना विज्ञापन कर रही है तो फिर उसके लिए ग्राहक से पैसे क्यों ले रही है? यहां सबसे बड़ा सवाल तो ये उठता है कि आखिर सही कौन है? पीएम मोदी ने अपने भाषण (Narendra Modi Speech on Plastic Management) में कहा था कि दुकान वाले अपने पास बेचने के लिए थैला रखें, तो फिर थैला बेचने पर उपभोक्ता फोरम ने बिग बाजार (Big Bazaar) और डोमिनोज (Dominos) जैसे रिटेलर्स पर जुर्माना क्यों लगा दिया? तो फिर कैरी बैग को लेकर नियम-कानून (Rules about Carry Bags) क्या कहते हैं?

Carry Bags chargeable or free of costकैरी बैग के लिए दुकानदार पैसे तो मांगते हैं, लेकिन ये गैर-कानूनी है.

ताजा मामला बिग बाजार और डोमिनोज का है

ताजा मामले में उपभोक्ता फोरम ने चंडीगढ़ सेक्टर-48 निवासी भावना गुप्ता, सेक्टर-47 निवासी चेतन गोयल और मोहाली निवासी तनू मलिक की शिकायत के बाद बिग बाजार पर 15 हजार का जुर्माना लगाया है. साथ ही तीनों ग्राहकों को 100-100 रुपए मुआवजा और 1100-1100 रुपए केस खर्च के रूप में देने का आदेश दिया है. बता दें कि इन्हें बिग बाजार ने 12-18 रुपए में कैरी बैग दिया था, जबकि बिल काउंटर पर ग्राहकों ने कहा था कि कैरी बैग के पैसे लेना गैर कानूनी है.

कुछ दिन पहले ही उपभोक्ता फोरम ने डोमिनोज पर भी 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था. फोरम ने दो ग्राहकों को कैरी बैग के लिए चार्ज किए 14-14 रुपए भी वापस करने का आदेश दिया. साथ ही 1500 रुपए मुआवजा भी देने को कहा. बता दें कि फरवरी 2019 में भी फोरम ने कंपनी पर कैरी बैग के लिए पैसे लेने पर जुर्माना लगाया था, जिसके विरोध में कंपनी ने जिला फोरम में केस दायर किया था.

ये तो सिर्फ उदाहरण भर हैं. ऐसे कई सारे केस हुए हैं, जिनमें बिग बाजार, डोमिनोज, वेस्टसाइड, लाइफस्टाइल, बाटा और कई अन्य रिटेलर्स पर कैरी बैग के लिए पैसे लेने पर जुर्माना लगाया गया. हालांकि, बहुत से रिटेलर्स ने उपभोक्ता फोरम के फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में शिकायत की है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर नियम है क्या? कंफ्यूजन किस बात का है? या तो नियम के हिसाब से ये सही होना चाहिए, या फिर गलत, बीच का कोई रास्ता तो हो नहीं सकता, तो फिर पेंच कहां फंसा है. खुद पीएम मोदी ने तो लोगों ने कपड़े का थैला इस्तेमाल करने की गुहार लगाई थी. उन्होंने ही तो कहा था कि दुकानदार अपने पास कपड़े का थैला रखकर बेचें. ये भी कहा था कि इससे दूर-दूर तक उनका विज्ञापन भी होगा. तो फिर गलती किससे हो रही है? ग्राहक गलत हैं या रिटेलर, या फिर कानून में ही कोई खामी है, जिसके चलते ये सारा कंफ्यूजन हो गया है?

अब समझिए नियम क्या है !

कैरी बैग के लिए पैसे लेने की शुरुआत हुई प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग रूल्स, 2011 के आने के बाद. सरकार का मकसद था कि प्लास्टिक मैनेजमेंट किया जाए. इसके तहत किसी भी ग्राहक को रिटेलर की तरफ से कैरी बैग मुफ्त में मुहैया नहीं कराने का प्रावधान किया गया. ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया ताकि ग्राहक प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें और अपने घर से कैरी बैग लाएं. जो लोग फिर भी प्लास्टिक का बैग लेते हैं, उनसे पैसे लिए जाएंगे जो प्लास्टिक मैनेजमेंट में काम आएगा. दिलचस्प ये है कि इस नियम में कैरी बैग को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि यह प्लास्टिक का कैरी बैग होना चाहिए. लेकिन रिटेलर्स ने इस नियम का दुरुपयोग किया और उन्होंने कागज और कपड़े के बैग भी मुफ्त में देना बंद कर दिया और ग्राहकों से पैसे लेने शुरू कर दिए.

आगे चलकर ये पाया गया कि कैरी बैग की न्यूनतम कीमत कितनी होनी चाहिए, ये तय नहीं किया गया है. पैसे कैसे म्यूनिसिपल अथॉरिटी को ट्रांसफर होंगे, ये भी नहीं बताया गया था. ऐसे में 2011 के नियम को 2016 में बदल दिया गया. इसके तहत तय हुआ कि प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के लिए रिटेलर से पैसे रजिस्ट्रेशन के समय ही ले लिए जाएंगे. मार्च 2018 में 2016 वाले नियम को भी बदल दिया गया और कैरी बैग के लिए ग्राहकों से पैसे लेने वाला नियम ही खत्म कर दिया गया. यानी किसी भी रिटेलर को कागज के या कपड़े के कैरी बैग के लिए पैसे लेने की अनुमति तो पहले ही नहीं थी, अब प्लास्टिक के कैरी बैग के लिए भी पैसे नहीं ले सकते थे. हां, वो बात अलग है कि अब कोई रिटेलर प्लास्टिक का बैग मुफ्त में भी नहीं दे सकता, वरना जुर्माना लगना तय है.

पंकज चंद गोटिया नाम के एक शख्स ने सेल्स ऑफ गुड्स एक्ट 1930 के सेक्शन 36 के सब सेक्शन (5) के आधार पर अपनी शिकायत की थी. इस नियम के अनुसार किसी भी प्रोडक्ट को डिलीवरी देने की स्थिति तक लाने में जितना भी खर्चा होता है, वह दुकानदार को ही वहन करना होता है. अब किसी सामान को कोई व्यक्ति यूं ही तो हाथ में टांग कर ले जा नहीं सकता, तो कैसी बैग भी डिलीवरी की स्थिति तक लाने में ही शामिल है, इसलिए इसका खर्चा कंपनी को ही उठाना होता है.

कैरी बैग को रिटेलर्स ने रेवेन्यू मॉडल बना लिया है

एक बैग के 15 रुपए, जिसकी कीमत 5 रुपए भी नहीं होती है और एक दुकान पूरे दिन में ऐसे 100 बैग तो बेच ही देती है. यानी 1500 रुपए के बैग, यानी 1000 रुपए का सीधा मुनाफा. आखिर इससे तगड़ा मुनाफा कौन से धंधे में मिलेगा? तो रिटेलर्स ने इसे ही अपना रेवेन्यू मॉडल बना लिया. अब नियमों को ताक पर रखकर रिटेलर्स कागज और कपड़े के बैग भी बेच रहे हैं. इतना ही नहीं, ये रिटेलर्स इन बैग पर अपना ब्रांड प्रमोशन भी कर रहे हैं. यानी जो पीएम मोदी ने कहा था कि अपनी दुकान पर कपड़े का थैला रखें, उसे बेचें, इससे आपको प्रमोशन होगा, वो हो रहा है. रिटेलर्स धड़ल्ले से कपड़े के बैग बेच रहे हैं, लेकिन कंज्यूमर फोरम की ओर से एक के बाद एक कई रिटेलर्स पर जुर्माना लग चुका है. ना जाने ऐसे ही कितने के पेंडिंग होंगे. खैर, भले ही रिटेलर्स ने कैरी बैग बेचने को अपने बिजनेस मॉडल का हिस्सा बना लिया है, लेकिन ये पूरी तरह से गैर कानूनी है.

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