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Updated: 21 अक्टूबर, 2016 07:10 PM
रोशनी ठोकने
रोशनी ठोकने
  @Roshani.Thokne
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मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान की फिल्म दंगल का मुझे भी उतनी ही बेसब्री से इंतजार है, जितना हर सिनेमा प्रेमी को. फिल्म का ट्रेलर रिलीज होते ही लाखों दर्शकों के दिल तक ये उतर आई. तकरीबन 3 मिनट 25 सेंकड का दंगल का ट्रेलर ट्विटर पर लगातार नम्बर 1 ट्रेंड कर रहा है.

यूट्यूब पर इसे अब तक 10 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है. मैंने भी मौका मिलते ही दंगल का ट्रेलर देखा...शुरुआत बेहद शानदार. अच्छा लगा ये देखकर कि आमिर खान ने एक ऐसे मुद्दे को छुआ जो हमारे देश में आज भी जिंदा है.

बेटे और बेटी का फर्क सिर्फ हरियाणा प्रदेश में नहीं बल्कि हमारे देश के कई हिस्सों में आज भी साफ नजर आता है. लेकिन आज मैं बात सिर्फ फिल्म दंगल के इर्द-गिर्द ही करुंगी. फिल्म पहलवान महावीर फोगट पर बनी है जो भारत को कुश्ती में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते थे, लेकिन नहीं दिला पाए. लिहाजा गोल्ड मेडल का अपना सपना वो बेटे के जरिए पूरा करना चाहते थे. लेकिन महावीर को बेटा नहीं हुआ.

चार बेटियों के पिता महावीर का सपना लगभग टूटने की कगार पर था, जब उन्हें अहसास हुआ कि गोल्ड मेडल तो मेडल है चाहे बेटा लाएं या बेटी? प्रोमो में ये सीन बेहद दिलचस्प और दिल को छू लेने वाला है. मगर इस सीन के बाद ही एक ऐसा सीन आया जो मेरे हिसाब से फिल्म दंगल की सबसे बड़ी भूल है.

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महावीर फोगट की बेटियां गीता और बबीता जिनके जरिए महावीर गोल्ड मेडल हासिल करना चाहता था, उनके बाल फिल्म में अचानक छोटे हो गए... सूट की जगह शर्ट पैंट ने ले ली और आमिर खान का डायलाग आया--'हर वो चीज जो पहलवानी से उनका ध्यान हटाएगी, मैं उनको हटा दूंगा.' यानी कि बेटी से.. एक लड़की से..उसके लड़की होने का अहसास छीन लेना.

फिल्म में आमिर खान का ये संवाद हो सकता है कि किसी को भी ना खटके, लेकिन मेरे लिए ये समझना बहुत मुश्किल था कि क्यों एक लड़की को अचानक लड़के की तरह रहने की जरुरत पड़ गई. क्या स्त्रीत्व भाव के साथ गीता-बबीता को कुश्ती के दांव-पेंच नहीं सिखाए जा सकते थे. रियल लाइफ के महावीर फोगट ने भी क्या यही सोचा था या ये सिर्फ फिल्म के डायलॉग का हिस्सा मात्र है, नहीं मालूम. लेकिन क्योंकि ये फिल्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है और फिल्में हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करती हैं, इसलिए मुझे ये सीन और डायलॉग सही नहीं लगा.

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 लंबे बाल और काजल बिंदी वाली लड़कियां कमजोर होती हैं?

बतौर महिला मैं ये सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या लम्बे बाल होने, सलवार सूट या काजल बिंदी लगाने वाली लड़कियां कमजोर होती हैं...क्या लड़कियों को मजबूत बनाने के लिए उनके भीतर बसी एक लड़की को या उसके स्त्रीत्व भाव को बाहर निकालना पड़ता है. अफसोस कि रियल लाइफ के महावीर फोगट हो या रील लाइफ में महावीर का किरदार निभाने वाले आमिर खान... दोनों ही ये समझने में भूल कर गए कि बेटी के स्त्रीत्व को खत्म करके भी वो उनमें बेटा ही ढूंढ रहे हैं.

आपने भी अपने आस-पास कई ऐसे माता-पिता देखे होंगे जो ये कहते हैं कि ये हमारी बेटी नहीं बेटा है.... लोगों को बहुत गर्व होता है ये कहते हुए. लेकिन शब्दों के मायाजाल को समझने की जररुत है.. जो बार बार यही संदेश दे रहा है कि पुरुष या लड़का, बेटी से लड़की से बेहतर है. क्यों एक बेटी की तुलना बेटे से की जाती है... क्योंकि हमारा दिमाग आज भी ये मानता है कि बेटा सुपीरियर है.

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चाहे बात शारीरिक क्षमता की हो या बौद्धिक क्षमता की...हम जाने-अनजाने तुलनात्मक हो जाते हैं. और यही हम बेटियों से उनके बेटी या स्त्री होने का गौरव छीन लेते हैं और उन्हें मजबूत बनाने के इरादे से ही सही उनके अंदर के स्त्रीत्व भाव को खत्म कर हम उनमें बेटा ही तलाशते हैं.

लेखक

रोशनी ठोकने रोशनी ठोकने @roshani.thokne

लेखिका आज तक में पत्रकार हैं

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