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Updated: 25 अगस्त, 2022 06:21 PM
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बाहुबली, जयभीम, आरआरआर, पुष्पा, और  केजीएफ 2 जैसी फिल्म देखने की उम्मीद में 'लाइगर' के लिए सिनेमाघर पहुंचे तमाम दर्शक खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. ट्विटर और तमाम दूसरे इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे लोगों की कमी नहीं जो पुरी जगन्नाध के निर्देशन में बनी लाइगर को दक्षिण के रैपर में लिपटी बॉलीवुड की घटिया 'टॉफी' करार दे रहे हैं. एक निराश दर्शक ने लिखा- पेस और दर्शकों से कनेक्टिविटी साउथ के सिनेमा की विशेषता होती है. दुर्भाग्य से लाइगर में वही नहीं है. यह पूरी तरह से बॉलीवुड की पिच पर बनी फिल्म नजर आती है. और शायद इसकी सबसे बड़ी वजह करण जौहर का बैनर हो.

एक दर्शक ने लिखा- बॉलीवुड और करण जौहर के सिनेमा में जो कुछ होता है वह सब 'लाइगर' में मिल जाएगा. गली का आवारा लड़का है. हकलाता है. कमाल का फाइटर भी है. उसपर एक कोच की नजर पड़ती है. ऊँचे सोसायटी की लड़की उसे चाहने लगती है. तमाम अच्छे लोग हैं जो लाइगर की बॉक्सिंग प्रतिभा से प्रभावित दिखते हैं और उसे आगे बढ़ाना चाहते हैं. वह अमेरिका पहुंच जाता है और बड़ा नाम करता है. देश विदेश की चकाचौंध है. तिरंगा के साथ राष्ट्रवाद को भी बनाने की कोशिश है.

क्या करण जौहर के सब चंगा सी वाले फ़ॉर्मूले पर बनी है फिल्म?

वैसे कुछ लोगों ने लाइगर को एक प्रेरणादायक कहानी माना मगर उनका सवाल भी है कि क्या हकीकत में ऐसा ही होता है. बॉलीवुड 75 साल से ऐसी ही फ़िल्में बना रहा है. समाज दिखता है, लोग दिखते हैं मगर उनकी पड़ताल की जगह ऐसी निजी स्थापनाएं नजर आती हैं जो प्रेरणा देने की बजाए सिर्फ फील गुड कराती हैं. कुछ लोगों ने यह सवाल भी किया कि लाइगर में विजय ने जो किरदार जिया है- गलियों में पलने बढ़ने वाले कितने साधनहीन लड़कों के साथ इस तरह होता है? जब कहानी कनेक्ट ही नहीं करती तो सिनेमाघर में दो घंटे बोरियत महसूस होती है. एक दर्शक ने साफ़ साफ कहा- यह जौहर एंड कंपनी के 'सब चंगा सी' वाले फ़ॉर्मूले पर बनी फिल्म है.

liger reviewलाइगर में विजय देवरकोंडा और अनन्या पांडे.

कुछ दर्शकों ने लिखा कि दक्षिण और बॉलीवुड के सिनेमा में जिस बात का अंतर रहता है लाइगर में उसका ख्याल नहीं रखा गया और इस वजह से यह एक साधारण बॉलीवुड फिल्म ही नजर आती है. दक्षिण के सिनेमा में समाज को दिखाने के लिए बनावटी और सच्चाई से कोसों दूर की चीजों को नहीं दिखाया जाता. अमीर हीरो के अपोजिट गरीब हीरोइन या गरीब हीरोइन के अपोजिट अमीर हीरोइन का फ़ॉर्मूला दक्षिण में होता भी है तो बैकग्राउंड एनालिसिस के साथ. लाइगर में कुछ अच्छे लोग एक स्ट्रीट फाइटर की जिंदगी में आते हैं और सबकुछ रातोंरात बदल जाता है. वह प्रोफेशनल बॉक्सर बन जाता है. जबकि हकीकत में लाइगर जैसे लड़कों का संघर्ष बहुत मुश्किल और टेढ़ा होता है. नागराज मंजुले की झुंड में टेढ़ेपन की बेबाकी को देखा जा सकता है. करण जौहर के सिनेमा की खूबी यही है कि जो चीजें यथार्थ में नहीं होतीं उसे दिखाया जाता है. और जो चीजें मौजूद रहती हैं उसे गोलमोल कर दिया जाता है.

लाइगर से भड़के दर्शक सरपट्टा के उदाहरण से बता रहे दक्षिण और बॉलीवुड के बीच का अंतर

विजय देवरकोंडा की फिल्म में चीजों के पीछे की सामजिक वजहों की पड़ताल नहीं की गई है. लाइगर हकीकत में एक अलग कहानी है जो करण जौहर की फिल्मों के दर्शन में सटीक नहीं बैठती. कुछ लोगों ने कहा कि अगर यही साउथ के सिनेमा दर्शन खासकर तमिल में बनाई जाती तो निर्माता लाइगर की कहानी को आम दर्शकों से कनेक्ट कर जाते. कई लोग पिछले साल बॉक्सिंग पर ही आई तमिल की फिल्म 'सरपट्टा परमबरै' का उदाहरण दे रहे हैं. उनके मुताबिक़ यह फिल्म दिखाती है कि प्रतिभा होने के बावजूद महज सामजिक पृष्ठभूमि की वजह से कैसे हजारों लाखों लोगों को रोजाना मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

कुल मिलाकर सोशल मीडिया पर ऐसे दर्शकों की संख्या बहुत व्यापक है जिन्हें लाइगर की कहानी एक 'एज ओल्ड ड्रामा' नजर आ रही है. बचकाना नरेशन, घटिया स्क्रीनप्ले, सुस्त संवाद लोगों को पसंद नहीं आए हैं. कुछ दर्शकों को फिल्म का निर्देशन भी आउटडेटेड नजर आ रहा. लाइगर में देवरकोंडा ने मुख्य भूमिका निभाई है. उनके अपोजिट अनन्या पांडे हैं. रम्या कृष्णन, रोनित राय भी अहम भूमिका में हैं. जबकि माइक टायसन भी कैमियो में नजर आ रहे हैं. रम्या कृष्णन और विजय के काम में दर्शकों को ओवर एक्टिंग दिख रही है. हालांकि फिल्म के तकनीकी पक्षों की सरहाना भी की जा रही है. ट्विटर पर लाइगर से जुड़े कई हैश टैग ट्रेंड कर रहे हैं.

लाइगर के खिलाफ सोशल मीडिया पर निगेटिव कैम्पेन दिखा था. हालांकि यह लाल सिंह चड्ढा और रक्षा बंधन के खिलाफ जारी निगेटिविटी की तरह मजबूत नहीं था. बावजूद लाइगर के खलाफ बायकॉट की अपील थी. इसकी दो वजहें थीं. एक तो करण जौहर ने फिल्म का निर्माण किया है, उनकी पसंदीदा अनन्या पांडे फिल्म में हीरोइन हैं. दूसरा लाइगर के एक्टर विजय देवरकोंडा ने लाल सिंह चड्ढा का सपोर्ट किया था और बायकॉट की अपील  करने वालों से नाराजगी जताई थी. कहीं ना कहीं फिल्म देखने वाले दर्शकों की समीक्षाओं में बायकॉट का असर दिख रहा है. बिल्कुल माना जा सकता है कि हिंदी पट्टी में लाइगर की खिलाफत का असर सिनेमाघरों में दिख रहा है. लाइगर को पैन इंडिया तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और हिंदी में रिलीज किया गया है.

IMDb पर डूबती दिख रही है विजय देवरकोंडा की लाइगर

सोशल मीडिया पर कुछ दर्शक यह भी दावा करते नजर आ रहे हैं कि मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में तो हिंदी वर्जन की बजाए तेलुगु वर्जन की डिमांड ज्यादा है. अगर यह सच है तो इसे सबूत मानना चाहिए कि हिंदी पट्टी में दर्शकों ने लाइगर को वैसा प्यार देने की कोशिश करते नहीं नजर आ रहे जैसा कि दक्षिण की तमाम फिल्मों को मिलता दिख रहा है. बात जहां तक आईएमडीबी की है- लाइगर को लेकर कोई हलचल नजर नहीं आ रही. खबर लिखे जाने तक महज डेढ़ हजार यूजर फिल्म के टाइटल पर इंगेज नजर आए. यूजर्स ने 10 में से 3.1 रेट किया है. इसे बहुत साधारण कहा जा सकता है.  

वैसे मूलत: तेलुगु वर्जन को भी हैदराबाद में भाजपा विधायक टी राजासिंह की वजह से भी नुकसान उठाना पड़ रहा है. टी राजा के बयान के बाद तेलुगु क्षेत्रों में हिंदू बनाम मुस्लिम की जो बहस खड़ी हुई है उससे भी लाइगर को नुकसान पहुंचता दिख रहा है. सोशल मीडिया पर तमाम मीम्स में विजय की दूसरे तेलुगु स्टार्स से हो रही तुलनाओं में इसे समझा जा सकता है.

लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि फिल्म पसंद करने वालों की संख्या कम है. लाइगर को पसंद करने वाले दर्शक भी सामने आ रहे हैं और फिल्म की तारीफ़ कर रहे हैं. कई लोगों ने बताया कि लाइगर में दक्षिण और बॉलीवुड का संगम दिखता है. इसने फिल्म के क्राफ्ट को लाजवाब बना दिया है.

कुछ ने माना कि विजय देवरकोंडा ने एक बेहतरीन भूमिका निभाई है. यह एक प्रेरणादायक फिल्म है. जो समाज में हर तरह के भेदभाव से अलग समाधान देने की कोशिश करती है. लोगों को रम्या कृषन रोनित रॉय का काम भी भाया है. अनन्या पांडे के काम को भी ठीकठाक बता रहे हैं. खासकर फिल्म के विजुअल और भव्य दृश्य की तो जमकर तारीफें हो रही हैं.

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