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Updated: 15 मार्च, 2019 10:18 PM
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क्राइस्टचर्च (न्यूजीलैंड) शूटिंग. एक ऐसा मामला जहां जुमे की नमाज पढ़ने आए 49 लोगों को बेरहमी से मार दिया गया. जबकि करीब 50 अन्य घायलों का क्राइस्टचर्च शहर में ही इलाज चल रहा है. शहर की दो मस्जिदों में ये गोलीकांड हुआ और अगर पुलिस तत्परता नहीं दिखाती तो शायद ये हमला और भी खतरनाक हो सकता था क्योंकि हमलावर की गाड़ी में विस्फोटक भी थे. इस हत्‍याकांड को अंजाम देने वाले ब्रेंटन टैरेंट ने जिन बंदूकों से गोलियां बरसाईं, उस पर बंदूक पर अपने मंसूबे लिख रहे थे. इन जुमलों का संबंध इतिहास में ईसाइयों और मुसलमानों के बीच हुए धर्म युद्धों से था. दिलचस्‍प बात ये है कि ओसामा बिन लादेन ने भी अमेरिका पर हमला करने के लिए 9-11 की जो तारीख चुनी थी, वह भी इतिहास में दर्ज एक ऐसे ही विभत्‍स धर्म युद्ध से जुड़ी हुई थी.

ओसामा और न्यूजीलैंड के शूटर में भी समानता है-

भले ही आपको ये जानकर अजीब लगे, लेकिन ओसामा बिन लादेन और न्यूजीलैंड के शूटर Brenton Tarrant के बीच एक बहुत गहरी समानता है. दोनों Ottoman empire के दौर और उसकी लड़ाई को याद कर रहे थे. Ottoman का अंत मान जाता है 11 सितंबर 1683 की लड़ाई से जब मुस्लिम फौज विएना तक पहुंच गई थीं और उन्हें इसी दिन पराजय मिली थी. अगर ये न होता तो मुस्लिम फौज पूरा यूरोप काबू कर चुकी होतीं. एक बार जब पराजय शुरू हुई तो ईसाइयों ने पूरे यूरोप में ईसाई धर्म की शुरुआत की और मुसलमानों को भगाना शुरू किया.

पर ऑटोमन साम्राज्य की लड़ाई खत्म नहीं हुई. ओसामा बिन लादेन ने अपने सबसे बड़े हमले के लिए 11 सितंबर का दिन चुना था. वो इसी लड़ाई को दिखाता था. ऑटोमन साम्राज्य की लड़ाई न जाने कितने सालों से चल रही है. न्यूजीलैंड वाले हत्यारे ने अपनी बंदूक पर विएना में हुई लड़ाई का जिक्र किया. उसकी बंदूक में कई धार्मिक लड़ाइयों का जिक्र था.

ये फोटो Brenton Tarrant ने अपने ट्विटर पर शेयर की थी जिसमें विएना 1683 लिखा था.ये फोटो Brenton Tarrant ने अपने ट्विटर पर शेयर की थी जिसमें विएना 1683 लिखा था. इस अकाउंट से वैसे तो पहले कोई ट्वीट नहीं किया गया था, लेकिन हमले के पहले 39 ट्वीट थे जिसमें ईसाई और मुस्लिम धर्म की असमानताओं और बर्थ रेट से लेकर कत्लेआम तक कि जानकारी थी.

जहां ओसामा ने तारीख चुनी थी वहीं ब्रेन्टॉन ने साल चुना जिसे ईसाई और मुस्लिम समाज के खिलाफ चल रही सदियों पुरानी लड़ाई को दिखाया गया. ये बताता है कि ऑटोमन साम्राज्य की लड़ाई अभी तक खत्म नहीं हुई है.

क्राइस्‍ट चर्च में जिन लोगों को मारा गया वो सभी मुस्लिम थे, और नमाज पढ़ने आए थे. मरने वालों में महिलाएं और बच्‍चे भी शामिल हैं. इस हत्‍याकांड को अंजाम देने वाले शख्‍स ने पहले ही अपना मेनिफेस्‍टाे इंटरनेट पर डाल दिया था, जिसमें उसने साफ कहा था कि वह जल्‍द ही एक हमला करेगा. क्‍यो‍ंकि गोेरे लोगों की जमीन पर हमलावर मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है. आस्‍ट्रेलियाई मूल के युवक ब्रेंटन की सनक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने हत्‍याकांड को अंजाम देने से ठीक पहले फेसबुक पर इसका लाइव वीडियो प्रसारित करना शुरू किया. उसने अपनी कार में पहले म्‍यूजिक बजाया फिर गोलियां बरसाता हुआ, मस्जिद में दाखिल हुआ. उसने घायल हुए लोगों पर दोबारा गोलियां चलाईं ताकि वह उनकी मौत सुनिश्चित कर सके. वह आराम से अपनी कार में जाकर बैठा और उसे दूसरी म‍स्जिद की ओर ले गया. जहां उसने फिर मौत का तांडव किया. यहीं पर पुलिस ने साहस दिखाते हुए उसे कब्‍जे में ले लिया.

ईसाई धर्म और इस्‍लाम की जड़ एक, तो इतनी नफरत क्‍यों?

न्यूजीलैंड, मस्जिद, आतंकी हमलाइस्लाम और ईसाई धर्म एक जैसा है फिर दोनों को मानने वाले एक दूसरे से नफरत क्यों करते हैं.

1. अब्राहमिक धर्म जो एक जैसी मान्यता रखते हैं-

दोनों ही धर्म एक भगवान को मानते हैं जो पिता के रूप में हैं और उसी भगवान के चलते संसार में सब कुछ मुमकिन हो सका. दोनों ही अब्राहमिक धर्म हैं, यानी दोनों ही धर्म एक मसीहा अब्राहम को मानते हैं. ये इस्लाम और ईसाई दोनों ही धर्म में पूज्यनीय हैं. दोनों धर्म मानते हैं कि भगवान ने खुद को अब्राहम के सामने पेश किया था और एक भगवान ही है जो नैतिक कानून बनाता है और गुनाह करने वाले को माफ भी कर सकता है.

2. आदम और हव्वा की कहानी दोनों धर्मों की शिक्षा-

ईसाई धर्म और इस्लाम दोनों में ही आदम और हव्वा (एडम एंड ईव) की कहानी मानी जाती है, ये कहा जाता है कि ईव ने ही पहले उस पेड़ से फल खाया था जिसे नहीं खाना था. एडम और ईव की कहानी इस्लाम में भी गुनाह की शिक्षा देती है और ईसाई धर्म में भी.

3. पैगंबरों पर यकीन-

दोनों ही इस्लाम और ईसाई धर्म में मसीहों की पूजा की जाती है दाऊद/दाउद (David), नूह (Noah), इब्राहिम/अब्राहम (Abraham), मूसा (Mosis) दोनों ही धर्मों के ग्रंथों में मिल जाएंगे. कुरान में भी बाइबल की तरह ही लिखा गया है कि नूह को बाढ़ से बचाने वाले भगवान थे, इब्राहिम को संतान से नवाज़ने वाले भी भगवान थे, मूसा को मिस्र से भगाने वाले भी भगवान थे, वर्जिन मैरी को संतान देने वाले भी भगवान थे और उनका रूप आज भी मौजूद है. हां, इन सभी पैगंबरों की कहानियां अलग-अलग हैं और थोड़ा अंतर है कुरान में इब्राहिम और बाइबल में इब्राहिम में, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ये बिलकुल अलग ही हैं.

यहां तक कि कुरान में ये लिखा है कि तोरह (यहूदियों का धर्मग्रंथ) और गोस्पल (ईसाई धर्मग्रंथ) प्रेरणा लेने लायक हैं और कुरान मुसलमानों को कहती है कि उनसे कहें, 'हमारा भगवान और आपका भगवान एक है, उसके आगे हम नतमस्तक हैं.' (29.46). अगर कुरान में ये लिखा है और बाइबल भी इसी तरह की शिक्षा देती है तो ये दो धर्म अलग कैसे?

4. वर्जिन मैरी और जीसस-

कुरान और बाइबल दोनों ही कहती हैं कि वर्जिन मैरी ने ईसा मसीह यानी जीसस को जन्म दिया था. दोनों ही ग्रंथ कहते हैं कि मैरी पवित्र थीं और ईसा मसीह भी पवित्रता का प्रतीक हैं. हालांकि, कुरान ईसा मसीह को दैवीय नहीं मानती है, लेकिन फिर भी वर्जिन मैरी और जीसस का होना स्वीकार करती है. बाइबल के अनुसार जीसस ही दैवीय शक्ति हैं और कुरान कहती है कि जीसस पैगंबर हैं.

5. शैतान की परिभाषा भी एक जैसी-

इस्लाम और ईसाई धर्म दोनों में ही शैतान कि परिभाषा भी एक जैसी ही है. दोनों ही धर्म मानते हैं कि वो बुरा है और वो अपनी ओर सभी इंसानों को करने की फिराक में रहता है. जहां ईसाई धर्म में ये माना जाता है कि शैतान एक फरिश्ता था जो अपने कर्मों के कारण नरक में भेज दिया गया और वो अब बुराई का प्रतीक बन गया है वहीं कुरान ये कहती है कि शैतान वो इंसान था जिसने इब्राहिम के आगे झुकने से मना कर दिया था. और दोनों ही धर्म मानते हैं कि शैतान कई रूप में धोखे से लोगों को वो करने की सलाह देता है जो वो चाहता है.

6. कयामत का दिन या जजमेंट डे-

दोनों ही धर्म ये मानते हैं कि ईसा मसीह किसी दिन स्वर्ग से लौटेंगे. और दोनों ही धर्म ये मानते हैं कि एक कयामत का दिन आएगा जब सबके गुनाहों का फैसला होगा. उस दिन कोई किसी को नहीं पहचानेगा और सब अपनी सज़ा भुगतने के लिए खड़े होंगे. जिन्होंने अच्छे काम किये होंगे उन्हें स्वर्ग भेजा जाएगा और जिन्होंने गलत उन्हें नर्क ये वो समय होगा जब दुनिया खत्म हो चुकी होगी.

इस्लाम और ईसाई धर्म में असमानताएं भी हैं जैसे ईसाई धर्म ओरिजिलन सिन यानी सबसे बड़े गुनाह का जिक्र करता है जो ईव ने किया था और इस्लाम इसे नकारता है. ईसाई धर्म त्रिमूर्ती में विश्वास रखता है यानी पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा (“Trinity = God the father + God the son + God the holy spirit.”) और इस्लाम नहीं. और भी कई तरह कि असमानताएं हैं पर शायद वो असमानता जिसके कारण दोनों धर्म एक दूसरे के विपरीत हो जाते हैं वो हैं पूजा करने का तरीका.

इस्लाम और ईसाई धर्म की जड़ एक होने के बावजूद एक-दूसरे के जानी दु‍श्‍मन हैं-

इस्लाम और ईसाई धर्म जो एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह दिखते हैं वो हमेशा से ही एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. भले ही इन दोनों धर्मों में बहुत सी समानताएं हों, लेकिन फिर भी इनके बीच के युद्द दुनिया की सबसे खूनी लड़ाइयों में से एक रहे हैं.

द होली वॉर कही जाने वाली ये लड़ाई Crusades (धर्मयुद्ध) के तौर पर लड़ी जाती थी. वैसे तो येरुस्लम विवाद और ईसाइयों द्वारा यूरोप से मुसलमानों को बाहर निकाले जाने वाले घटना इतिहास में बहुत ज्यादा पुरानी नहीं कही जाती, लेकिन एक दूसरे के राज्यों पर हमला और धर्मों के प्रति कट्टरता तो ईसा मसीह के जन्म से पहले से थी. ग्रीक, रोमन और फारसी (पर्शियन) आपस में राज्यों पर हमला करते रहते थे, लेकिन सबसे खूनी लड़ाई सन 1090 के आस-पास हुई थी जब पूर्वी ईसाई जगत (यूरोप) को बचाने के लिए पोप अर्बन II ने धर्मयुद्ध का एलान किया था. अगले 200 सालों तक कत्लेआम चलता रहा और लाखों लोगों की हत्या होती रही. इसी बीच एक ऐसा समय भी आया जब ओटोमन एम्पायर (Ottoman Empire) का दबदबा खत्म होने लगा. लेकिन लड़ाई रुकी नहीं.

येरुसलम जिसे मुस्लिम और ईसाई धर्म दोनों ही पाक मानते थे, उसे दोबारा मुसलमानों ने अपने कब्जे में ले लिया. विशेषज्ञ मानते हैं कि ईसाई धर्म की फौजों द्वारा भूमध्य - सागर के आस-पास के इलाकों में लागातर हमले ईसाई और इस्लाम धर्मों के बीच कट्टरता का कारण बने. वो दौर इतिहास के सबसे काले दौर में से एक था जिसमें कट्टरता, क्रूरता और कत्लेआम अपने चरम पर था.

इतिहास ने कई धर्मयुद्ध देखे हैं- कॉन्सटेंटिनोपल (रोम की राजधानी) का गिराया जाना, मुसलमानों को यूरोप से भगाना (उन मुसलमानों का स्पेन तक राज था और उन्हें मूर्स कहते थे). फिर उपनिवेशवाद की शुरुआत हुई और ईसाई धर्म के लोग अलग-अलग देशों में गए. दुनिया को एक नए नजरिए से देखा गया. मुसलमानों ने भी पलायन शुरू किया कुछ समय के लिए इन दोनों धर्मों के बीच शांति हो गई, लेकिन 11 सितंबर 2001 ने फिर से ईसाई और इस्‍लामी दुनिया को आमने-सामने ला खड़ा किया. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद एक बार फिर ईसाई और मुस्लिम धर्म की कट्टरता फिर उफान पर आई. ईसाई और मुसलमानों के बीच का द्वंद एक बार फिर गहरा गया और अभी तक जो भी होता आ रहा है, उसे मॉर्डन क्रूसेड ही कहा जाएगा.

अब मॉर्डन इस्लाम और ईसाई धर्म के उग्र संगठन टीवी, वीडियो, ऑडियो आदि का सहारा लेकर लोगों को भड़काते हैं और उनका हथियार तलवार नहीं बल्कि शब्द होते हैं. कई मौलाना, कई पादरी इस बहस को आगे बढ़ाए हुए हैं और कहीं न कहीं इन दोनों धर्मों की कट्टरता लोगों तक पहुंचा रहे हैं.

दोनों ही धर्म दुनिया के सबसे बड़े धर्म हैं और दोनों ही लगभग एक जैसी सोच रखते हैं, लेकिन इन धर्मों को मानने वाले खुद को दूसरे से अलग मानते हैं और शायद यही कारण है कि चार्ली हेब्दो हमला, न्यूजीलैंड शूटिंग या वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आतंकी हमले जैसी हरकतें होती हैं. ये धर्मांध लोग ये नहीं समझ पाते कि उनके धर्म का असली मकसद क्या था और क्या सिखाया जाता है उनके ग्रंथों में. तभी तो प्रार्थना कर रहे मुसलमानों पर इस तरह से हमला किया गया और खुद को अलग साबित करने की कोशिश की गई. जाति, धर्म, रूप, रंग, समाज के आधार पर होने वाले ये गुनाह पता नहीं कब रुकेंगे. पता नहीं कब लोग अपने धर्मों का असली मतलब समझ पाएंगे.

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