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Updated: 13 मई, 2015 12:34 PM
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हिंदुस्तानी दुनिया भर में सोने के सबसे बड़े खरीदार हैं. भारत ने 2014-15 में करीब 850 टन सोना आयात किया. अधिकारियों का यह भी अनुमान है कि देश में करीब 175 टन सोने की तस्करी की गई. अकेले मार्च, 2015 में ही 121 टन सोने का आयात किया गया, जो मार्च, 2014 के मुकाबले 48.5 टन ज्यादा है.  इतनी भारी-भरकम मात्रा के बावजूद वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, भारत के सरकारी खजाने में सिर्फ 557.7 टन सोना है. सोने के सरकारी भंडार के मामले में भारत 11वें स्थान पर है, जबकि अमेरिका के पास 8,133.5 टन सोने का भंडार है और वह दुनिया में पहले नंबर पर है. तो फिर आयात किया गया सैकड़ों टन सोना आखिर जाता कहां है? तकरीबन 22,000 टन सोना व्यक्तियों, परिवारों, मंदिरों और न्यासों के पास हैं. सोने का यह भंडार शायद दुनिया में सबसे बड़ा है.

अमीर मंदिर

इस विशाल भंडार का एक बड़ा हिस्सा मंदिरों के ट्रस्टों के पास देवताओं के आभूषणों, सिक्कों और सोने के बिस्कुटों के रूप में जमा है, जिसके 3,000 टन से भी ज्यादा होने का अनुमान है. हालांकि किसी भी मंदिर का प्रबंधन सोने के इस भंडार के बारे में सही-सही आंकड़ा बताने के लिए तैयार नहीं है. अर्थशास्त्री सोने के इस भंडार को निष्क्रिय मानते हैं, जिसका हमारी अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं है. मोदी सरकार सोने के इस भंडार को सक्रिय पूंजी में बदलना चाहती है और इन भंडारों को निवेश का विकल्प बनाकर इन्हें मुद्रा में बदलने की योजना बना रही है. निवेश के ये विकल्प हैः सोने को बैंकों में जमा करके ब्याज कमाना और सोने के बॉन्ड, जिन्हें बाद में बेचा जा सके. सरकार के कब्जे में आने के बाद निष्क्रिय पड़ी यह पूंजी सोने के आयात खर्च को कम कर सकती है और इस तरह वित्तीय घाटे को भी कम करने में मददगार हो सकती है.

सबकी सहमति नहीं

लेकिन इस योजना पर कोई भी हामी भरने के लिए तैयार नहीं है. मंदिरों के ट्रस्टों का कहना है कि उनकी तिजोरियों में पड़ा सोना भक्तों का सदियों से चढ़ाया जाता रहा चढ़ावा है. मसलन, तिरुअनंतपुरम में श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर की तिजोरियों को ही लें. माना जाता है कि यहां सोने का अथाह भंडार है, जिसका मूल्य हिंदुओं के सबसे अमीर माने जाने वाले, आंध्र प्रदेश में तिरुमला स्थित श्री वेंकटेश मंदिर से भी ज्यादा है. गुरुवायूर स्थित श्री कृष्ण मंदिर और सबरीमाला स्थित भगवान अयप्पा मंदिर (दोनों केरल में) के बारे में माना जाता है कि उनके पास हजारों करोड़ रु. मूल्य वाले सोने का खजाना है. लेकिन त्रावणकोर, कोचीन और मालाबार देवस्वम बोर्ड इस योजना के खिलाफ हैं. ये बोर्ड केरल में 3,890 मंदिरों की देखरेख करते हैं. उन्हें डर है कि बैंक उन्हें सोने की सिल्लियों या पट्टियों में बदल देंगे, जिससे उनका मूल्य खत्म हो जाएगा.

दरअसल, त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड के एक सूत्र का कहना है कि भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने जो आभूषण दान में दिए थे, उन्हें सोने की सिल्लियों में बदलकर लौटा दिया गया था. कुशल कारीगरों के अभाव के कारण उन्हें दोबारा आभूषणों में तब्दील नहीं किया जा सका. कुछ मंदिरों के ट्रस्ट भगवान को चढ़ाए गए सोने पर ब्याज कमाने का विरोध करते हैं. केरल के मुख्यमंत्री उम्मन चांडी, जो खुद ईसाई हैं, वे भी सोने का मुद्राकरण करने के खिलाफ हैं. वे कह चुके हैं, "हम भक्तों और मंदिरों की सहमति के बगैर केंद्र सरकार को श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर या किसी भी अन्य पूजा स्थल के बहुमूल्य आभूषणों को हाथ लगाने की इजाजत नहीं देंगे."

इस मामले में तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) एकमात्र अपवाद है, जो आंध्र प्रदेश में श्री वेंकटेश्वर मंदिर का प्रबंध देखता है. केंद्रीय बैंकों से इतर इसे दुनिया में सोने के सबसे बड़े भंडार का मालिक माना जाता है. हाल के वर्षों में टीटीडी ने सोने के आभूषणों को 22 कैरट के सिक्कों में बदलने के लिए मुंबई की टकसाल भेजना शुरू किया है. इन सिक्कों को पूरी दुनिया में भक्कों को बेचा जाता है. भगवान को चढ़ाए गए सोने के जेवर बैंकों को दे दिए गए हैं. इन्हें टकसाल में गलाकर और 0.995 ग्रेड तक शुद्ध बनाकर सोने के बिस्कुटों के रूप में जौहरियों को उधार दे दिया जाता है और उनसे ब्याज कमाया जाता है. जमा की अवधि खत्म हो जाने के बाद उन्हें सोने के रूप में ही वापस किया जाता है, न कि नगदी के रूप में.

वित्तीय विश्लेषकों का कहना है कि दान के रूप में प्राप्त सारे सोने को गलाकर सोने की ईंटों, छड़ों या सिक्कों में तब्दील कर देना चाहिए और हर महीने उनकी नीलामी कर देनी चाहिए. इससे जो पैसा प्राप्त हो, उसे संबंधित धार्मिक ट्रस्टों के बैंक खातों में जमा कर देना चाहिए. लेकिन सोने की इस नई अर्थव्यवस्था की शुरुआत करने के लिए पहले आस्था में बदलाव लाने की जरूरत है.

(इस आर्टिकल के लेखक अमरनाथ के. मेनन हैदराबाद में इंडिया टुड़े के सीनियर एडिटर हैं)

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