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Updated: 12 मई, 2016 03:30 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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प्रसिद्ध धारावाहिक चैनल स्टार प्लस पर पिछले कुछ महीनों से रामायण पर आधारित एक धारावाहिक ‘सिया के राम’ शुरू हुआ है. धारवाहिक के निर्माताओं का दावा है कि इसमें रामायण की कहानी सीता की दृष्टि से दिखाई जाएगी और वे अपने इस दावे पर आगे भी बढ़ रहे हैं. विभिन्न परिस्थितियां और उप-कथाएँ गढ़कर सीता के चरित्र को अधिक से अधिक उभारने का प्रयत्न किया जा रहा है. हालांकि ऐसा करने के चक्कर में मूल कथानक, पात्रों और उनके चरित्र-चित्रण आदि से काफी अनावश्यक व अस्वीकार्य छेड़खानी भी की जा रही है. सीता को कहानी की प्रमुख नायिका के रूप में प्रस्तुत करने के अन्धोत्साह में और तो और कई एक जगहों पर तो खुद राम के ही चरित्र को निम्न करके ही दिखा दिया जा रहा है. सीता को एक सशक्त, सुदृढ़, स्वाभिमानी और विदुषी महिला के रूप में प्रस्तुत करने इतना अतिवादी प्रयास किया जा रहा है कि ये गुण अवगुण प्रतीत होने लगते हैं और सीता का चरित्र अभिमानी, अड़ियल, क्रोधी और आत्ममुग्ध लगने लगता है.

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धारावाहिक सिया के राम में राम और सीता

धारवाहिक में चरित्र चित्रण ऐसा है कि सीता, राम-लक्ष्मण आदि किसी की भी बात का प्रतिवाद कर देती हैं, जबकि उनकी बात का प्रतिवाद कोई नहीं कर सकता. राम का तो चरित्र ऐसा बना दिया गया है कि उनके लिए सीता की बात ‘ब्रह्मवाक्य’ या अंतिम सत्य जैसी है. सीता की सब भूलें क्षम्य हैं. सीता को यह पसंद नहीं कि उनकी सुरक्षा के प्रति लक्ष्मण चिंतित हों, इसे वे अपना अपमान समझती हैं और इसपर अक्सर लक्ष्मण को फटकारती भी हैं. वहीँ शूर्पणखा की नाक काटने पर भी सीता लक्ष्मण को स्त्री का अपमान करने वाला कहकर फटकारती हैं. लक्ष्मण जिनका चरित्र वास्तव में अत्यधिक त्याग और समर्पण से पूर्ण है, की स्थिति एक नौकर जैसी ही बनाकर प्रस्तुत की जा रही है. ऐसा लगता है कि लक्ष्मण राम-सीता के गुलाम बनकर वन में आए हों. और राम! सीता को ये सब करते हुए या तो मौन देखते हैं या फिर उन्ही के पक्ष में उतर पड़ते हैं. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि राम का चरित्र ‘जोरू (सीता) के गुलाम’ जैसा है और लक्ष्मण का चरित्र इन दोनों के गुलाम जैसा.

खैर! सीता की स्त्रीवादी सोच तो आधुनिक सन्दर्भों से प्रभावित है, यह समझा जा सकता है. लेकिन, उसे उतना ही प्रभावित दिखाया जाना चाहिए, जिससे मूल कथानक को क्षति न पहुँचती हो. धारावाहिक के निर्माता-निर्देशकों को याद रखना चाहिए कि वे उस रामायण की कथा को दिखा रहे हैं, जो इस देश के लोकमानस में सुप्रतिष्ठित है. उसकी एक-एक बारीकी से देश सुपरिचित है. अतः उस कथा में आज के विचारों को घुसाने की जबरन कोशिश कतई स्वीकार्य नहीं हो सकती. रही बात सीता के चरित्र की तो उसे अलग से नकली प्रसंग गढ़कर महान सिद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं है. क्योंकि वो अपने वास्तविक अर्थों में ही अत्यंत श्रेष्ठ और महान है. उन्हें रामानंद सागर की रामायण से प्रेरणा लेनी चाहिए जिसके राम-सीता के चरित्र इतने वास्तविक और सच्चे थे कि शूटिंग पूरी करके निकलने पर सैकड़ों-हजारों लोग उनके आगे दंडवत हो जाते थे.

क्या 'सिया के राम' के साथ ऐसा हो रहा है या हो पाएगा?

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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