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Updated: 17 जुलाई, 2016 12:39 PM
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साठ साल के हुए शायर नवाज़ देवबन्दी. मुबारकबाद देने पहुंचे संत मोरारी बापू, दरवेश शायर और कवि गोपालदास नीरज. साथ में कई कवि और शायर भी. खूब मजमा जमा और जश्न मना. जश्न ए नवाज़ जश्न ए कलाम बन गया और एक खूबसूरत शमा गुलज़ार हो गई.

सत्य साईं इंटरनेशनल ऑडिटोरियम में जश्न की शाम का आग़ाज़ हुआ 'ऐ मेरे वतन के लोगों' से और एख्तेताम हुआ मोरारी बापू के संबोधन से. तमाम शायरों ने अपने कलाम के गुलदस्ते मोरारी बापू को भेंट किये और आखिर में बापू ने ये कह कर सबको गदगद कर दिया कि उनकी इच्छा तो कर्बला के मैदान में रामकथा करने की है. वो युद्ध और शहादत के मैदान कर्बला में कथा के ज़रिये 'करभला' चाहते हैं.

मोरारी बापू ने कहा कि एक ही मंच पर नए नौजवान क्षितिज और नदीम जैसे शायरों के साथ अधेड़ अनुभवी शायरों और बुज़ुर्ग शायरों को एकसाथ सुनने का अनुभव ऐसा ही रहा जैसे किसी मंदिर में मङ्गला, श्रृंगार और शयन आरती एकसाथ हो रही हो.शायरों के कलाम पीर पैगम्बर की वाणियों की तरह पवित्र हैं क्योकि दोनों ऊपर से जेहन में उतरते हैं. सबका भला करने और सोचने का सन्देश. पर हमें ध्यान रहे कि जो हम सरेआम बोलते हैं, वही बन्द कमरों और निजी बातचीत में भी बोलना चाहिए. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे एकमुखी लोग और रुद्राक्ष दुर्लभ होते जा रहे हैं. ये हमारे देश को किसकी नज़र लग गई.

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 करबला में राम कथा क्यों सुनाना चाहते हैं मोरारी बापू...

बापू ने कहा कि हर समस्या का समाधान दुनिया में पहले से मौजूद है. ज़रूरत उसे पहचानने की है. ईश्वर ने प्यास से पहले पानी बनाया और भूख से पहले अन्न. वरना ईश्वर को ईश्वर कहलाने का हक़ नही होता. ऐसा ही सार्वभौम गुण कविता, शायरी और कला में है.

गोपाल दास नीरज भी जश्न के मेहमान बने और जब कहना शुरू किया तो सब भाव विभोर. हालांकि शरीर से कमज़ोर लेकिन अब भी वही हंसोड़ चुटीला अंदाज़. कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे... सुनाया तो जनता वाह वाह कर उठी. खास बातचीत में नीरज जी बोले अच्छी फिल्मों का ऑफर मिले तो आज भी बेहतरीन गीत लिखूंगा.

नवाज़ देवबन्दी ने कहा जहां बापू बोलें वहां छोटों को खामोश ही रहना चाहिए. फिर मोरारी बापू के इसरार पर कलाम भी सुनाये और किस्से भी. जब मोरारी बापू ऑडिटोरियम से रुखसत हुए तो आधी रात बाकी थी और पूरे लोग भी. जयपुर से दोहों और गीत के गीतकार पवन कुमार पवन थे तो दूसरी और सहारनपुर के डीएम भी. मुशायरे के नाज़िम अनवर जलालपुरी, पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी के अलावा AMU और जामिया के कुलपति भी मौजूद रहे. मतलब, जन्मदिन का जश्न जनता के साथ कब हमकलाम और हमख्याल हो गया किसी को पता ही नहीं चला. यही इस आयोजन की सबसे बड़ी खासियत भी रही.

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लेखक

संजय शर्मा संजय शर्मा @sanjaysharmaa.aajtak

लेखक आज तक में सीनियर स्पेशल कॉरस्पोंडेंट हैं.

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