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Updated: 04 नवम्बर, 2022 02:14 PM
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"अपनी कुर्सी की पेटी बांध लो, मौसम बिगड़ने वाला है"

यह शाहरुख खान का बोला संवाद है जिसका इस्तेमाल उनकी स्पाई थ्रिलर ड्रामा 'पठान' के टीजर में किया गया है. पठान अगले साल जनवरी में रिलीज की जाएगी. फिल्म में शाहरुख खान के साथ दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम भी अहम किरदारों में हैं. हालांकि शाहरुख का संवाद पठान के निर्माता 'यशराज फिल्म्स' पर फिलहाल ज्यादा सटीक नजर आ रहा है. अब तक बॉक्सऑफिस पर लगातार नाकामियों का कीर्तिमान रचने वाले बैनर को भी पठान की रिलीज से पहले अपनी कुर्सी की पेटी को कसके बांध ही लेना चाहिए. स्पाई थ्रिलर के भारी-शोर शराबे के बीच जो टीजर आया है उसमें बहुत सारे क्लू मिल जाते हैं जो आशंका जताते हैं कि शायद सिनेमाघरों का मौसम बिगड़ सकता है. और बिगड़े मौसम में अपेक्षित दर्शक सिनेमाघर पहुंचे ही ना, जिसकी उम्मीद की जा रही है.

असल में यह चार कदम आगे जाकर दो कदम पीछे हो जाने वाला अप्रोच ही है. समझ नहीं आता कि शमशेरा, सम्राट पृथ्वीराज और जयेश भाई जोरदार जैसी फिल्मों के साथ सिनेमाघरों में बुरी तरह मात खाने वाला वाले बैनर के दिमाग में चल क्या रहा है. दक्षिण से मुकाबले में कहीं बॉलीवुड को ऐसा तो नहीं लगा है कि फिल्मों को हिंदी के साथ दक्षिण की भाषाओं में रिलीज कर देने भर से उनका काम हो जाएगा. शायद बॉलीवुड निर्माताओं को लग ही रहा हो कि साउथ भी तो ऐसे ही करता है. वहां की किसी इंडस्ट्री से आने वाली पैन इंडिया फिल्मों को हिंदी समेत तमाम भाषाओं में डब कर दिया जाता है और टिकट खिड़की पर पैसों की बारिश होने लगती है. साफ़ है कि बॉलीवुड ने साउथ की रिलीज कारोबार पर ही नजर रखी. बाकी चीजों पर ध्यान देने का शायद वक्त ही ना मिला हो.

बॉलीवुड यौन कुंठा से पीड़ित दर्शकों से पैसे कमाते रहा है, पठान का फ़ॉर्मूला भी यही है

पैन इंडिया रिलीज भर से पैसों की बारिश को लेकर कल्पनालोक में डूबा कोई दूसरा बैनर ऐसा करता तो एक सेकेंड के लिए समझ जा सकता था. लेकिन बॉलीवुड का सबसे बड़ा बैनर ऐसा कर रहा है जो परेशान करने वाला है. अपनी पिछली फिल्मों से यशराज ने क्या लर्निंग हासिल की, समझना मुश्किल है. उनकी दो फ़िल्में (सम्राट पृथ्वीराज और शमशेरा) पैन इंडिया आईं और बुरी तरह पिट गईं. इसके अलावा उनके रिश्तेदार करण जौहर की भी दो फ़िल्में पैन इंडिया आईं. ब्रह्मास्त्र के बॉक्स ऑफिस को लेकर अब तक रहस्य साफ़ नहीं हो पाया है. जबकि लाइगर का अंजाम बताने की जरूरत ही नहीं. इसके अलावा यशराज के सर्वेसर्वा आदित्य चोपड़ा के दोस्त आमिर खान की पैन इंडिया लाल सिंह चड्ढा की भी केसस्टडी उन्होंने भलीभांति पढ़ी ही होगी. बावजूद पठान का टीजर बताता है कि YRF ने दक्षिण की अंधी नक़ल (शमशेरा) और नाकामियों से कुछ ख़ास नहीं सीखा है.

pathaanपठान

YRF बॉलीवुड के उसी पुराने फ़ॉर्मूले पर दर्शकों को सिनेमाघर खींच लेने की कोशिश करता दिखता है जो हर हाथ में इंटरनेट वाले दौर में अब भोथरा साबित हो चुका है. "यौन कुंठा" वह चीज है जिसपर बॉलीवुड में राजकपूर से सुभाष गई तक शोमैन का तमगा हासिल करते दिखते हैं. यह थोड़ा सा सख्त जरूर होगा, मगर कहना नहीं चाहिए कि बॉलीवुड के निर्देशकों ने इसे पौराणिक और गंवई कहानियों में भी भुनाने का कोई मौका नहीं गंवाया कभी. आप पीछे नजर घुमाइए और बॉलीवुड के उन दर्जनों सीन्स को याद करिए जिसमें जिसमें बिना ब्लाउज या कंचुकी के साड़ी में लिपटी किसी भली महिला, या साध्वी को भी नदी में निर्देशक ने सिर्फ इसलिए नहलवाया कि नदी से बाहर निकलने के बाद भीगे कपड़ों में लिपटी उसकी मांसल देह पुरुष दर्शकों की यौन कुंठा को शांत कर सके. और टिकट खिड़की पर पैसों की बारिश हो सके. राज कपूर साब की सत्यम शिवम सुंदरम को देखिए और राम तेरी गंगा मैली में छाती से दूध पिलाने वाले सीन को याद करिए. जहां कहानियां आधुनिक थीं वहां बिकनी पहनाने तक में संकोच नहीं किया गया.

यौन कुंठा ने इतना क्लिक किया कि बॉलीवुड के निर्देशक जो रेप सीन्स में गिरे हुए टॉर्च की रोशनी और फूलों को मसले जाने वाले प्रतीकात्मक मगर भावना प्रधान दृश्यों से सार्वजनिक मर्यादा का पालन करते दिखते थे- वही इंडस्ट्री पैसे कमाने के चक्कर में इतना गिर गई कि पांच-पांच छह-छह मिनट के रेप सीक्वेंस को दिखाकर बेहयाई की हदें पार कर दी. प्रेम रोग का रेप सीन याद है ना. खैर, 90 के बाद स्तर यहां तक गिर गया कि नायकों तक के कपड़े उतारे जाने लगे और बहाना दिया गया कि असल में नायकों की शरीर के कट दिखाए जा रहे हैं जो जिम में भारी मेहनत के बाद हासिल हुआ है. क्या यह समझना मुश्किल है कि असल में यह भी यौन कुंठा ही भुनाना था और टारगेट ऑडियंस इस बार महिला दर्शक थीं. हाल ही में बॉलीवुड की इसी यौन कुंठा को भुनाने की प्रवृत्ति को लेकर कोर्ट ने एकता कपूर को बुरा भला कहा.

बॉलीवुड में यौन कुंठा भुनाने की ऐसी अंधी रेस चली कि भारतीय सिनेमा में इसके बुरे नतीजे नजर आते हैं. नायिकाएं एक्सपोज की वस्तु बनकर रह गईं. और आप देखिए, जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास होता जाता है, लैंगिक जागरूकता बढ़ती जाती है- नायिकाओं का दौर शुरू होने लगता है. दक्षिण में तो एक जमाने में यौन कुंठा इस कदर थी कि मलयाली सिनेमा को पोर्न का दूसरा रूप तक कहा जाने लगा था. मगर पिछले कई सालों से आज की तारीख तक मलयाली फिल्मों को उठाकर देख लीजिए. मलयाली ने सिनेमा का बेहतरीन बेंचमार्क स्थापित किया है. बॉलीवुड वापस वहां जाना चाहता है जहां से वह निकलकर आया है. वह भी उन चीजों के लिए जिनका कोई अर्थ नहीं है.

57 साल के शाहरुख खान की छाती में क्या है, एनटीआर आरआरआर में नंगे थे तो उसका मतलब था

सिद्धार्थ आनंद के निर्देशन में बनी पठान में दीपिका की देह का भी खूब प्रदर्शन नजर आता है. बीच और बिकनी सीक्वेंस. साफ़ है कि बॉलीवुड की रचनात्मकता ख़त्म हो चुकी है और उसके सबसे बड़े बैनर का हाल जब ऐसा है तो मान ही लीजिए कि अब उनके पास कुछ दिखाने लायक नहीं है. 57 साल के शाहरुख खान की छाती में ऐसा क्या है, जिसे बिना मतलब के सीक्वेंस में दिखाने की कोशिश नजर आ रही है. सुनील शेट्टी जब शीर्ष पर थे तब ऊपर की तीन बटनों को खोलने का मतलब समझ में आता था. यौन कुंठा ही भुनाने की कोशिश है ना यह. कम से कम कपड़े ही फाड़ देते. छाती दिखने के लिए कोई दूसरा रचनात्मक सीक्वेंस बना लेते. पठान के मेकर्स का इंटेशन क्या है? यौन कुंठा भुनाना ही इंटेशन हैं. आरआरआर  में एसएस राजमौली ने जूनियर एनटीआर को लगभग नंगा कर दिया है. पर वहां यौन कुंठा को लेकर मेकर्स के इंटेशन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. राजमौली ने एक भाव प्रधान दृश्य रचा है जो दर्शकों के रौंगटे खड़े कर देता है और उन्हें गर्व से भर देता है.

अभी यह बहस चल रही है कि आखिर क्या वजह है कि बॉलीवुड की फ़िल्में दक्षिण के मुकाबले पिट जा रही हैं. सामने आया कि लोग स्वाभाविक चीजें देखना पसंद कर रहे हैं और हद से ज्यादा पश्चिमी रंग ढंग में बसे किरदारों को नहीं देखना चाहते. और ऐसा होने की तमाम वजहें हैं. आज से पंद्रह साल पहले जब इंटरनेट नहीं था, पोर्न जरूर भारतीय दर्शकों को आकर्षित करता था. तब कारोबारी हथकंडा (भले ही वह सस्ता हो), उसका औचित्य समझ में आता था. अब तो ओटीटी की वजह से आप जो चीजें फिल्मों में नहीं दिखा सकते हैं दर्शक उसे वेस्टर्न कंटेट में उससे भी कहीं आगे की चीजों को देख ही रहे हैं. फिर शाहरुख और दीपिका का एक्सपोजर भला किस काम का?

क्या यशराज के मेकर्स को अब भी संशय है कि साल 2022 में भी एक स्त्री या पुरुष की देह को लेकर मल्टीप्लेक्स में आने वाले पढ़े-लिखे महानगरीय दर्शकों के मन में यौन से जुड़ा फ्रस्टेशन अभी भी बरकरार है. इंटरनेट युग में एक पुरुष या स्त्री की देह को लेकर कम से कम महानगरों में कोई यक्ष प्रश्न नहीं रहा अब. बच्चों को भी उनकी कक्षाओं में स्त्री-पुरुष की देह के बारे में जरूरी चीजें पढ़ाई जा रही हैं. पेरेंट भी प्राय: तमाम चीजें बताते मिल जाते हैं. दक्षिण की कोई भी हालिया हिट फिल्म में किरदारों को उठाकर देख लीजिए. क्या उन ब्लॉकबस्टर फिल्मों में किरदारों को ऐसे ही पेश किया गया है जैसे पठान में नजर आ रहे हैं शाहरुख और दीपिका को दिखाने की कोशिश है.

बॉलीवुड का निर्माता अभी भी यह मानने को तैयार नहीं है कि हिंदी पट्टी का दर्शक बदल चुका है. कम से कम पठान जिस टारगेट ऑडियंस को लक्ष्य करके बनाई गई है वहां ऐसे गैरजरूरी एक्सपोजर का कोई तुक नजर नहीं आता. मगर आपको लगा कि आप साल 1998 में फिल्म रिलीज कर रहे हैं. बाइक से बम के जरिए कार उड़ाने, हवा में गोता लगाकर गन चलाने के दो चार रटे रटाए सीक्वेंस बनाकर और नायक-नायिका की छाती दिखाकर दर्शक जुटा लेंगे तो आप गलत सोच रहे हैं. चार साल पहले आई शाहरुख की लास्ट फिल्म जीरो फ्लॉप थी. याद रखिए, अंतिम में सलमान खान भी कमर के ऊपर पूरी तरह नंगे हो गए थे, बावजूद दर्शकों का दिल नहीं पसीजा. पठान का टीजर तमाम फिल्मों (ज्यादातर यशराज की ही) की खिचड़ी से ज्यादा कुछ नजर नहीं आ रहा. रिलीज के बाद देखना दिलचस्प होगा कि आखिर इसमें क्या है. पठान का निर्देशन सिद्धार्थ आनंद ने किया है.

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