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Updated: 09 अक्टूबर, 2022 03:45 PM
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बच्चन पांडे, सम्राट पृथ्वीराज, रक्षा बंधन और कटपुतली- ये अक्षय कुमार की वो फ़िल्में हैं जो साल 2022 में सिनेमाघरों के सामान्य होने के बाद एक पर एक रिलीज की गईं. इनमें थ्रिलर कटपुतली को सीधे ओटीटी पर स्ट्रीम किया गया था. चारों फिल्मों में समानता यह है कि दर्शकों ने इन्हें बुरी तरह खारिज किया. इससे पहले एक्टर की फिल्मों को देखें तो नंबर लगाकर हिट फ़िल्में मिलेंगी. और हिट की तुलना में अक्षय की चार फ्लॉप फिल्मों का कंटेंट बहुत खराब नहीं कहा जा सकता. गहरे अर्थ वाली बातों को छोड़ दिया जाए तो- लगभग वैसी ही हैं जिस तरह की फिल्मों में खिलाड़ी कुमार नजर आते रहे हैं. बावजूद दर्शकों ने खारिज किया. अब इसी साल अक्षय कुमार की पांचवीं फिल्म राम सेतु सिनेमाघरों में आने के लिए तैयार है. 25 अक्टूबर के दिन यह दिवाली रिलीज है. सोमवार को फिल्म का ट्रेलर आएगा.

अब सवाल है कि एक्टर की पांचवीं फिल्म क्या देखी जाएगी और यह उनके लिहाज से कितनी महत्वपूर्ण है? एक बात साफ मान लीजिए. राम सेतु वह फिल्म है जो एक्टर का करियर तय करने जा रही है. रामसेतु की कामयाबी ही अब आगे का रास्ता बनाएगी. असल में देखा जाए तो एक्टर का करियर उसी मोड़ पर पहुंच चुका है जिस मोड़ पर शाहरुख खान और सलमान खान की गाड़ी बेपटरी हुई. इसका सीधा फायदा खिलाड़ी कुमार को मिला. 55 साल के अक्षय बेहतर विकल्पों की कमी और समाज की वैचारिकी पर सवार होकर सफलता के परचम लहराते दिखे. उनके साथ दिक्कत सिर्फ यह हुई कि उनकी पत्नी ट्विंकल खन्ना समाज की वैचारिकी के विपरीत तंज कसते और उपहास उड़ाते नजर आती हैं. लगातार. दूसरी बात है कि सालभर पहले तक इस चीज ने अक्षय को नुकसान नहीं पहुंचाया.

ram setuराम सेतु

अक्षय की कामयाबी उनकी कामयाबी भर नहीं थी, कश्मीर फाइल्स ने संतुलन बिगाड़ दिया

विरोधाभासों के बावजूद अक्षय को समाज ने स्वीकार्य किया. इसका सबसे तगड़ा सबूत यह है कि पिछले साल दीपावली पर ही आई सूर्यवंशी की सफलता ने हर किसी को हैरान कर दिया. कोविड की मार से सिनेमाघर जूझ रहे थे, कारोबार ठप पड़े थे. रोजी रोजगार को लेकर देश संकट का सामना कर रहा था. सीमा पर चीन के साथ तनाव संवेदनशील बना हुआ यहा. अर्थव्यवस्था की हालत भी बहुत बेहतर नहीं थी. सिनेमाघरों में भी कोविड प्रोटोकाल की वजह से सिर्फ 50  प्रतिशत दर्शक क्षमता थी. और कुछ इलाकों में तो सिनेमाघर खुले भी नहीं थे. बावजूद समाज की वैचारिकी ने अक्षय की सूर्यवंशी पर मुहर लगा दी. यह फिल्म जबरदस्त ब्लॉकबस्टर साबित हुई. सूर्यवंशी तक अक्षय तमाम विरोधाभासों के बावजूद स्वीकार थे. उन्होंने राजनीति के साथ बेहतर संतुलन भी बना लिया था.

मगर लोग तब हैरान रह गए जब इसी साल मार्च में आई 'द कश्मीर फाइल्स' को लेकर अक्षय कुमार की जुबान सिल गई. अक्षय ने एक भी ट्वीट एक भी प्रतिक्रिया ऐसी नहीं दी जो फिल्म के प्रति उनके समर्थन का इजहार करे. उन्होंने कश्मीर फाइल्स को लेकर सिर्फ एक ट्वीट किया था. वह भी अनुपम खेर से मित्रता की आड़ में. सिर्फ उन्हें शुभकामनाएं दी. खिलाड़ी कुमार क्या बचा रहे थे? इस एक चीज ने चौकन्ना कर दिया. कोढ़ में खाज यह हुआ कि एक्टर ने जाने अंजाने कश्मीर फाइल्स की राह रोकने की कोशिश भी की और उनकी बच्चन पांडे ठीक एक हफ्ते बाद सिनेमाघरों में रिलीज हुई. मजेदार है कि पहले वीकएंड में कश्मीर फाइल्स को सिनेमाघरों में पर्याप्त स्क्रीन्स तक नहीं दिए जा रहे थे. फिल्मों का क्लैश और आसपास फिल्मों को रिलीज करने की गणित अभी हाल में आई ब्रह्मास्त्र से समझा जा सकता है. पूरे दो हफ्ते तक ब्रह्मास्त्र के सामने बॉलीवुड ने कोई फिल्म लॉन्च नहीं की. जबकि कोविड के बाद कई सारे क्लैश देखने को मिले.

यह पुरानी बात नहीं कि लोगों ने शाहरुख और आमिर खान जैसे सितारों की जबरदस्ती ना देखी हो. रितिक, अजय और सनी देओल जैसे सितारों की बड़ी फ़िल्में (काबिल, शिवाय, गदर) पहले शेड्यूल रहीं बावजूद उसी तारीख पर खान सितारों की रईस और लगान जैसी फ़िल्में रिलीज की जाती हैं. कभी मौका निकालकर फिल्मों का बॉक्स ऑफिस देख लीजिए. पता चल जाएगा भारतीय उस वक्त कौन सी फ़िल्में देखना चाहते थे. और साधन संपन्न तबका किस तरह जनमत बनाने या बिगाड़ने की कोशिश में लगा था. यह गंगा जमुनी तहजीब का स्वर्ण काल है. और खान सितारों का वह दौर भी है जब उनके स्टारडम के आगे समूचा फिल्म उद्योग और समूची राजनीति एक पैर पे खड़े होकर अनुनय विनय करने को विवश है. अक्षय से लोग निराश हुए और कश्मीर फाइल्स के सामने ठीकठाक एंटरटेनर बच्चन पांडे का क्या हाल हुआ बताने की जरूरत नहीं.

अक्षय के खिलाफ लोगों का गुस्सा ठंडा हुआ या नहीं राम सेतु से पता चलेगा

अक्षय के खिलाफ लोगों का गुस्सा एक फिल्म से कम नहीं हुआ. बल्कि वह लगातार जारी दिखता है. सम्राट पृथ्वीराज को खारिज कर दिया गया. तमाम बातें अपनी जगह लेकिन सम्राट पृथ्वीराज भी देखेंगे तो समझना मुश्किल है कि किसे इतनी बुरी तरह दर्शकों ने क्यों खारिज किया? जबकि सरकारों ने कम सहयोग नहीं किया. हिंदी बेल्ट में लगभग टैक्स फ्री थी यह फिल्म. बावजूद फिल्म का विरोध सिर्फ अक्षय की वजह से हुआ. लोगों ने इसे देखना पसंद नहीं किया. यही हाल रक्षा बंधन का भी रहा. मेकर्स ने सोचा था कि आमिर खान के विरोध में यह फिल्म मजबूत विकल्प के रूप में उभरेगी. पर लाल सिंह चड्ढा का विरोध कर रहे भारतीय दर्शकों ने सिर्फ अक्षय के नाम पर रक्षा बंधन का भी विरोध किया और उसे विकल्प ही नहीं बनने दिया. रक्षा बंधन भी एक्टर की तमाम हिट फैमिली ड्रामा से खराब नहीं है. कटपुतली के निर्माता सिनेमाघर जाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाए और ओटीटी रिलीज करना पड़ा. दर्शकों ने उसका भी निगेटिव रिव्यू दिया. यहां तक कि राम सेतु के जितने भी विजुअल अब तक आए हैं- दर्शकों की राय बहुत बेहतर नहीं है उसे लेकर.

यह कहा जाने लगा है कि 55 साल के अक्षय अब चुक चुके हैं. उन्हें आराम करना चाहिए. इतनी ज्यादा मात्रा में फ़िल्में करने की जरूरत नहीं है. बिल्कुल वही चीज है दिख रही है जो पिछले आठ साल से शाहरुख के खिलाफ नजर आ रही है. रेस 3 से राधे और अंतिम तक सलमान खान के साथ दिखी.

साफ़ है कि राम सेतु अक्षय के करियर में बड़ा टर्निंग पॉइंट बनने जा रही है. साल साल भर बेतहाशा फ़िल्में करने वाले वाले एक्टर की चार फ़िल्में (सेल्फी, सूरराई पोतरू की रीमेक, OMG 2 और कैप्सूल गिल) आने वाली हैं. इन फिल्मों का भविष्य भी राम सेतु की कामयाबी पर टिका है. राम सेतु के डूबने का मतलब है कि फिल्मों का कारोबारी भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा. यह फिल्म तय करेगी कि पिछले एक दशक में तमाम विपरीत हालात के बावजूद अकह्स्य का जो अश्वमेघ टिकट खिड़की पर दौड़ता नजर आता था वह आगे भी जारी रहेगा या थम जाएगा. दीपावली पर इस बात का फैसला हो जाएगा.

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