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Updated: 23 अक्टूबर, 2015 01:27 PM
गोपी मनियार
गोपी मनियार
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कहते हैं गुजरात में दूध की नदियां बहती हैं, लेकिन साल की एक रात ऐसी भी है जब गुजरात में दूध की नहीं घी की नदियां बहती हैं. गुजरात के गांधीनगर में एक छोटा सा गांव है रूपाल. हर साल यहां पल्ली उत्सव मनाया जाता है, जिसमें मां वरदायिनी की पूजा की जाती है.

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                                                     नवरात्रि की आखिरी रात मनाया जाता है पल्ली उत्सव

पल्ली एक प्रकार का लकड़ी का ढ़ांचा है जिसमें 5 ज्योत होती हैं, इस पर घी का अभिषेक किया जाता है. सामान्य तौर पर माता की ज्योत में घी अर्पण किया जाता है, लेकिन पल्ली उत्सव में जिस तरह घी का चढ़ावा चढ़ता है वो अपने आप में अनोखा है. हर साल करीब 5 लाख किलो शुद्ध घी माता पर अर्पित किया जाता है. घी चढ़ाकर लोग अपनी मन्नत मांगते हैं.

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                                                              बैरल और टैंकरों में आता है घी

हर साल आखरी नवरात्रि पर मां वरदायिनी की रथ यात्रा पूरे गांव में घूमती है. करीब 12 लाख लोग मां के दर्शन करते हैं और बाल्टियां और बैरल भर घी माता पर अर्पित करते हैं. गांव में 27 चौराहे हैं जहां बड़ बड़े बर्तनों, बैरल में घी भरकर रखा जाता है, जैसे ही पल्ली वहां आती है, लोग इस घी को माता की पल्ली पर अभिषेक करते हैं. अभिषेक करते ही ये घी नीचे जमीन पर गिर जाता है, जिसपर इस गाँव के एक खास समुदाय का हक रहता है. इस समुदाय के लोग इस घी को इकट्ठा कर इसे पूरे साल इस्तमाल करते हैं.

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                                                   सड़क पर फैला पानी नहीं...शुद्ध घी है
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                                                               घी इकट्ठा करते लोग

चढ़ावा चढ़ाते वक्त लोग इस घी से नहा जाते हैं, पर बड़े आश्चर्य की बात है कि इस घी का दाग कभी भी कपड़ों पर नहीं पड़ता. जमीन पर पड़े इस घी पर कभी कोई जानवर मुंह तक नहीं मारता. ये बातें जितनी हैरान करती हैं, उतनी ही यहां आने वाले भक्तों की मन्नतों की कहानियां. कहते हैं यहां आने वाले भक्तों की हर मन्नत पूरी होती है.

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                                                                  सड़कों पर बहता घी

रुपाल गांव की वरदायिनी माता की कहानी पांडवों से जुडी हुई है. ये पांच ज्योत पांडवों को ही दर्शाती हैं. पांडव अपने अज्ञातवास में यहीं आकर रुके थे और अपने शस्त्र छुपाने के लिए उन्होंने वरदायिनी मां का आह्वान किया था. घी का अभिषेक करने पर वरदायिनी मां उत्पन्न हुईं और पांडवों को वरदान दिया. पांडवों ने तब संकल्प किया था की हर नवरात्रि की 9वीं रात को वरदायिनी माता के रथ को निकालकर उसे घी का अभिषेक करवायेंगे तब से यह परंपरा चली आ रही है.

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इस परंपरा से लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं ये और बात है लेकिन घी व्यापारियों का धंधा तो चोखा ही होता होगा. बरहाल ये बात सुनने में बहुत अनोखी लगती है और गर्व का अनुभव भी कराती है, कि भले ही एक रात के लिए सही लेकिन भारत के एक गांव में घी की नदियां बहती हैं.

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लेखक

गोपी मनियार गोपी मनियार @gopi.maniar.5

लेखिका गुजरात में 'आज तक' की प्रमुख संवाददाता है.

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