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Updated: 23 अप्रिल, 2023 06:59 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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मेन बात ये है कि गुड्डू मुस्लिम...बाहुबली माफिया अतीक अहमद के भाई अशरफ अहमद के ये आखिरी शब्द हैं. इसके बाद अशरफ और अतीक के उपर ताबड़तोड़ गोलियों की बरसात कर दी गई. इस गोलीबारी में अतीक और अशरफ मारे गए. प्रयागराज के काल्विन अस्पताल के बाहर हुई इस वारदात ने पूरे देश में सनसनी फैला दी. इसके साथ हर किसी के मन में यही कौतूहल था कि ये गुड्डू मुस्लिम कौन है? अशरफ इसके बारे में क्या कहना चाहता था? गुड्डू मुस्लिम का नाम उमेशपाल हत्याकांड के बाद से ही सुर्खियों में है. फरार चल रहे इस बमबाज के ऊपर यूपी पुलिस ने पांच लाख रुपए का ईनाम रखा हुआ, लेकिन अभी तक ये पुलिस की रडार पर नहीं आ पाया है.

गुड्डू मुस्लिम का इतिहास अतीक अहमद के गुनाहों की फेहरिस्त से ज्यादा हैरतअंगेज है. अतीक से पहले वो आधा दर्जन से अधिक बाहुबलियों के लिए काम कर चुका है. सबसे खास बात ये है कि वो हर किसी का वफादार रहा है. हर माफिया का करीबी रहा है. लोग उस पर भरोसा करते रहे हैं. गुड्डू भी उन पर अपनी जान छिड़कता रहा है. अपनी जान की परवाह किए बिना किसी भी हद तक जाता रहा है. जैसा कि उमेशपाल हत्याकांड के दौरान सीसीटीवी फुटेज में हर किसी ने देखा है. वो खुलेआम सड़क पर उमेश पाल और पुलिस के जवानों पर बम बरसाता रहा. उसके चेहरे पर न कोई शिकन दिखा, न ही मन में कोई डर. वारदात को अंजाम देने के बाद आराम से फरार हो गया.

यूपी पुलिस शिद्दत से उसकी तलाश कर रही है. पुलिस को अतीक अहमद का बेटा असद और उसका शूटर गुलाम अली तो मिल गए, लेकिन गुड्डू मुस्लिम चकमा देकर फरार हो गया. पुलिस एड़ी चोटी का जोर लगा रही है, लेकिन गुड्डू का कहीं अता पता नहीं है. अतीक से पहले गुड्डू जिन बाहुबली माफियाओं के लिए काम किया है, उनमें श्रीप्रकाश शुक्ला, अभय सिंह, धनंजय सिंह, उदयभान सिंह से लेकर परवेज टाडा, मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद का नाम प्रमुख है. बताया जाता है कि वो बचपन से ही बदमिजाज था. प्रयागराज में अपने पिता की चिकन की दुकान पर बैठने के दौरान अक्सर उसकी लोगों से लड़ाई हो जाया करती थी. पढ़ाई में मन नहीं लगता था. चोरी-चकारी पसंद थी.

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बचपन में ही देसी बम बनाना सीख लिया

गुड्डू मुस्लिम 15 साल की उम्र में चोरी करना शुरू कर दिया था. इसी दौरान ऐसे अपराधियों के संपर्क में आया, जो कि देसी बम बनाने का काम करते थे. उसने उनसे बम बनाना सीख लिया. उसकी आदत से तंग आकर परिजनों ने उसे अपने एक रिश्तेदार के यहां लखनऊ भेज दिया. लखनऊ यूनिवर्सिटी में उसका दाखिला करा दिया गया, ताकि मन लगाकर पढ़ाई कर सके. लेकिन जिसकी आदत ही खराब हो भला उसे कौन सुधार सकता है. दूसरा ये कि जो जिस तरह की प्रकृति का होता है, वैसे ही दोस्त भी खोज लेता है. गुड्डू के साथ भी वही हुआ. उसने यूनिवर्सिटी में भी अपने जैसे दोस्त बना लिए. उस वक्त लखनऊ में अभय सिंह और धनंजय सिंह की जरायम की दुनिया में तूती बोलती थी.

अभय और धनंजय सिंह के गैंग में शामिल

अभय सिंह और धनंजय सिंह ने जब गुड्डू मुस्लिम के बारे में सुना तो उसे अपने गैंग में शामिल कर लिया. रेलवे के ठेकों में अपनी धौंस जमाने के लिए उसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. गुड्डू ठेके पाने के लिए रेलवे के अफसरों का अपहरण करने लगा. इसके साथ ही दूसरे ठेकेदारों को डराने धमकाने का काम भी करता था. उसकी तूती बोलने लगी. लेकिन उस समय एक ठेकेदार संतोष सिंह हुआ करते थे. उन्होंने गुड्डू की बातों को मानने से इंकार कर दिया. गुड्डू को ये बात नागवार गुजरी. अपना रसूख बनाने के लिए साल 1996 में उसने संतोष सिंह की हत्या कर दी. इधर संतोष सिंह मर्डर केस की जांच यूपी एसटीएफ को सौंप दी गई. पुलिस से बचने के लिए गुड्डू गोरखपुर पहुंच गया.

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''गुड्डू मुस्लिम वही खतरनाक शूटर है जिसने साल 1997 में धनंजय सिंह के इशारे पर लखनऊ के एक स्कूल के हॉस्टल में घुसकर दिनदहाड़े वहां के फिजिकल एजुकेशन टीचर को गोलियों से भून डाला था. तब वो इस मामले में जेल भी गया था.'' - आर के चतुर्वेदी, पूर्व आईपीएस

परवेज टाडा और उदयभान सिंह से संपर्क

90 के दशक में पूरे पूर्वांचल में गोरखपुर अपराध का गढ़ था. यहां कई माफिया और डॉन सक्रिय थे. नेपाल और बिहार बॉर्डर पास होने की वजह से क्राइम करके बच निकला यहां से आसान था. यही वजह है कि गुड्डू मुस्लिम भी गोरखपुर पहुंच गया. वहां एक लोकल डॉन परवेज टाडा के संपर्क में आया. परवेज उसके बहुत काम आया. पुलिस से बचाने में बड़ी भूमिका निभाई. पुलिस की सक्रियता बढ़ने पर परवेज ने गुड्डू को बिहार के बाहुबली उदयभान सिंह के पास भेज दिया. वहां जाकर उसने उदयभान के लिए भी काम करना शुरू कर दिया. इसी बीच 1997 में लखनऊ के लामार्टीनियर स्कूल के एक गेम टीचर फैड्रिक्स जे गोम्स की हत्या कर दी गई. इसमें गुड्डू और धनंजय सिंह का नाम आया.

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श्रीप्रकाश शुक्ला को बनाया अपना गुरु 

अब गुड्डू लखनऊ से लेकर गोरखपुर तक अपने अपराध को अंजाम देने लगा. जब भी पुलिस उसके पीछे पड़ती तो वो नेपाल या बिहार भाग जाता. इसी दौरान वो पूर्वांचल के बडे़ माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला के संपर्क में आ गया. श्रीप्रकाश शुक्ला रेलवे के ठेकों का बादशाह था. वो जहां जो ठेका चाहता, वो उसे मिल जाता. उसे राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त था. ऐसे में पुलिस चाहकर भी उसका कुछ नहीं कर पाती थी. श्रीप्रकाश से गुड्डू बहुत प्रभावित था. इसलिए उसे अपना गुरुमानने लगा. उसके इशारे में काम करने लगा. दोनों ने मिलकर यूपी से बिहार तक कोहराम मचा दिया. हत्या, अपहरण, रंगदारी और लूट इनके लिए आम बात थी. अपने रसूख को स्थापित करने के लिए उनदिनों गैंगवार भी खूब होते थे.

ऐसे बना था मुख्तार अंसारी का करीबी

इसी कड़ी में लखनऊ में पूर्वांचल के एक बड़े माफिया वीरेंद्र शाही की दिनदहाड़े गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. वीरेंद्र शाही से श्रीप्रकाश शुक्ला की पुरानी अदावत थी. उस वक्त पूर्वांचल में ठाकुरों और ब्राह्मणों के बीच वर्चस्व की लड़ाई भी चरम पर थी. इसी दौरान एक लॉटरी और होटल व्यापारी की भी हत्या कर दी गई. लगातार हो रही हत्याओं की वजह से तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार हिल गई. एक स्पेशल पुलिस टीम बनाई गई, जिसने साल 1998 में गाजियाबाद में श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर कर दिया. श्रीप्रकाश के मारे जाने के बाद गुड्डू परवेज के जरिए मुख्तार अंसारी के पास चला गया. मुख्तार उसके बम बनाने के हुनर से बहुत प्रभावित हुआ. उसने भी उसे अपना खास गुर्गा बना लिया.

अतीक अहमद ने अपना अजीज बनाया

गुड्डू मुस्लिम ने साल 2001 तक मुख्तार अंसारी के लिए काम किया. लेकिन इसी बीच गोरखपुर पुलिस ने उसे पटना से गिरफ्तार कर लिया. गुड्डू को पुलिस हिरासत में पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया. इसी बीच उसकी जिंदगी में माफिया अतीक अहमद की एंट्री हो गई. अतीक ने अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करके उसे जमानत दिला दिया. इतना ही नहीं उसे आठ लाख रुपए भी दिए ताकि वो अपनी बीमारी का इलाज करा सके. बीमारी से ठीक होने के बाद गुड्डू पूरी तरह अतीक के लिए समर्पित हो गया. उसके लिए लोगों की प्रॉपर्टी पर कब्जा करने का काम करने लगा. पुलिस की माने तो उनके पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी संपर्क थे. पंजाब के रास्ते गुड्‌डू हथियार लाता था.

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''गोरखपुर में साल 1999 में नॉरकोटिक्स के केस में गुड्डू मुस्लिम का चालान हुआ था. उस समय मैं वहां एएसपी था. मैंने ही उसकी फर्द बनाई थी. उस केस में उसके 10 साल की सजा हुई थी. सजा के बाद अतीक अहमद ने अपने वकीलों के जरिए गुड्डू मुस्लिम की जमानत कराई थी. तब से वो अतीक के साथ काम कर रहा है.'' - अमिताभ यश, यूपी एसटीएफ प्रमुख

एमएलए राजूपाल मर्डर का मोस्ट वॉन्टेड

साल 2004 की बात है. तत्कालीन इलाहाबाद वेस्ट से लगातार पांच बार विधायक रह चुके माफिया अतीक अहमद को समाजवादी पार्टी ने फूलपुर से सांसद का टिकट दे दिया. अपने बाहुबल के दम पर अतीक सांसद भी बन गया. लेकिन सांसद बन जाने के बाद भी वो इलाहाबाद वेस्ट की सीट छोड़ना नहीं चाहता था. इसलिए उसने अपने छोटे भाई अशरफ को सपा से एमएलए का टिकट दिला दिया. इसी चुनाव में बसपा से राजू पाल को टिकट मिल गया. वो अशरफ के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर गए. चुनाव उन्होंने अशरफ को हरा दिया. यहीं से राजूपाल और अतीक के बीच दुश्मनी शुरू हो गई. 25 जनवरी 2005 को अतीक के गुर्गों ने बसपा विधायक राजू पाल की हत्या कर दी. इसमें गुड्डू का भी नाम आया था.

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इसलिए बाहुबलियों का खास था बमबाज 'गुड्डू मुस्लिम'...

- बम बनाने में माहिर

किसी भी माफिया को अपने रसूख को बनाए रखने के लिए हथियारों की जरूरत होती है. बंदूक और बम उनके अहम हथियार माने जाते हैं. बंदूक तो आसानी से मिल जाती है, लेकिन बम बनाना थोड़ी मुश्किल प्रक्रिया है. गुड्डू मुस्लिम देसी बम बनाने में एक्सपर्ट है. कहा जाता है कि वो अपने पॉकेट में बारूद के पाउडर लेकर घूमता है. बाइक पर बैठे-बैठे बम बनाकर टारगेट पर फेंकने में माहिर है. इसीलिए उसका नाम गुड्डू मुस्लिम से गुड्डू बमबाज पड़ गया. 90 के दशक के बाद कई बड़ी वारदातों में बम का इस्तेमाल हुआ, जिसमें सीधे तौर पर गुड्डू की सहभागिता रही है. 24 फरवरी को राजू पाल हत्याकांड में मुख्य गवाह उमेश पाल की प्रयागराज में जब हत्या हुई, तो गुड्डू को बम चलाते हुए देखा गया था.

- बाहुबलियों का वफादार

गुड्डू मुस्लिम जिस भी माफिया के साथ रहा, उन्होंने उसे अपना वफादार समझा. इसके पीछे मुख्य वजह ये थी कि वो जिसके साथ होता, उसके लिए जी जान से काम करता. अतीक अहमद के लिए उसने जो कुछ किया वो तो सबको पता ही है. अपने गुरु श्रीप्रकाश शुक्ला के लिए उसने लंबे समय तक काम किया. संगठित अपराध की दुनिया में उसकी एंट्री अभय सिंह और धनंजय सिंह जैसे बाहुबलियों ने कराई थी. उनके साथ रेलवे के ठेकों के लिए खूब काम किया. इसके बाद गोरखपुर के कुख्यात अपराधी परवेज टाडा के संपर्क में आया तो उसका दोस्त बन गया. यहां तक कि परवेज उसके बचाने के लिए हर कोशिश करने लगा. परवेज की वजह से ही गुड्डू बिहार के बाहुबली उदयभान सिंह, पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद के संपर्क में आया था.

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''बेशक अतीक और अशरफ बाहुबली क्यों न रहे हो, लेकिन उनमें गुड्डू मुस्लिम जैसा दिमाग नहीं था. वे दोनों हमेशा हनक में रहकर हुंकार भरते रहते थे. जबकि गुड्डू मुस्लिम हमेशा खामोश रहकर सिर्फ अपने शिकार को जाल में घेरकर निपटाने के लिए जाना जाता है. आज वो अपने मास्टरमाइंड होने के चलते ही बचा हुआ है.'' - राजेश कुमार पाण्डेय, पूर्व आईपीएस

- चकमा देने में उस्ताद

प्रयागराज में राजू पाल हत्याकांड में मुख्य गवाह उमेश पाल की दिनदहाड़े हत्या करने के बाद से गुड्डू मुस्लिम फरार है. वो लगातार पुलिस को चकमा दे रहा है. पुलिस उसे ट्रेस भी कर लेती है, लेकिन जब तक पहुंचती है, वो उस जगह से फरार हो जाता है. इसी से समझा जा सकता है कि वो कितना शातिर अपराधी है. पुलिस ने इस हत्याकांड के कई आरोपियों को गिरफ्तार किया है, लेकिन पांच लाख रुपए का ईनाम घोषित करने के बाद भी गुड्डू को नहीं पकड़ पा रही. इससे पहले उसे कई बार गिरफ्तार भी किया गया, तो भी अपने संपर्कों की बदौलत जेल से बाहर आ गया. कहा जाता है कि नेपाल में उसकी बहुत गहरी पैठ है. वो वारदात को अंजाम देने के बाद अक्सर नेपाल चला जाता है. वहां पुलिस पहुंच नहीं पाती है.

- दिलेर लेकिन दुर्दांत

गुड्डू मुस्लिम को बहुत दिलेर बताया जाता है, लेकिन वो उतना ही दुर्दांत अपराधी भी है. वो अपने शिकार को गोलियों से मारने की बजाए सीधे बम मारकर चीथड़े-चीथड़े करने में यकीन रखता है. जिस दौर में यूपी पुलिस एनकाउंटर पर एनकाउंटर कर रही है. अपराधी पुलिस के डर से खुद थाने में जाकर सरेंडर कर रहे हैं. उस दौर में भी सरेआम बिना किसी डर के एक गवाह और पुलिसवालों पर बम बरसाते हुए उसे पूरी दुनिया ने देखा है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो कितना प्रोफेशनल क्रिमिनल है. उसने आधे दर्जन से ज्यादा बडे़ माफियाओं के साथ काम किया, वो सब एक-एक करके मारे जाते रहे, लेकिन पुलिस कभी उसका बाल भी बांका नहीं कर पाई. देखते हैं यूपी पुलिस कबतक गिरफ्तार कर पाती है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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