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Updated: 25 जनवरी, 2022 07:06 PM
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कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुई भयानक त्रासदी भुलाए नहीं भूलती है. वो अस्पताल के बाहर एंबुलेस की लंबी-लंबी लाइने, ऑक्सीजन के अभाव में सड़कों पर भटकते और तड़प-तड़प कर मरते लोग, श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में लाशों की लंबी-लंबी लाइने, अंतिम संस्कार कराने के लिए भी वेटिंग लिस्ट, श्मशान में 24 घंटे जलती हुई लाशों का खौफनाक दृश्य, महज तीन महीने के अंदर कितना कुछ देखा और सहा हम सभी ने, जिसके बारे में सोचकर आज भी रूह कांप उठती है.

सांसे थम जाती हैं. दिल दरक जाता है. लेकिन उस दौर ने हमें सबक भी दिया है. इंसानियत सिखाई है. रिश्तों की अहमियत बताई है. इन्हीं सब भावनाओं और संभावनाओं को समेटे हुए अमेजन प्राइम वीडियो पर एक एंथोलॉजी सीरीज 'अनपॉज्ड: नया सफर' (Un-paused: Naya Safar) रिलीज की गई है. इसमें आधे-आधे घंटे के एपिसोड में पांच कहानियां दिखाई गई हैं, जो हर किसी का दिल झकझोक देने का माद्दा रखती हैं.

1643029806077_650_012422084712.jpgइस एंथोलॉजी सीरीज के अंतिम एपिसोड 'वैकुंठ' में नागराज मंजुले का निर्देशन और अभिनय जबरदस्त है.  

अमेजन प्राइम वीडियो की पैनडेमिक स्पेशल एंथोलॉजी सीरीज के पहले सीजन में जहां पहली लहर के दौरान आर्थिक, सामाजिक और मानसिक प्रभाव को पेश किया था. वहीं, दूसरे सीजन 'अनपॉज्ड: नया सफर' में समाज के अलग-अलग वर्गों के भावनात्मक पहलुओं को पेश किया गया है. इसकी पांच कहानियों 'द कपल', 'तीन तिगाड़ा', 'गोंद के लड्डू', 'वॉर रूम' और 'वैकुंठ' को शिखा माकन, नूपुर अस्थाना, रुचिर अरुण, अयप्पा केएम और नागराज मंजुले ने निर्देशित किया है. इसमें रसिका अगाशे, नागराज मंजुले, अर्जुन करचेंड, साकिब सलीम, आशीष वर्मा, सैम मोहन, श्रेया धनवंतरी, प्रियांशु पेन्युली, दर्शना राजेंद्रन, अक्षवीर सिंह सरन, नीना कुलकर्णी और गीतांजलि कुलकर्णी जैसे कलाकार अलग-अलग किरदारों में नजर आ रहे हैं.

कोरोना संक्रमण काल में मानवीय रिश्तों की दास्तान बयां करती इन पांच कहानियों में सबसे ज्यादा प्रभावित 'वैकुंठ' करती है. 'वैकुंठ' मतलब वो जगह जहां जाने के बाद आत्मा ईश्वर में विलीन हो जाती है. उसे मोक्ष की स्थिति कहा जाता है. इसे देखने के बाद समझ में आता है कि हम किस दौर से गुजरे हैं. जलती लाशों के बीच झुलसती जिंदगी को जीना बहुत मुश्किल है.

एंथोलॉजी सीरीज 'अनपॉज्ड: नया सफर' के अंतिम लेकिन सबसे अहम 'वैकुंठ' की कहानी श्मशान में लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले डोम विकास चव्हाण (नागराज मंजुले) के इर्द-गिर्द घूमती है. विकास वैकुंठधाम (श्मशान घाट) में चिताएं जलाने का काम करता है. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान एम्बुलेंस की आवाजे आने और कोविड-19 से मरने वाले मरीजों की चिताओं के दृश्य बेहद आम हो गए थे. विकास जिस श्मशान घाट पर काम करता है, वहां भी बड़ी संख्या में शव लाए जा रहे हैं. खासकर उसके शहर के सरकारी अस्पताल में मरने वाले हर मरीज का अंतिम संस्कार वहीं से किया जा रहा है.

विकास अपने साथियों के साथ अपना काम ईमानदारी से करता है. लेकिन उसी बीच उसके पिता को कोरोना हो जाता है. उनको सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया जाता है. विकास और उसके बेटे की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आती है, लेकिन मकान मालिक उनको घर से बाहर निकाल देता है. विकास अपने बेटे को लेकर श्मशान में ही रहने लगता है. विकास की कहानी के जरिए यह दिखाया गया है कि कैसे कोरोना की खौफ की वजह से लोग अपने पिता तक को मुखाग्नि नहीं दे रहे थे. लोग अपने परिजनों की अस्थियां भी सैनिटाइज करके ले रहे थे.

यहां तक कि कई लोग तो कोरोना के डर की वजह से न तो अपनों का अंतिम संस्कार कर रहे थे, न ही उनकी अस्थियां लेने आते थे. इस वजह से श्मशान में राख का ढेर लग जाता है. उसे बाद में खेतों में खाद की तरह छिड़क दिया जाता है. श्मशान में भीड़ लगी होने की वजह से कई शवों को चिता की आग भी नसीब नहीं हुई थी. उनके शवों को सीधे नदी में प्रवाहित कर दिया गया था. बाद में वही शव पानी में तैरते हुए दिखाई दिए थे. विकास अपनी निजी उलझनों को भूलकर दिन-रात तमाम खतरे के बीच रहते हुए कोरोना मरीजों के शवों को जला रहा है. लेकिन बेटा हर रोज अपने दादा के बारे में पूछता है.

विकास एक दिन उनको देखने अस्पताल भी जाता है, लेकिन उसे झिड़क कर वापस भेज दिया जाता है. इस तरह बीमार पिता को सरकारी अस्पताल के हवाले करके विकास अपने काम में लग जाता है. हर दिन की तरह उस सरकारी अस्पताल से शवों को लेकर आने वाली एंबुलेस के ड्राइवर ने एक दिन विकास को आवाज दी, तो उसका दिल सन्न रह गया. उसे लगा कि उसके पिता का शव भी आ गया है, लेकिन अचानक पिता को जिंदा सामने देखकर उसकी आंखों से आंसू छलक उठते हैं. यह दृश्य बहुत ज्यादा भावुक कर देने वाला होता है.

इस सीरीज में विकास चव्हाण का किरदार निभाने वाले नागराज मंजुले ने ही इसका निर्देशन किया है. नागराज पोपटराव मंजुले एक फिल्म निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, पटकथा लेखक और कवि हैं, जो मूलत: मराठी सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उनकी फिल्म 'सैराट' के बारे में हर सिने प्रेमी जानता है. अपनी प्रतिभा के मुताबिक नागराज ने वैकुंठ में जितना जबरदस्त निर्देशन किया है, उतना ही दमदार अभिनय भी किया है. उनके बेहतरीन कोशिश से ही दूसरी लहर की इन भावुक कहानियों के नए सफर को वैकुंठ के जरिए एकदम मुकम्मल मंजिल मिलती है. सही मायने में वैकुंठ कोरोना की दूसरी लहर की त्रासदी का रियल रिप्ले है.

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