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Updated: 21 जून, 2016 06:01 PM
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का ऊंघता सा कस्बा कैराना, कभी संगीत की लहरियों सा लहराता था. सुबह भैरव और तोड़ी के सुरों से और शाम मारवा यमन की सरगम से होती थी. आज यहां अमन के सुरों पर खतरा मंडरा रहा है. कैराना यानी गुजरे जमाने का किराना. किराना घराना के उस्तादों के साथ रियाज करता और लय और ताल के ख्यालों में खोया. आज तो लगता है किराना की दुकान जैसा हो गया है जहां वोटों का सौदा खुले आम हो रहा है और हर सियासी पार्टी या नेता अपना माल बेचने को उतावला है.

मुजफ्फरनगर जिले में श्यामली से लगा कैराना. पिछली सदी में अब्दुल करीम खान साहेब इसी कस्बे में पैदा हुए. करीम खान साहेब ने यहीं गोपाल नायक की संगीत परंपरा को आगे बढ़ाते हुए किराना घराने की नींव रखी. खान साहेब की गायकी की धूम दुनिया में मची तो किराना घराना भी चमका और साथ ही लोगों की जबान पर आया इस कस्बे का नाम. लेकिन जब घराने का नाम चला तो खूब चला. सदी बदली, जमाना बदला और उस्ताद मुंबई चले गये. नई पीढ़ी की संगीत में दिलचस्पी नहीं रही तो छोटे-मोटे धंधे करने लगे. जमाने ने घराने को तो याद रखा लेकिन किराना को भूल गया. लिहाजा संकोच करते हुए इस शहर ने भी अपना नाम बदल लिया और किराना से कैराना बन गया.

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किराना घराने की नींव रखने वाले उस्ताद अब्दुल करीम खान साहेब

कैराना की सड़कों पर भटकते हुए हम भी जा पहुंचे किराना की गलियों में जहां इतिहास की परछाईं तक नहीं दिखी. वहीं जमीन, कमोबेश घर का स्ट्रक्चर भी जस का तस है. कच्चा मकान पक्का हो गया है और छतें ऊंची हो गईं हैं लेकिन नींव धंस चुकी है. अब कोई यहां गाना-बजाना नहीं करता. सिर्फ यादें और बातें बची हैं. जब हमने घराने के वारिसों से पूछा कि आफताब-ए-मौसिकी अब्दुल करीम खान साहब के वंशजों के पास उनकी यादगार के तौर पर कोई तानपूरा, साज या कुछ और है? तो जवाब मिला कि अब तो कुछ नहीं हैं. जो गाना बजाना करते हैं वो तो मुंबई रहते हैं. यहां तो सिर्फ एक तस्वीर है अब्दुल वाहिद खान साहब की.

गाने की बात चलीं तो वाहिद खान साहब के पोते शकील ने भैरव की एक स्थायी सुनाई. अल्ला हो अल्ला...सुर टूटे फूटे और तान और सरगम निहायत कमजोर. इन्हीं के पुरखों की तान सरगम के आगे कभी सब नतमस्तक हो जाते थे. जिनके दाद की झड़ी लग जाती थी अब उनके वंशधर सुर ताल से वास्ता नहीं रखते. जाहिर है रियाज ना करों तो सुरों का खजाना मुट्ठी में बंद रेत की तरह रीता हो जाता है. रियाज इबादत है और गाना-बजाना पूजा, तपस्या और साधना.

इस घराने का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं सुनते जाइए. गोपाल नायक की अगली पीढ़ी थी नायक भन्नू और ढोंढू की. तीसरी पीढ़ी से किराना घराने को पहचान मिली उस्ताद ग़ुलाम अली और ग़ुलाम मौला से. इनके शिष्य हुए उस्ताद बंदे अली खान और ये चौथी पीढ़ी थी. फिर आये इस घराने के संस्थापक उस्ताद अब्दुल करीम खान. यहीं से गोपाल नायक की परंपरा वाले इस संगीत घराने का नाम पड़ा किराना घराना. अगली पीढ़ी में उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, सुरेश बाबू माने और सवाई गंधर्व जैसे गायक भी थे, तो सुरश्री केसरबाई केरकर और रोशनआरा बेग़म जैसी गायिका भी. अगली पीढ़ी के नामों में बेगम अख्तर, हीरा बाई बडोदेकर, गंगूबाई हंगल और भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी भी शुमार थे. इसके बाद अगली पीढ़ी के शाहकार थे मोहम्मद रफी जिन्होंने किराना घराने के उस्तादों से गायकी का हुनर सीखा.

इस घराने की मूल स्थापना हिंदुओं जैसे नाम वाले गुरू ने की थी. इसकी औपचारिक स्थापना का श्रेय एक मुस्लिम जैसे नाम वाले उस्ताद को गया था. इस घराने से हर तरह के नाम वाले गायक और संगीतज्ञ निकले. कभी इस घराने ने संगीत की दीक्षा देने में कोई भेदभाव नहीं किया. सब गुरु भाई और गुरु बहन थे. क्योंकि वो सब जानते थे कि संगीत दुनिया को जोड़ता है तोड़ता नहीं.

भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी और गंगूबाइ हंगल किराना घराने के मशहूर नाम रहे. एक बार पंडित भीम सेन जोशी ने गंगू बाई से कहा था कि `गंगूबाई असली किराना घराना की गायकी तो तुम्हारे पास है हमारे पास तो बस किराने की दुकान है.` तब हल्के फुल्के अंदाज में कही गई इस बात को आज के सियासतदानों ने शिद्दत से सच कर दिखाया. अब तो कैराना की फिजां में संगीत नहीं बल्कि सियासत के सुर गूंजते सुनाई पड़ते हैं. जिनमें विवादी सुरों की भरमार है. अब इस खटराग में रस रंग कैसे आयेगा?

लेखक

संजय शर्मा संजय शर्मा @sanjaysharmaa.aajtak

लेखक आज तक में सीनियर स्पेशल कॉरस्पोंडेंट हैं.

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