New

होम -> सिनेमा

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 02 जनवरी, 2022 05:26 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
  • Total Shares

'ना जितनो जरूरी है, ना हारनो जरूरी है, जिंदगी एक खेल है, बस खेलनो जरूरी है'...ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर स्ट्रीम हो रही है साल 2021 की सबसे आखिरी फिल्म 'वाह जिंदगी' का ये डायलॉग हमे जीवन का असली मतलब समझाने के लिए काफी है. हमारे समाज और उसकी सोच पर फिल्म के जरिए करारा प्रहार करने की कोशिश की गई है. इतना ही नहीं फिल्म ने व्यापार को जरिया बनाकर हमारे पड़ोसी देश चीन की चाल को भी बेनकाब किया है. इसमें बाल विवाह, ग्रामीण राजस्थान में पानी की कमी, छात्रों के प्रमुख करियर विकल्प के रूप में केवल इंजीनियरिंग-मेडिकल की बात और विश्व स्तर पर निर्माण उद्योग पर हावी होने की चीनी रणनीति जैसी समस्याओं को प्रमुखता से उठाया गया है. सही मायने में कहें तो भारत सरकार के 'मेक इन इंडिया' मूवमेंट को फिल्म में बहुत ही बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है.

waah-zindagi-650_010222011715.jpgफिल्म 'वाह जिंदगी' राजस्थान के रहने वाले रीना और अशोक के जीवन की सच्ची कहानी से प्रेरित बताई जा रही है.

Waah Zindagi Movie की कहानी

फिल्म 'वाह जिंदगी' में नवीन कस्तूरिया, संजय मिश्रा, विजय राज, प्लाबिता बोरठाकुर, मनोज जोशी और ललित शर्मा जैसे कलाकार अहम किरदारों में नजर आ रहे हैं. इस फिल्म का निर्देशन दिनेश एस यादव ने किया है, जबकि शिवाज फिल्म्स एंड एंटरटेनमेंट ने प्रोड्यूस किया है. फिल्म के शुरुआती क्रेडिट में कहा गया है कि यह रीना और अशोक चौधरी के जीवन से प्रेरित है. फिल्म की कहानी भी अशोक (नवीन कस्तूरिया) और रीना (प्लाबिता बोरठाकुर) नामक दो किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती रहती है. अशोक राजस्थान के ऐसे गांव से आता है, जहां पूरे साल सूखा रहता है. वहां सिंचाई के लिए पानी की बात तो छोड़िए पीने का पानी भी गांव में उपलब्ध नहीं होता है. गांव में रहने वाले अशोक के दादा रामकरण (संजय मिश्रा) का सपना होता है कि वो वहां कुएं खुदवा सकें, ताकि लोगों को पानी किल्लत का सामना न करना पड़े.

अशोक के परिजन चाहते हैं कि वो आईआईटी से इंजनीयरिंग करके उनके सपने को पूरा करे, लेकिन लंबी तैयारी के बाद भी वो ऐसा नहीं कर पाता. इधर वो अपनी पत्नी रीना, जिससे उसका बाल विवाह हो चुका होता है, को भी पाना चाहता है, जो बिना अच्छी नौकरी लगे और पैसा कमाए संभव नहीं हो सकता है. यही वजह है कि निराश होकर अशोक खुदकुशी करने की कोशिश करता है, लेकिन उसी वक्त साधू-संतों का एक समूह उसकी जान बचा लेता है. इसके बाद अशोक उनके साथ रहकर तपस्वी का जीवन जीने की सोचता है, लेकिन एक साधु द्वारा समझाए जाने के बाद वो अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करता है. अशोक अपना बिजनेस शुरू करता है. इसके लिए वो चीन कुछ सामान मांगता है, लेकिन चीनी माल की घटिया क्वालिटी के प्रोडक्ट्स की वजह से उसका बिजनेस प्रभावित होने लगता है.

इसकी शिकायत करने पर वो एक क्रूर व्यवसायी जगत शाह (मनोज जोशी) को अपना कट्टर दुश्मन बना लेता है. एक स्थानीय गुंडे बन्ना (विजय राज) के गलत पक्ष में भी फंस जाता है. लेकिन अशोक हार नहीं मानता. वो अपना प्रोडक्ट्स खुद बनाने का फैसला करता है. इस तरह वो 'मेक इन इंडिया' के सच्चे प्रतिनिधि के तौर पर लोगों के सामने आता है. अब सवाल ये उठता है कि क्या अशोक अपने दादा का सपना पूरा कर पाता है या नहीं? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

Waah Zindagi Movie की समीक्षा

फिल्म 'वाह जिंदगी' के निर्माता-निर्देशक दिनेश एस यादव ने व्यंग्यपूर्ण डार्क कॉमेडी टच के साथ एक दिलचस्प विषय में गहराई से उतरने की कोशिश की है. लेकिन कमजोर लेखन और पटकथा की वजह से सफल नहीं हो पाए हैं. हालांकि, बाल विवाह, पानी की कमी, छात्रों के सामने करियर विकल्प की समस्याओं और चीन की औद्योगिक रणनीति जैसे कई गंभीर मुद्दों को अपनी कहानी में समाहित करते हुए बड़ी सरलता से समझा जाते हैं. फिल्म भारतीय मानसिकता पर गंभीर टिप्पणी करती है. यह कैसे व्यक्तियों पर निर्भर करता है कि वे एक स्टैंड लें और वह बदलाव कर सकें, जो वे अपने आसपास देखना चाहते हैं. चाहे वह करियर का विकल्प हो या फिर विदेशी उत्पाद खरीदने की बात. चूंकि इस फिल्म में अधिकांश पात्र राजस्थानी हैं, ऐसे में सूर्यपाल सिंह, रुहिन और कमल मालवीय के डायलॉग बेहतर लगते हैं.

जहां तक कलाकारों के अभिनय प्रदर्शन की बात है, तो अभिनेता नवीन कस्तूरिया पूरी फिल्म को अपने कंधों पर ले जाने में सक्षम दिखते हैं. नवीन का किरदार अशोक लोगों को विदेशी उत्पादों के बजाय स्थानीय वस्तुओं को बढ़ावा देने और उत्पादन करने के लिए प्रेरित करने का संदेश बहुत सरलता से दे जाता है. इतना ही नहीं उनको विजय राज, संजय मिश्रा और मनोज जोशी जैसे दिग्गज अभिनेताओं का मजबूत साथ मिला है. हालांकि, इनका स्क्रीन स्पेस बहुत कम है, यदि ज्यादा होता तो फिल्म को बहुत फायदा मिलता. प्लाबिता बोरठाकुर ने अशोक की पत्नी और प्रेमिका रीना के किरदार में ठोस अभिनय किया है. ललित शर्मा अपनी कॉमेडी से लोगों को हंसाने में सफल नजर आते हैं. संजय मिश्रा अशोक के दादा रामकरण के किरदार में बेहतरीन अभिनय प्रदर्शन करते हैं. अपनी कहानियों से उसे प्रेरित करते रहते हैं.

फिल्म के तकनीकी पक्ष की बात करें तो छायांकन और संपादन को बेहतर करके फिल्म को बेहतरीन बनाया जा सकता था. पराग छाबड़ा का संगीत कहानी और पटकथा के साथ अच्छी तरह मेल खाता है. कुछ साउंडट्रैक जैसे 'भारी भारी', 'जिंदादी' और 'नैनो' कर्णप्रिय हैं. कुल मिलाकार, 'वाह जिंदगी' एक दिलचस्प फिल्म है, जिसमें साउंडट्रैक बहुत अच्छा है. भले ही इसकी पटकथा विविध मुद्दों को संबोधित करती हुई प्रतीत होती है, लेकिन अंत में सब कुछ एक ट्रैक पर आकर खत्म होता है. इस फिल्म को एक बार देखा जा सकता है.

iChowk.in रेटिंग: 5 में से 3 स्टार

#वाह जिंदगी, #फिल्म समीक्षा, #मूवी रिव्यू, Waah Zindagi Movie Review In Hindi, Naveen Kasturia, Sanjay Mishra

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय