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Updated: 07 मई, 2022 07:14 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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सदाबहार फिल्म अभिनेता अनिल कपूर अपनी बेटी सोनम की शादी करने के बाद पूरी तरह बेटे हर्ष वर्धन कपूर के करियर को स्थापित करने में लगे हुए हैं. यही वजह है कि खुद फिल्में प्रोड्यूस करके, उसमें अभिनय करके, बेटे को सफल बनाने की असफल कोशिश कर रहते रहे हैं. बाप-बेटे की आखिरी फिल्म AK vs AK को ही देख लीजिए. नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई ये फिल्म हाइप के मुकाबले लोगों को बहुत कम पसंद आई थी. लेकिन पिता अपनी नजरों के सामने बेटे को कैसे निराश देख सकता है. इसलिए अनिल कपूर ने एक बार फिर कोशिश की है. इस बार वो फिल्म 'थार' लेकर आए हैं, जिसमें उनके साथ बेटे हर्ष वर्धन कपूर, फातिमा सना शेख, मुक्ति मोहन और सतीश कौशिक जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. राज सिंह चौधरी के निर्देशन में बनी ये फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है, जिसकी कहानी खुद निर्देशक ने लिखी है, जबकि डायलॉग अनुराग कश्यप जैसे धुरंधर फिल्म मेकर और लेखक ने लिखा है. इन सबके बावजूद फिल्म दर्शकों के उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई है. एक बार फिर अनिल की कोशिश बेकार गई है.

फिल्म 'थार' इटली की स्पेगेटी वेस्टर्न जॉनर में बनी 'द डॉलर ट्रिलॉजी', 'वन्स अपॉन ए टाइम इन वेस्ट', 'डे ऑफ एंगर', 'डेथ राइड्स ए हॉर्स', 'द फाइव मैन आर्मी', 'द मर्सिनरी', 'जोंगो' जैसी हॉलीवुड फिल्मों से प्रेरित नजर आती है. इस जॉनर में बॉलीवुड में भी 'शोले', 'मेरा गांव मेरा देश', 'खोटे सिक्के' और 'लोहा' जैसी फिल्में बनी है. इन फिल्मों की तरह इसमें भी शहर से सुदूर बसा एक गांव है, जिसके चारों तरफ जंगल और पहाड़ हैं. रेत का मैदान है. पहाड़ों के बीच चील और बाज जैसे पक्षियों की गूंजती आवाजें डरावनी सी लगती हैं. अंधेरी रात में कई किलोमीटर दूर तक फैले रेत के मैदान के बीच बने रास्ते पर जब कोई गाड़ी अपनी हेडलाइन जलाए दौड़ती है, तो मन में कौतूहल पैदा होता है. लेकिन जैसे ही बात कहानी और कलाकारों के अभिनय की आती है, मामला फुस्स हो जाता है. यकीन नहीं होता है कि इतने अनुभवी कलाकारों, लेखक और निर्देशक के होने के बावजूद फिल्म इतनी प्रभावहीन कैसे हो सकती है. क्योंकि बडे़ नाम उम्मीदों को बड़ा कर देते हैं, लेकिन जब ''नाम बड़े और दर्शन छोटे'' जैसी स्थिति दिखती है, तो निराशा होती है.

thar_1200x768-650_050722070416.jpgफिल्म 'थार' ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है.

'थार' फिल्म की कहानी इंस्पेक्टर सुरेखा सिंह (अनिल कपूर) और तस्कर सिद्धार्थ (हर्ष वर्धन कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती रहती है. फिल्म की पृष्ठभूमि साल 1980 में राजस्थान के एक गांव मुनाबो को केंद्र में रखकर बुनी गई है. शहर से बहुत दूर बसा मुनाबो बहुत शांत रहता है. यही वजह है कि यहां तैनात पुलिसवालों की जिंदगी निरस रहती है. काम के नाम पर उनको नेताओं की सुरक्षा का जिम्मा मिल जाता है. लेकिन एक दिन मुनाबो अचानक अशांत हो जाता है. एक के बाद एक कई हत्याओं से दहल उठता है. गांव डकैती की वारदात भी होती है, जिसमें घर के मालिक और उसकी पत्नी की हत्या कर दी जाती है. घर से थोड़ी दूर रात के अंधेरे में अपने आशिक के साथ रंगरलियां मना रही बेटी पूरी वारदात अपनी नंगी आंखों से देखती है. जैसा कि हर जगह होता है, घटना के बहुत देर बाद पुलिस मौके पर पहुंचती है. इंस्पेक्टर सुरेखा सिंह और हवलदार भूरा (सतीश कौशिक) गांव में होने वाली वारदातों की जांच में लग जाते हैं. सुरेखा और भूरा को खुशी होती है कि उनकी निरस जिंदगी में कुछ रोमांच आया है. इसलिए दोनों मन लगाकर केस की पड़ताल करते हैं.

इस फिल्म में अनिल कपूर और सतीश कौशिक जैसे कलाकारों के होने की वजह से हाइप बना हुआ था. उपर से ट्रेलर देखने के बाद लगा कि फिल्म अच्छी होगी. लेकिन फिल्म देखने के बाद समझ में आ गया कि जरूरी नहीं कि बड़े कलाकारों से सजी फिल्म हमेशा अच्छी ही हो, जैसा कि पहले भी कई बार देखने को मिल चुका है. फिल्म की असली जान इसकी सिनेमैटोग्राफी है. श्रेया दुबे ने अपने कैमरे कमाल का काम किया है. फिल्म का ओपनिंग सीन ही बहुत ज्यादा आकर्षित करता है. कई ऐसे शॉट है, जिन्हें देखने के बाद हॉलीवुड फिल्मों की याद आती है. लेकिन फिल्म केवल दृश्यों से नहीं चलती. इसके लिए एक बेहतर कहानी और कलाकारों की दमदार अदाकारी की जरूरत होती है. इन दोनों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार निर्देशक होता है. लेकिन अनुराग कश्यप कैंप से निकले राज सिंह चौधरी अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद यहां असफल साबित होते हैं. मजे कि बात ये है कि कहानी भी निर्देशक ने ही लिखी है, ऐसे में तो उनके लिए आसान था कि अपनी कहानी को सीधे दर्शकों के दिल में उतार दें, लेकिन वो तो पर्दे पर भी ठीक से नहीं उतार पाए हैं.

अजय जयंती का बैकग्राउंड स्कोर बेहतर है. आरती बजाज का संपादन भी दुरुस्त है. जहां तक कलाकारों के प्रदर्शन की बात है, तो अनिल कपूर और सतीश कौशिक जैसे दिग्गज कलाकार कमजोर कहानी और स्क्रिप्ट के शिकार हो गए हैं, वरना इन दोनों की जुंगलबंदी इतनी बेहतरीन है कि अकेले फिल्म को हिट कराने का मादा रखते हैं. वास्तविक जिंदगी में भी दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं, इसलिए पर्दे पर इनकी केमेस्ट्री देखते बनती है. हर्ष वर्धन कपूर ने हमेशा की तरह कोशिश बहुत की है, लेकिन अभी उनको बहुत ज्यादा मेहनत करनी है. उनके अभिनय में लोग अनिल कपूर की छाया खोजने की कोशिश करते हैं, जो कि मिसिंग है. उनमें प्रतिभा है, लेकिन उसे तराशने की ज्यादा जरूरत है. शायद यही वजह है कि उनके पिता लगातार उनको लेकर फिल्में बना रहे हैं, इस उम्मीद के साथ कि किसी ना किसी फिल्म में उनकी प्रतिभा निखर जरूर सामने आएगी. इनके अलावा फातिमा सना शेख और मुक्ति मोहन ने अपने हिस्से का काम ईमानदारी से किया है. कुल मिलाकर, 'थार' एक औसत फिल्म है. यदि आपके पास करने के लिए कुछ न हो, तो ही इसको देखिए.

iChwok.in रेटिंग: 5 में से 2.5 स्टार

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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