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Updated: 23 मार्च, 2023 05:31 PM
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विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' की बॉक्स ऑफिस पर अप्रत्याशित सफलता ने फिल्मी पंडितों के साथ बॉलीवुड के मठाधीशों को हैरान कर दिया था. कई लोगों की इसकी रिकॉर्डतोड़ कमाई पच नहीं पाई, जिसकी वजह से उन लोगों ने इसे विवादित बताकर बॉलीवुड फिल्म तक मानने से इंकार कर दिया था. लेकिन उनके इंकार को दरकिनार करके लोगों ने फिल्म को इतना प्यार दिया कि ये पिछले साल की सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली फिल्म बन गई.

15 करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 350 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. इसमें अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार और अतुल श्रीवास्तव जैसे दिग्गज कलाकारों के उम्दा अभिनय प्रदर्शन को खूब सराहा गया. यही वजह है कि अपने कंटेंट और कलाकारों के शानदार अभिनय प्रदर्शन की बदौलत ऑस्कर नॉमिनेशन की दावेदर बन गई. हालांकि, इस फिल्म को ऑस्कर के लिए नहीं भेजा गया. इसके अलावा देश में आयोजित होने वाले कई फिल्म पुरस्कार समारोहों में भी 'द कश्मीर फाइल्स' को शामिल नहीं किया गया, जिसमें फिल्म फेयर अवार्ड का नाम अहम है. इसके बावजूद विवेक अग्निहोत्री अपनी फिल्म के पक्ष में वकालत करते हैं.

650x400_032123090207.jpgफिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' को भले ही ऑस्कर नहीं मिला, लेकिन कई अहम अवॉर्ड जरूर मिले हैं.

यही वजह है कि इसे दादा साहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 2023 में बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड मिला तो इसके प्रशंसकों की बाछें खिल गईं. अब इसे एक दूसरे प्रतिष्ठित फिल्म पुरस्कार समारोह में तीन अहम अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. जी हां, जी सिने अवॉर्ड्स में 'द कश्मीर फाइल्स' का जलवा देखने को मिला है. इस फिल्म के नाम तीन अहम अवॉर्ड रहे हैं. इसमें बेस्ट फिल्म, बेस्ट एक्टर और बेस्ट स्क्रीनप्ले का अवॉर्ड शामिल है. एक विवादित विषय पर आधारित इस फिल्म को मिले अवॉर्ड ये साबित कर रहे हैं कि बॉलीवुड के मठाधीशों ने अब जनता के आगे घुटने टेक दिए हैं, वरना कल तक यही लोग इस फिल्म को अपनी इंडस्ट्री तक का मानने को तैयार नहीं थे.

सभी जानते हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कई गैंग हैं. उनके अलग-अलग सरगना हैं. वो सभी मिलकर तय करते हैं कि किसी फिल्म पुरस्कार समारोह में किसे सम्मानित किया जाना चाहिए किसे नहीं. खासकर स्टार किड्स को विशेषरुप से ध्यान में रखा जाता है. ज्यादातर अवॉर्ड उन्हीं को मिलते रहे हैं. ऐसा पिछले कुछ वर्षों तक होता रहा है. लेकिन जब से जनता जागरूक हुई है. सोशल मीडिया पर अपने विचार रखने लगी है. सही का समर्थन और गलत का खुलेआम विरोध करने लगी है. तब से बॉलीवुड के ये मठाधीश डर गए हैं. इसमें बॉलीवुड बायकॉट मुहिम की भी बहुत बड़ी भूमिका है, जिसकी वजह से कई सुपर सितारों की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर डिजास्टर साबित हुई हैं.

जनता का यही डर अब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लायक लोगों को हक दिला रहा है. वो वही फिल्में हिट हो रही हैं, जिनके कंटेंट में दम है. इसका एक असर फिल्म पुरस्कारों में भी दिख रहा है. वरना जी सिने अवॉर्ड्स में कार्तिक आर्यन को बेस्ट एक्टर, अनुपम खेर को बेस्ट एक्टर, 'द कश्मीर फाइल्स' को बेस्ट फिल्म और बेस्ट स्क्रीनप्ले कभी नहीं चुना जाता. इसके अलावा इस पुरस्कार समारोह में बेस्ट एक्टर (फीमेल) आलिया भट्ट (गंगूबाई काठियावाड़ी), परफॉर्मर ऑफ द ईयर (मेल) वरुण धवन (जुग जुग जियो और भेड़िया), परफॉर्मर ऑफ द ईयर (फीमेल) कियारा आडवाणी (जुग जुग जियो और भूल भुलैया 2), बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर (मेल) अनिल कपूर (जुग जुग जियो) को चुना गया है.

बताते चलें कि नेशनल अवॉर्ड विजेता निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' का निर्देशन किया है. फिल्म की कहानी घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन और नरसंहार की घटना पर आधारित है. बताया जाता है कि कश्मीर से पंडितों को हटाने के लिए उनका वहां नरसंहार किया गया था. कश्‍मीरी पंडित संघर्ष समिति के अनुसार, साल 1990 में घाटी के भीतर 75,343 कश्मीरी पंडित परिवार थे. लेकिन साल 1990 और 1992 के बीच आतंकियों के डर से 70 हजार से ज्‍यादा परिवारों ने घाटी को छोड़ दिया. साल 1990 से 2011 के बीच आतंकियों ने 399 कश्‍मीरी पंडितों की हत्‍या की थी. पिछले 30 सालों के दौरान घाटी में बमुश्किल 800 हिंदू परिवार ही बचे हैं. फिल्म इसी सच को बयां करती है.

इस फिल्म को लेकर दर्शक दो वर्गों में बंटे हुए नजर आए थे. एक वर्ग का कहना था कि फिल्म के जरिए कश्मीर घाटी में आतंकवाद, हिंदू-सिखों के व्यापक नरसंहार, तत्कालीन राजनीति, कश्मीरी पंडितों के पलायन और अपने ही देश में शरणार्थी बनने पर पहली बार विवेक अग्निहोत्री के रूप में किसी निर्देशक ने प्रभावशाली अंदाज में सच दिखाने का साहस किया है. वह सच जो अपने वास्तविक रूप में है. दूसरे वर्ग लोगों ने इसे प्रोपेगैंडा फिल्म बताया था. उनका कहना था कि इस फिल्म के जरिए समाज में नफरत फैलाने की कोशिश की गई है. यहां तक कि गोवा में आयोजित 53वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में इजराइली फिल्म मेकर नादव लैपिड ने इसको अश्लील और प्रोपेगेंडा फिल्म बता दिया था.

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