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Updated: 04 जुलाई, 2019 08:06 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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भले ही सड़कों पर आपको हर ओर गाड़ियां ही गाड़ियां दिख रही हों, लेकिन ये एक कड़वा सच है कि ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री (Automobile industry) अपने बुरे दौर से गुजर रही है. अगर बात सिर्फ पैसेंजर व्हीकल्स की करें तो मई महीने में उसमें पिछले 18 साल की सबसे बड़ी गिरावट (20.6%) दर्ज की गई है. यानी आप ये समझ ही सकते हैं कि लोग कितनी कम गाड़ियां खरीद रहे हैं. हालात, इतने खराब हो गए हैं कि कई ऑटोमोबाइल कंपनियों ने कुछ दिनों के लिए प्रोडक्शन पर ब्रेक तक लगा दिया. लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये गिरावट आई क्यों और इससे निजात कब और कैसे मिलेगी? 5 जुलाई को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट (Budget 2019) पेश होना है और माना जा रहा है कि इसमें मोदी सरकार कुछ ऐसी घोषणा कर सकती है, जो ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए फायदे का सौदा साबित हो.

जैसे-जैसे ऑटोमोबाइल सेक्टर में गिरावट आ रही है, वैसे-वैसे इन कंपनियों के शेयर भी तेजी से नीचे की तरफ जा रहे हैं. एक ओर ग्राहक गाड़ियां नहीं खरीद रहे हैं और दूसरी ओर निवेशक ऑटोमोबाइल कंपनियों के शेयरों में अपने पैसे नहीं फंसाना चाहते. नतीजा ये है कि पिछले 5 सालों में ऑटोमोबाइल के अच्छे दिन भी आए और कंपनी के शेयर्स ने नया इतिहास रचा, वहीं अब ऐसा भी वक्त आ गया है कि कंपनियों को कई-कई दिनों तक अपना प्रोडक्शन बंद करना पड़ रहा है. वैसे भी, जब गाड़ियां बिकेंगी ही नहीं तो रोज खूब सारी गाड़ियां बनाकर होगा क्या? और इन गाड़ियों को रखेंगे कहां? खैर, जिस मोदी सरकार के कार्यकाल में ऑटोमोबाइल सेक्टर ने आसमान की बुंलदी भी छुई और जमीन पर पटखनी भी खाई, उसी मोदी सरकार के धक्के से ऑटोमोबाइल की गाड़ी पटरी पर आने की उम्मीद है.

बजट 2019, मोदी सरकार, ऑटोमोबाइल5 जुलाई को पेश होने वाले बजट में मोदी सरकार ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए कुछ बड़ी घोषणा कर सकती है.

पहले समझिए Automobile Sector के हालात कितने खराब हैं

सोसाएटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के आंकड़ों के अनुसार मई 2019 में पैसेंजर व्हीकल की सेल्स में 20.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जो सितंबर 2001 के बाद दूसरी सबसे बड़ी गिरावट है. यानी ऑटोमोबाइल सेक्टर पिछले 18 सालों की सबसे बड़ी गिरावट झेल रहा है. दोपहिया वाहनों की सेल्स में 6.7 फीसदी की गिरावट आई है. महिंद्रा एंड महिंद्रा ने 8 जून से 5-13 दिन तक प्रोडक्शन पर ब्रेक लगाई. बाजार की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी मारुति सुजुकी ने 23 जून से 30 जून तक प्रोडक्शन बंद किया. कंपनी ने अपना गुरुग्राम और मानेसर का प्लांट भी पिछले महीने एक पूरे दिन के लिए बंद किया था.

लेकिन वजह क्या है इस गिरावट के पीछे?

पर्चेजिंग पावर हो गई कम

ऐसा नहीं है कि सिर्फ ऑटोमोबाइल सेक्टर में ही गिरावट है. एफएमसीजी सेक्टर में सेल्स 2018 के 13.8 फीसदी के मुकाबले 2019 में 11-12 फीसदी हुई है. फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (FADA) के प्रेसिडेंट निकुंज सांघी कहते हैं कि सामान्यतः लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों की चीजों को खरीदना बंद नहीं करते हैं. लेकिन एफएमसीजी सेक्टर में आई गिरावट दिखाती है कि लोगों की खरीददारी की क्षमता यानी पर्चेजिंग पावर ही कम हो गई है. Avanteum Advisors के एमडी वीजी रामकृष्णन कहते हैं कि धीमी अर्थव्यवस्था के अलावा नवंबर 2016 में की गई नोटबंदी भी पर्चेजिंग पावर कम होने की एक वजह है.

BS-4 से BS-6 की ओर तकनीकी शिफ्टिंग भी है वजह

इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस समय ऑटोमोबाइल सेक्टर की गिरावट इन्वेंट्री करेक्शन है. दरअसल, ऑटोबाइल सेक्टर जल्द ही दूसरी तकनीक पर शिफ्ट होने वाला है. अप्रैल 2020 से हर ऑटोमोबाइल कंपनी को भारत स्टेज 6 (बीएस-6) नियम के हिसाब से गाड़ियां बनानी होंगी. आपको बता दें कि अभी ये गाड़ियां बीएस-4 नियम को अनुसार बन रही हैं. बीएस-6 के अनुसार जब गाड़ियां बनने लगेंगे, तो वह यूरोप और अमेरिका के स्टैंडर्ड की हो जाएंगी. हालांकि, बीएस-6 के तहत जो गाड़ियां बनेंगी वह नए सुरक्षा नियमों जैसे एयर बैग की वजह से अभी की तुलना में महंगी हो जाएगी.

मारुति सुजुकी के चेयरमैन भार्गव बताते हैं कि इसे देखते हुए मारुति जैसी ऑटोमोबाइल कंपनियों ने इस साल कम ग्रोथ का टारगेट रखा है और अपना प्रोडक्शन घटा दिया है. मारुति ने तो ये भी घोषणा कर दी है कि वह अप्रैल 2020 तक डीजल कारों को हटा देगी. उन्होंने बताया कि यूरोप में यूरो-6 के तहत गाड़ियां बनाई गईं, तो डीजल गाड़ियों की सेल्स कम हो गई. दरअसल, इसकी वजह से वह बहुत अधिक महंगी हो गईं, जबकि डीजल और पेट्रोल की कीमतें लगभग बराबर थीं, तो डीजल कार खरीदने का कोई फायदा नहीं रहा.

तो ये सब कब और कैसे सही होगा?

आईएचएस मार्किट के एक विशेषज्ञ गौरव वंगाल कहते हैं कि इसी साल अक्टूबर से सेल्स के आंकड़ों में सुधार देखा जा सकता है. डिमांड बढ़ाने के लिए साल के अंत तक गाड़ियों पर डिस्काउंट दिए जाने लगेंगे. उनका कहना है कि चुनावों से पहले लोग गाड़ियां नहीं खरीदना चाहते थे, लेकिन अब चुनाव हो चुके हैं तो लोग गाड़ियां खरीदेंगे. हालांकि, उन्होंने ये साफ किया है कि सेल्स में कोई बड़ी तेजी नहीं आएगी. धीमी रफ्तार का सिलसिला अगले साल अप्रैल तक चलेगा.

बजट के जरिए मोदी सरकार का दखल जरूरी हो गया है

ऑटोमोबाइल सेक्टर उस प्वाइंट पर है, जहां से आगे बढ़ने के लिए सरकारी दखल जरूरी हो गया है. देखा जाए तो लोग भी इसी का इंतजार कर रहे हैं. चुनाव से पहले इस इंतजार में रुके थे कि ऑटोमोबाइल से जुड़ी कोई बड़ी घोषणा हो सकती है और अब लोग ये सोचकर गाड़ियां नहीं खरीद रहे हैं कि शायद मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के पहले बजट में ग्राहकों और ऑटोमोबाइल कंपनियों को कोई सौगात ही दे दे. सरकार इस समय दो काम कर सकती है.

- पहला ये कि गाड़ियों के लिए मिलने वाले लोन पर लगने वाले ब्याज की दर घटा दे. SIAM के डिप्टी डायरेक्टर जनरल सुग्तो सेन का भी यही कहना है कि अब वो समय आ गया है जब सरकार को दखल देकर टैक्स में कटौती की जाए, जिससे डिमांड बढ़े और सेल्स में तेजी आए. वैसे इसकी उम्मीद कम ही है, क्योंकि इसी की वजह से बैंकों की सारी कमाई होती है.

- बजट में सरकार गाड़ियों पर लगने वाला जीएसटी घटा सकती है, जिससे सीधे-सीधे कंपनियों को फायदा होगा, जिसे वह अपने मुनाफे से घटाकर अधिकतर फायदा ग्राहकों तक पहुंचाने की कोशिश करेंगी, ताकि सेल्स को रफ्तार मिले.

इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी ला सकती है सरकार

टैक्स घटाकर भले ही सरकार ऑटोमोबाइल सेक्टर को सहारा दे दे, लेकिन इससे लॉन्ग टर्म में फायदा होता नहीं दिख रहा है. वैसे भी बड़े शहरों में गाड़ियां इतनी अधिक हो चुकी हैं कि अब जरूरत है गाड़ियों की बिक्री पर लगाम लगाने की. वहीं दूसरी ओर, इन गाड़ियों की वजह से प्रदूषण की समस्या अलग से नाक में दम किए हुए है. मोदी सरकार इस बार के बजट में इस समस्या का निदान कर सकती है. मुमकिन है कि मोदी सरकार इस बार के बजट में इलेक्ट्रिक व्हीकल को लेकर किसी पॉलिसी की घोषणा कर दे. इससे सबसे बड़ा फायदा तो यही होगा कि प्रदूषण पर लगाम लगाना आसान हो जाएगा, जो दिल्ली जैसे शहरों की सबसे बड़ी समस्या है.

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