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Updated: 26 मार्च, 2015 06:19 AM
सुहानी सिंह
सुहानी सिंह
 
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हर भारतीय को अगले महीने इंडियन प्रीमियर लीग से ब्रेक लेकर चैतन्य तम्हाने की पहली फिल्म 'कोर्ट' जरूर देखनी चाहिए. जो 17 अप्रैल को रिलीज हो रही है. मैने यह पहले ही दो बार देख ली है. यह बार-बार देखने लायक शानदार फिल्म है. अभी तक जो भी अदालत पर आधारित फिल्में किसी भारतीय दर्शक ने देखी हैं यह उसके विपरीत एक बहुभाषी शानदार फिल्म है. इसमें तारीख पे तारीख चिल्लाने वाला वकील, आर्डर-आर्डर कहने वाला जज और कहानी सुनाने वाला गवाह नहीं है. फिल्मी मसाले के बिना भी दर्शकों के लिए इस फिल्म में दिलचस्पी की गारंटी है. गहरा शोध तम्हाने की स्क्रिप्ट को मजबूत और सधा हुआ बनाता है. यह अहसास दिलाता है जैसे दर्शक अदालत में बैठकर पूरी कार्यवाई सरल और शांत तरीके से देख रहा हो.

कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यह फिल्म पहले ही 17 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी है. इसने शिप ऑफ थीसियस (2013) और लंच बॉक्स की तरह ही आलोचकों की प्रशंसा बटोरी है. कोर्ट ने  सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार भी जीता है और इसकी विशेषता है इसके निर्माता विवेक गोम्बर का एक अभिनेता के रूप में दिखना.

गोम्बर का वकील इस मामले में खुद को एक मुश्किल में घिरा पाता है. एक दलित अधिकार कार्यकर्ता, कवि, गायक नारायण कांबले पर एक मैनहोल क्लीनर को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगता है जिसे वह कभी नहीं मिला. पुलिस उनके गीत की एक लाइन को आधार बनाकर कहती है कि उस लाइन ने उस आदमी को यह कठोर कदम उठाने लिए मजबूर किया. तम्हाने दुनिया की कानून व्यवस्था में अन्याय पर टिप्पणी नहीं करते. वह फिल्म में दर्शकों को यह मौका देते हैं कि वो खुद सोचें और मामले की सुनवाई करने के बाद खुलासा करें. वे समझदारी से अपने दर्शकों के साथ व्यवहार करते नजर आते हैं

लेकिन तम्हाने की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि वे दर्शकों को केवल आरोपी का भाग्य तय करने के लिए नहीं कहते बल्कि उन्हें जीवन में हर रोज होने वाले मामलों की एक व्यक्तिगत झलक भी देते हैं.  फिल्म में एक महिला वकील गीतांजलि कुलकर्णी का किरदार है जो दो बच्चों की मां है और मधुमेह से पीडित पति को संभाल रही है. शायद तम्हाने ने इसे सबसे आकर्षक तरीके से पेश किया है. अपनी फिल्म के नायकों की साधारणता को दिखाकर तम्हाने ने एक असाधारण फिल्म से कई उपलब्धियां हासिल कर ली हैं.

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लेखक

सुहानी सिंह सुहानी सिंह

लेखिका मुम्बई में इंडिया टुडे की एसोसिएट एडिटर है.

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