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Updated: 09 जनवरी, 2023 06:12 PM
ओम प्रकाश सिंह
 
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अयोध्या सरकार, प्रभु श्रीराम को वर्षों तक अपने सुरों से सुलाने वाले गवैया गुरु खुद सो गए. उन्हें अयोध्या संगीत परंपरा का प्रतिष्ठापक कहा जाता है. बाबा ने उस गायन परंपरा का नेतृत्व किया जो लवकुश ने प्रतिष्ठित की थी. कनक बिहारिणी व बिहारी जू सरकार की युगल उपासना में उन्होंने अनेक पद रचे और उन्हें गाया. कनक भवन मंदिर में वर्षों तक उनके गायन से भगवान मुदित होते रहे और श्रोता धन्य. उन्होंने ब्रह्मर्षि मानस दास जैसे कई महान संगीतज्ञ शिष्य दिए. गौरीशङ्कर बाबा ने किसी परंपरा में नहीं सीखा था. मार्गी परंपरा उनमें सहज ही घट गई. अलबत्ता, उन्होंने किसी परंपरा का खुद को माना नहीं. परंपरा की बात आने पर वह कहते, 'हम ई कुल नाय जानित. संगीत कै विद्वान लोग जानैं.'

Ayodhya, Baba, Music, Bhajan, Shree Ram, Ayodhya, Culture, Deathगवैया गुरु का जाना अयोध्या के लिए बड़ी क्षति है

पत्रकार व दार्शनिक अरुण कुमार पांडेय कहते हैं कि बाबा गौरीशङ्कर संगीत की पारमिता थे. उनके साथ बिताए कुछ क्षणों की अनूभूति बंया करते हुए कहते हैं कि समाज साधुता 'चीन्ह' ले तो वह संदिग्ध हो जाती है. समाज पर्याय और परिभाषा में साधुता खोजता है जबकि वह इससे परे है. साधुता के अनेक पर्याय और परिभाषा हो सकते हैं लेकिन यह पर्याय साधुता के लिए अनिवार्य नहीं है. अपनी साधुता को जनवाने व मनवाने के विपरीत साधु तो ऐसे आयोजन करते हैं जिससे पर्याय और परिभाषा वाली भेद दृष्टि वहीं उलझकर रह जाये, उन तक पहुंच न सके.

सरयू गोलाघाट की ऊपरी सीढ़ी से सटा एक कमरा है. पूरा कमरा खाली डिब्बों से भरा है. उसमें बैठा एक करीब 90 वर्ष का बुजुर्ग 'अपलाप' दोहरा रहा है. यह दोनों (अपलाप और भरा कमरा) ऐसे पर्याय हैं जो उन व्यक्तित्व के ठीक विपरीत हैं. 'अपलाप दोहराते' उस व्यक्ति का 'आलाप' सुनने को सरयू रातभर जागकर प्रभात की प्रतीक्षा करती है और श्री कनक बिहारी शाम ढलने की.

खाली डिब्बों से भरे कमरे वाले इन व्यक्ति ने जीवन में तृण का भी परिग्रह नहीं किया.पर्याय से साधुता देखने वाले लोग वहीं से लौट जाएंगे. भेष देखकर कोई कुछ देना भी चाहे तो खाली डिब्बों से भरा कमरा उन्हें बड़ी उदारता से मना कर देता है. यह उनका आयोजन है. दूसरों के पहल पर वह सिर्फ बात बोलते हैं या दोहराते हैं. जबकि, उनका 'आलाप' अन्तश्चेतन से उठता है.

यह हैं संगीत की पारमिता बाबा गौरीशङ्कर जी. जब वह गाना शुरू करते तो गाते-गाते सदाशिव अवस्था को प्राप्त हो जाते. अयोध्या में संत व संगीत परंपरा की करीब तीन पीढ़ी ने उन्हें सुना है और उनसे सीखा है. शास्त्रीय संगीत में रुचि रखने वाले अनेक विद्वानों का उनसे राब्ता रहे. बाबा ने पढ़ना लिखना भी दूसरे को देखकर सीखा, लेकिन लिखावट ऐसी कि हर कोई अचरज में पड़ जाए. वह देश के विभिन्न स्थानों की यात्रा करके फिर अयोध्या लौट आते. यहीं के चना, चबेना और सरयूजल से उन्होंने जीवन भर की साधना की.

बाबा का कंठ पहले खुला था, प्रपत्ति उसी के सहारे घटी. दीक्षित होकर वह वैरागी बने तो गुरु ने नाम दिया श्रीरामशरण दास. लेकिन, उनके संगीत से जुड़ चुके अवधजनों ने उनके पूर्वाश्रम नाम को बिसारा नहीं. वह गौरीशंकर के नाम से ही पहचाने जाते रहे. आगे चलकर अयोध्या के लोक ने नया नाम दिया 'गवैया गुरु जी'. यही नाम ख्यात हो गया. हमने तो उन्हें थोड़ा बहुत ही सुना है, वह भी उतार में. लेकिन, उनके संगीत का स्तर क्या रहा होगा इसकी झलक मानस दास में ही मिलती है.

हतभाग्य संगीत का! अयोध्या के उपेक्षा काल में उनका आत्यंतिक आया. तब उन्हें समझने व मूल्याङ्कन करने वाला कोई नहीं था. उन्हें संगीत मर्मज्ञ और रसिक न मिले, आस्थावान भक्त मिले, जो सुने, माथ नवाये और गए. अयोध्या के उत्कर्ष की आहट से पहले ही उनकी देह जर्जर हो गई, और फिर उनका गला रुंध गया. जब सब साधन उनके पास आये, रसिक उनके पास आये, जिज्ञासु आये, तब वह अपनी आत्यन्तिकता से बीतकर नए आरंभ की तैयारी कर रहे थे. मां का पल्लू पकड़े वह 75 साल पहले के गौरीशंकर थे, जो सारी दुनियादारी से अनजान, खुले आसमान में खड़े थे.

'अरे मन समुझि समुझि पग धरिये,

इस जग में नहिं अपना कोई परछाईं से डरिये!'

उन्हें गाते और बोलते तो बहुतों ने सुना होगा लेकिन 'कहते' कम ने ही सुना है. उन्होंने अपने बारे में ठीक-ठीक किसी से कुछ बताया नहीं, शिष्यों को भी नहीं. मानस जी चाहते थे कि उनपर कुछ लिखा जाए. जबकि वह अपने बारे में कुछ बताने को तैयार नहीं थे. भगवती के प्रति उनकी आस्था का सहज लाभ लेकर हमने उनसे एक छल किया. उनसे जाकर कहा कि भगवती का आदेश है कि आप अपने जीवन की स्मृतियां मुझसे कहें ताकि उन्हें संजोया जा सके. वह मुझे देखकर हंसने लगे.

उन्होंने कहा कि आपको छल करना नहीं आता. भगवती ने मुझसे यह तो कहा था कि पांडे जी आएंगे लेकिन यह सब बताना है, यह नहीं कहा. मैं झेंप गया. सच तो यह है कि स्मृतियों से बीतने का दर्शन जीने वाला किसी की स्मृतियां संजोने की बात कर रहा था. उन्होंने इसे भी भांप लिया था.हंसकर कहने लगे कि तुम मानोगे नहीं. नए तरीके खोजोगे. मेहनत करोगे. तुम्हारा महत्वपूर्ण समय इसमें बर्बाद न हो, मैं यह चाहता हूं. इसीलिए तुम्हें सब बता दूंगा जो तुम पूछो.

मेरी उनसे जो बातें हुईं थी उसका उल्लेख यहां नहीं करूंगा. उन बातों को संपूर्णता में कहना ही उचित होगा जोकि यहां संभव नहीं. तीन दिनों से गौरी बाबा अस्पताल में हैं. जर्जर देह के लिए उस महाचेतना का भार असह्य हो गया है, तंत्रिकाएं उनकी ऊर्जा का संवहन करने में ठिठक गई हैं. उन्हें मस्तिष्काघात हुआ है.

मैं इन दिनों अजीब मनःस्थिति से गुजर रहा हूं. कोई विषाद नहीं है, लेकिन न जाने क्या है! उन्होंने हाल में ही मुझे बुलाया था. वह बुलाना सहज बुलावा नहीं था. तड़प के तरन्नुम का सा वह अनुनाद मुझे कंपा रहा है. मानस जी से उन्होंने कहा था कि 'पांडे जी तब अइहैं जब हम मरि जाब. वे समझत नाहीं हैं कि हम ढेर दिन जिया नाय चाहित है.' वह मेरी प्रतीक्षा क्यों कर रहे थे, शायद जानता हूं. जीवन उन्होंने राग को जीया है, वह गुनगुनाते हुए जाएंगे.

लेखक

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