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Updated: 05 मई, 2023 01:02 PM
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फिल्म 'द केरल स्टोरी' के निर्देशक सुदीप्तो सेन पहली बार लव जिहाद, धर्मांतरण और आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर आधारित फिल्म नहीं बना रहे हैं. इससे पहले वो इसी विषय पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'इन द नेम ऑफ लव' बना चुके हैं. चूंकि ये डॉक्यूमेंट्री फिल्म मलयालम और अंग्रेजी भाषा में था, इसलिए हिंदी पट्टी में इसे लेकर कोई चर्चा नहीं हुई थी. लेकिन 'द केरल स्टोरी' को लेकर जमकर बवाल और हंगामा हो रहा है. इसको आरएसएस और बीजेपी का प्रोपेगेंडा बताया जा रहा है. इसकी रिलीज से पहले इसे बैन की मांग की जा रही है. कहा जा रहा है कि फिल्म में इस्लामिक जिहाद के जो आंकड़े बताए गए हैं वो गलत हैं. इतनी बड़ी संख्या में लड़कियों का धर्मांतरण नहीं किया गया था. लेकिन विरोध करने वाले ये नहीं बता पा रहे कि धर्मांतरण आखिर किस सोच के साथ किया गया था. उस वक्त इनकी नैतिकता कहां थी.

फिल्म 'इन द नेम ऑफ लव' पिछले साल रिलीज हुई थी. इस फिल्म के जरिए दावा किया गया था कि 2009 के बाद से केरल की 17 हजार और मैंगलोर की 15 हजार से अधिक लड़कियों को जाल में फंसाकर इस्लाम धर्म में परिवर्तित कर दिया गया. इनमें से अधिकांश लड़कियों को सीरिया, अफगानिस्तान और अन्य आईएसआईएस तालिबान प्रभावशाली देशों में भेज दिया गया. यहां इनका शोषण किया गया. इनका ब्रेन वॉश करके आतंकी ट्रेनिंग दी गई. इसके बाद हाथ में हथियार देकर जंग में उतार दिया गया. उस वक्त की तत्कालीन केरल सरकार इस सच स्वीकारने और लड़कियों को बचाने की बजाए राजनीति करती रही. जमीन पर किसी तरह कानूनी कार्रवाई देखने को नहीं मिली. यही वजह है कि इसका न तो कोई ऑफिशियल डाटा मौजूद है, न ही किसी तरह के सबूत छोड़े गए हैं. इस पर पुलिस-प्रशासन मौन है. सरकार इनकार मोड में है.

650x400_050423104811.jpgसुदीप्तो सेन के निर्देशन में बनी फिल्म 'द केरल स्टोरी' लगातार विवादों में बनी हुई है.

सुदीप्तो सेन की डॉक्यूमेंट्री फिल्म की हकीकत

इस फिल्म के जरिए ये भी कहा गया है कि केरल सरकार की उदासीनता की वजह से धर्मांतरण आग की तरह फैल गया. सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद एनआईए ने 90 केस की जांच की है, जो कि लव जिहाद और धर्मांतरण से जुड़ी हुई हैं. डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया है कि किस तरह से हजारों हिंदुस्तानी बेटियां मिडिल ईस्ट भेजी गई, जहां उनका ब्रेन वॉश करके उनका धर्म बदल दिया गया. फिल्म के मेकर्स की तरफ से कहा गया है, ''हमने घर से भागी हुई बच्चियों की मांओं की आंखों में आंसू देखे हैं. उनकी मायूसियों की चीख सुनी है. इस अहम डॉक्यूमेंट्री में देश की पुकार सुनाने की कोशिश की गई है. एक ऐसे देश की व्यथा को महसूस कराने की कोशिश की गई है, जो हर साल हजारों की संख्या में अपनी बेटियों को खो रहा है.'' इन बातों से डॉक्यूमेंट्री फिल्म की तपिश महसूस की जा सकती है. निर्देशक सुदीप्तो सेन के मेहनत देखी जा सकती है.

फिल्म 'द कन्वर्जन' पर भी बवाल हुआ था

'द केरल स्टोरी' की तरह पिछले साल रिलीज हुई फिल्म 'द कन्वर्जन' पर भी इस तरह से बवाल हुआ था. लव जिहाद पर आधारित इस फिल्म में भी दिखाया गया है कि किस तरह से हिंदू लड़कियों का प्यार और शादी के नाम पर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है. विनोद तिवारी के निर्देशन में बनी इस फिल्म में विन्ध्या तिवारी, प्रतीक शुक्ला और रवि भाटिया जैसे कलाकार मुख्य भूमिका में हैं. इस फिल्म का एक डायलॉग है, जिसके जरिए इसकी कहानी समझी जा सकती है. ''जो लोग तिलक कलावा बांधकर, हमारी बेटियों के साथ छलावा करते हैं, वो लोग सुधर जाएं, क्योंकि देश का हिंदू जाग चुका है''. फिल्म में दिखाया गया है एक हिंदू लड़की कॉलेज में एक मुस्लिम से प्यार करने लगते हैं. उसे नहीं पता होता कि जिस लड़के से वो प्यार कर रही है, वो नाम बदलकर उसे धोखा दे रहा है. यहां तक कि उसे संस्कृत के श्लोक सुनाकर भरोसा दिला देता है.

सच है सिनेमा समाज का आईना होता है

लड़की उस लड़के जाल में फंसकर परिवार से बगावत कर देती है. उसका कहना होता है, 'हर मुसलमान बुरा नहीं होता है'. इसके बाद मुस्लिम लड़के से शादी कर लेती है. उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव डाला जाता है. इंकार करने पर अत्याचार किया जाता है. अंत में उस लड़की को समझ में आ जाता है कि वो जाल में फंस चुकी है. इसके बाद अपने एक हिंदू दोस्त की सहायता से उस जाल से निकल जाती है. उसे मारने की कोशिश की जाती है. लेकिन परिवार और दोस्त मिलकर बचा लेते हैं. लड़की लव जिहाद के प्रति जागरूकता अभियान शुरू कर देती है. इस फिल्म में उस हकीकत को दिखाने की कोशिश की गई है, जिसे कई बार खबरों में देखा और पढ़ा गया है. इस फिल्म को भी प्रोपेगेंडा बताया गया था. लेकिन समझने वाली बात ये है कि आए दिन इस तरह की जो घटनाएं हो रही हैं, वो क्या है? सिनेमा समाज का आईना होता है. इस सच को स्वीकार किया जाना चाहिए.

केरल के सीएम ने हकीकत बयां की थी

केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि सूबे में हर साल 2800 से 3200 लड़कियां इस्लाम धर्म अपना रही हैं. इसी आधार पर कहा गया कि पिछले 10 साल में यह आंकड़ा 32 हजार के पार पहुंच चुका है. यानी इतनी लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराकर मुस्लिम बना दिया गया. ये मुद्दा केरल में खूब सुर्खियों में रहा, लेकिन राजनीतिक उदासीनता की वजह से आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी. लेकिन केरल हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश केटी शंकरन ने इस पर सख्त टिप्पणी की थी. उन्होंने 9 दिसंबर 2009 को दिए गए अपने एक फैसले में जबरन धर्मांतरण पर कहा था कि प्यार के नाम पर जबरन मतांतरण कराया जा रहा है. सरकार को इस तरह की गतिविधियों को रोकने के लिए कानून बनाना चाहिए. न्यायाधीश ने यह भी कहा था कि प्यार के नाम पर किसी प्रकार का कपटपूर्ण अथवा जबरन मतातंरण नहीं हो सकता है.

'लव जिहाद' शब्द का जनक केरल ही है

वैसे 'लव जिहाद' शब्द सबसे पहले साल 2008 में सुनने में आया था, तब केरल में बड़ी संख्या में हिंदू और ईसाई लड़कियों के प्रेम जाल में फंसाकर शादी के बहाने धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था. लव जिहाद दो शब्दों से बना है. लव एक अंग्रेजी शब्द है. इस हिंदी मतलब प्यार होता है. जिहाद अरबी शब्द है. इसका हिंदी मतलब किसी खास मकसद के लिए युद्ध करना होता है.इस तरह लव जिहाद में किसी खास धर्म के लोग दूसरे धर्म की लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसाकर उसका धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश करते हैं. इस शब्द के ईजाद होने से पहले भी इस तरह की घटनाएं होती रही हैं. यही वजह है कि सिनेमा में भी इसकी झलक देखने को मिलती है. पिछले कुछ वर्षों में तो लव जिहाद को आधार बनाकर भी कई फिल्मों का निर्माण किया गया है. कुछ फिल्मों में सीधे इस मुद्दे पर बात की गई है, तो कुछ फिल्मों में आंशिक रूप से इसकी झलक दिखाई गई है. जैसे कि बॉलीवुड फिल्म 'केदारनाथ', 'रांझणा', 'वीर जारा', 'तूफान', 'सूर्यवंशी', 'अतरंगी रे', 'इशकजादे' और 'बॉम्बे' में हिंदू और मुस्लिम धर्म के बीच प्रेम संबंधों को लेकर कहानी दिखाई गई है.

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