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Updated: 26 अप्रिल, 2022 01:23 PM
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गदर 2 से सनी देओल और अमीषा पटेल का लुक वायरल है. 21 साल बाद गदर: एक प्रेम कथा का सीक्वल बनाया जा रहा है. गदर अपने जमाने की ब्लॉकबस्टर थी और इसने टिकट खिड़की पर ना जाने कितने कीर्तिमान बनाए थे. सनी-अमीषा की जोड़ी तारा सिंह और सकीना के किरदार में 21 साल बाद भी वैसे ही नजर आ रही है, जैसे गदर में दिखी थी. जी स्टूडियो के बैनर से निर्माणाधीन फिल्म का निर्देशन अनिल शर्मा कर रहे हैं. फिल्म में अनिल के बेटे उत्कर्ष शर्मा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. फिल्म की शूटिंग पिछले कई हफ़्तों से लखनऊ में चल रही थी.

हाल ही में लखनऊ शेड्यूल पूरा हुआ है. 80 प्रतिशत हिस्सा शूट हो चुका है और अब बाकी का हिस्सा अनिल शर्मा अन्य लोकेशन पर शूट करने की तैयारी में हैं. पहले पार्ट में दिखाया गया था कि भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त कैसे एक ट्रक ड्राइवर तारा सिंह ने दंगों से मुस्लिम लड़की सकीना की जान बचाई थी. तारा, सकीना को पहले से प्यार करता था, मगर दोनों के बीच सामजिक फर्क ऐसा था कि इजहार-ए-मोहब्बत नहीं कर पाया था. हालांकि बंटवारे के बाद हालात ऐसे बन गए कि दोनों में प्यार भी हुआ और उन्होंने शादी भी की. शादी से दोनों का एक बच्चा भी हुआ और राजी खुशी साथ-साथ रहने लगते हैं.

gadar 2 गदर का सीन

सकीना पाकिस्तान के सबसे रसूखदार मुस्लिम परिवारों में से एक की बेटी थी. सिख के साथ सकीना की मोहब्बत और शादी उसके घरवाले बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. झांसा देकर सकीना को पाकिस्तान बुलाया जाता है और उसपर तारा से रिश्ता तोड़कर दूसरी शादी का दबाव डाला जाता है. सकीना राजी नहीं है. इस बीच तारा, पत्नी की खोज खबर लेने के लिए अपने बेटे और दोस्त के साथ पाकिस्तान पहुंच जाता है. एक तरफ सकीना के रसूखदार परिवार का दबाव और दूसरी तरफ सकीना को साथ लेकर वापस भारत लौटने की कोशिश में तारा पाकिस्तान में जो गदर मचाता है- उसका तो जवाब ही नहीं. आखिर में तारा की मोहब्बत के आगे सकीना के परिवार को विवश होना पड़ता है. गदर 2 में इसके आगे की कहानी दिखाने की योजना है. वो क्या होगी अभी इस बारे में किसी तरह का कयास लगाना मुश्किल है.

सनी देओल के गदर की कहानी पूरी तरह से झूठी नहीं थी

साल 2001 में जब गदर आई थी धार्मिक वजहों को लेकर खूब बवाल भी मचा था. फिल्म को काल्पनिक कहा जाता है. मगर यह सकीना और तारा सिंह की मोहब्बत से मिलती-जुलती कहानी से प्रेरित है. असल में तारा सिंह की कहानी ब्रिटिश आर्मी के पूर्व फौजी बूटा सिंह के जीवन से बहुत मिलती है. बताया जाता है कि बूटा सिंह, लॉर्ड माउंटबेटन के दौर में ब्रिटिश सेना की तरफ से दूसरे विश्वयुद्ध में वर्मा फ्रंट पर युद्ध कर चुके थे. एक समय तक बूटा सिंह की कहानी भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में बहुत लोकप्रिय थी. प्रेमी प्रेमिकाएं बूटा सिंह की मोहब्बत की मिसाल दिया करते थे.

असल में जब 1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारा हुआ, कई इलाकों में दंगे हुए. कई परिवार उजड़े, पुरानी कहानियां ख़त्म हुईं और कई नई कहानियों ने जन्म लिया. बूटा सिंह और जैनब की कहानी उन्हीं में से एक थी. जैनब मुस्लिम थीं. बूटा सिंह ने उसे दंगों से बचाया था. बाद में बूटा और जैनब एक दूसरे को चाहने लगे और शादी कर ली. दोनों की बेटी भी पैदा हुई. बूटा की जिंदगी में त्रासदी की शुरुआत तब हुई जब मुस्लिम होने की वजह से जैनब को नए-नए पाकिस्तान में भेज दिया गया.

बूटा सिंह ने पाकिस्तान में जान तो दे दी, लेकिन मोहब्बत हैसल नहीं कर पाया

मोहब्बत को भला राजनीति और उसकी सीमाओं से कभी कहां फर्क पड़ा है. बूटा ने तय किया कि वे जैनब के पास जाएंगे. इसके बाद ब्रिटिश सेना का पूर्व फौजी अवैध तरीके से पाकिस्तान में घुस गया. द डान के मुताबिक़ पारिवारिक दबाव में जैनब की शादी चचेरे भाई से हो गई. बूटा ने जब जैनब से मिलने की कोशिश की उन्हें खूब मारा पीटा गया. पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उनपर अवैध तरीके से सीमा पार करने का आरोप था. कोर्ट में पेशी हुई तो बूटा सिंह ने रोकर अपना हाल सुनाया. उन्होंने बताया कि जैनब उनकी पत्नी है और उन दोनों के साथ क्या-क्या हुआ. पूरी कहानी सुनने के बाद कोर्ट ने जैनब को पेश होने का निर्देश दिया. और यह भी कहा कि अगर जैनब ने बूटा की बातों को पुख्ता किया तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा.

लेकिन जैनब के घरवाले इसे शर्मिन्दगी मान रहे थे. जैनब पर भारी दबाव डाला गया. कोर्ट में जैनब ने बूटा को पहचान तो लिया मगर उसके साथ जाने से मना  कर दिया और बेटी की देखभाल से भी मुकर गई. बूटा टूटकर बिखर चुका था. कहते हैं कि उस दिन कोर्ट में मौजूद हर शख्स बूटा की हालत देखकर दुखी था. इससे पहले वहां मौजूद किसी ने कभी एक जाट को इस कदर टूटते नहीं देखा था. जैनब के दीवाने बूटा ने निराशा की वजह से ही पाकिस्तान में शहादरा स्टेशन के नजदीक बेटी संग ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली. हालांकि पांच साल की बेटी किसी तरह बच गई. बूटा सिंह की मौत को लेकर पाकिस्तान में कुछ और कहानियां प्रचलित हैं. इनके मुताबिक़ बूटा और उनकी बेटी बीमारी की वजह से मरे थे.

बूटा सिंह के एक सुसाइड नोट की भी बात सामने आती है. इसमें उन्होंने आख़िरी इच्छाएं जताई थीं. उनकी एक इच्छा थी कि मरने के बाद उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति रिवाज से पाकिस्तान के उसी गांव में किया जाए जहां बंटवारे के बाद जैनब का परिवार बसा था. कुछ कहानियों का कहना है कि उनकी आख़िरी इच्छा पूरी की गई थी और कुछ बताती हैं कि गांववालों के विरोध की वजह से आख़िरी इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी.

सालों वक्त बीतने और भारत पाकिस्तान के रिश्ते में तमाम उतार-चढ़ाव के बीच बूटा और जैनब की मोहब्बत तमाम लोगों के जेहन में ताजा है. दोनों के जीवन से प्रेरित कहानियां और फ़िल्में बनाई गईं. साल 1999 में आई पंजाबी फिल्म शहीद-ए-मोहब्बत बूटा सिंह, कैनेडियन फिल्म पार्टीशन उन्हीं में से एक है. बूटा-जैनब की कहानी पर उपन्यास तक लिखे जाने की बातें सामने आई हैं. गदर में सकीना-तारा की मोहब्बत असल में बूटा और जैनब की कहानी से ही प्रेरित है. हालांकि गदर में तारा अपना परिवार वापस पाने में नाकाम नहीं होता और जिंदा घर लौटता है.

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