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Updated: 11 जुलाई, 2021 01:02 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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'घृणा का उत्तर प्रेम है. हिंसा का उत्तर अहिंसा. विश्व को ये समझना होगा कि हिंसा हजार प्रश्नों को जन्म दे सकती है, लेकिन किसी भी एक प्रश्न का उत्तर नहीं बन सकती. हिंसा समाज के हर स्तंभ को केवल कमजोर करने का काम करती है. अपनों को तोड़ने का काम करती है. कुछ घंटों की हिंसा आने वाले कई वर्षों के लिए अपने पीछे दर्द और मायूसी छोड़ जाती है. इस हैवानियत को रोकना होगा. वरना पूरा विश्व इसकी चपेट में आ जाएगा.' ओटीटी प्लेटफॉर्म ZEE5 पर रिलीज हुई 'स्टेट ऑफ सीज- टेंपल अटैक' के इस डायलॉग के जरिए फिल्मकार ने आतंकवाद पर एक वैश्विक संदेश देने की कोशिश की है, जो फिल्म का सार भी है और आज के हालात पर सटीक भी बैठता है. इस फिल्म में दिखाई गई आतंकी घटना की पृष्ठभूमि भले ही पुरानी हो चुकी है, लेकिन आतंक का खेल अभी भी बदस्तूर जारी है.

फिल्म 'स्टेट ऑफ सीज- टेंपल अटैक' के जरिए अभिनेता अक्षय खन्ना ने अपना डिजिटल डेब्यू किया है. इसमें उनके साथ विवेक दहिया, प्रवीन डब्बास, समीर सोनी, गौतम रोड़े, मीर सरवर, मंजरी फणनीस, अक्षय ओबेरॉय और अभिमन्यु सिंह अहम भूमिका में हैं. इस फिल्म को केन घोष ने निर्देशित किया है, जो XXX, हक से, अभय और चांस पे डांस जैसी वेब सीरीज के निर्देशन के लिए जाने जाते हैं. साल 2002 में अहमदाबाद में स्थित अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले की कहानी से प्रेरित इस फिल्म की पटकथा विलियम बॉर्थविक और सिमॉन फैंटाउजो ने लिखी है. 1.50 मिनट की ये फिल्म मुख्य रूप से सीमा पार पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी घटनाओं से प्रेरित और उन पर आधारित है. वैसे भी भारत-पाकिस्तान के बीच का तल्ख रिश्ता, युद्ध और आतंकवाद बॉलीवुड के लिए हिट फॉर्मूला बन चुका है.

1_650_070921065326.jpgफिल्म बेहतरीन है, लेकिन इसकी वजह केवल अक्षय खन्ना की अदाकारी नहीं है.

इस हिट फॉर्मूले को हर बड़ा बैनर अलग-अलग तरीके से आजमाता रहा है. अब तक का अनुभव तो यही कहता है कि इस फॉर्मूले ने फिल्म मेकर्स को फायदा ही पहुंचाया है. बॉलीवुड में भारत-पाक रिश्ते को लेकर कई फिल्में बनीं. कभी बंटवारा, कभी आतंकवाद, तो कभी युद्ध और कभी भाईचारा. इनमें ज़्यादातर फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर कामयाब साबित हुईं. इसी फॉर्मूले पर बनी फिल्म 'स्टेट ऑफ सीज- टेंपल अटैक' सुपरहिट है. लेकिन अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले की जिस सच्ची घटना से इसे प्रेरित बताया जा रहा है, सही मायने में उससे इसका बहुत लेना-देना नहीं है. कहानी के केंद्र में 'टेंपल अटैक' तो है, लेकिन पटकथा प्रेरित नहीं लगती. क्योंकि कश्मीर से अहमदाबाद की यात्रा में ऐसा बहुत कुछ होता है, जो एक बड़े कैनवस पर दिखता है. वैसे रोमांच के स्तर पर फिल्म बेहतरीन है, जो अंतिम सीन तक बांधे रखती है.

कहानी

फिल्म की कहानी के केंद्र में एनएसजी कमांडो हनुत सिंह (अक्षय खन्ना) हैं. पहला सीन कश्मीर के कुपवाड़ा सेक्टर का है, जहां एनएसजी के कमांडों एक घर के सामने घात लगाकर बैठे हुए है. उस घर में एक लड़की को किडनैप करके आतंकियों ने रखा हुआ है. कमांडो हनुत सिंह अपनी यूनिट को लीड कर रहा होता है, लेकिन एनएसजी के डीजी कर्नल एमएस नागर का ऑर्डर है कि बैकअप के आने से पहले वो आतंकियों पर हमला न करे. इसी बीच आतंकियों को खबर लग जाती है कि आर्मी वहां आने वाली है, वो लड़की को लेकर शिफ्ट करने वाले होते हैं. यह देख हनुत सिंह अपने डीजी के ऑर्डर को बाइपास करके आतंकियों पर हमला कर देता है. लड़की को रिहाकर वहां से लेकर जाने लगता है, तभी कुख्यात आतंकी अबू हमज़ा और उसका दायां हाथ बिलाल नाइको वहां पहुंच जाते हैं. दोनों तरफ से गोलीबारी होती है.

इस हमले में बिलाल नाइको को एनएसजी टीम जिंदा पकड़ लेती है, लेकिन एक कमांडो शहीद हो जाता है, जबकि हनुत सिंह गोली लगने के बाद बुरी तरह घायल हो जाता है. आतंकी अबू हमज़ा वहां से फरार हो जाता है. इस घटना में अपने एक दोस्त को खोने के बाद हनुत सिंह अक्सर परेशान रहता है. इसी बीच एनएसजी के मनेसर स्थित कैंप में सूचना आती है कि गुजरात में मुख्यमंत्री की इनवेस्टर्स समिट पर आतंकी हमला हो सकता है. कर्नल नागर इस मिशन पर अपने कमांडो मेजर समर चौहान को भेजना चाहते हैं, लेकिन उनकी पत्नी की डिलीवरी होने की वजह से मजबूरन हनुत सिंह को इंचार्ज बनाना पड़ता है. एनएसजी टीम गुजरात की राजधानी अहमदाबाद पहुंच जाती है. इधर, सीमा पार करके चार आतंकवादी एक आतंकी हमले को अंजाम देने के लिए अहमदाबाद पहुंच जाते हैं. उनके निशाने पर एक मशहूर मंदिर होता है.

हनुत सिंह की अगुवाई में एनएसजी टीम गुजरात के सीएम की सुरक्षा में लगी होती है, तभी सूचना मिलती है कि शहर के मशहूर कृष्णधाम मंदिर पर आतंकियों ने हमला कर दिया है. वहां मौजूद कई लोगों को मारने के बाद कुछ लोगों को बंधक बना लिया है. आतंकियों की मांग है कि कश्मीर की जेल में बंद उनके साथी बिलाल नाइको को रिहा करके सीमा पार भेज दिया जाए. यदि मांग नहीं मानी गई तो हर आधे घंटे एक बंधक को मौत के घाट उतार देंगे. केंद्र सरकार आतंकियों की मांग मान लेती है, लेकिन हनुत सिंह सीएम से कहते हैं कि नाइको की रिहाई के बाद भी आतंकी बंधकों को मार देंगे, इसलिए पहले उनको रिहा कराने की कोशिश करनी चाहिए. सीएम उनको टीम सहित जाने की परमिशन दे देते हैं. एनसजी टीम आगे क्या कार्रवाई करती है? नाइको रिहा होता है या नहीं? इसे जानने के लिए फिल्म देखनी होगी.

समीक्षा

फिल्म 'स्टेट ऑफ सीज- टेंपल अटैक' का सबसे मजबूत पक्ष निर्देशन और छायांकन है. केन घोष ने इतना कसा हुआ निर्देशन किया है कि बिना पलक झपकाए आप पूरी फिल्म देखते चले जाएंगे. गजब का रोमांच है, जो दर्शकों को अंतिम सीन तक बांधे रखने में कामयाब है. हालांकि, बीच में फिल्म थोड़ी स्लो हुई है, लेकिन जल्द ही रफ्तार पकड़ लेती है. तेजल प्रमोद शेट्टी के बेहतरीन छायांकन ने फिल्म में कहानी को धार दिया है. खासकर के मनाली की खूबसूरत वादियों में फिल्माए गए शानदार दृश्य मनमोह लेते हैं. एनएसजी कमांडो और आतंकवादियों के बीच एक्शन से भरपूर दृश्यों को मंधार वर्मा और रिंकू बच्चन ने अच्छी तरह से कोरियोग्राफ किया है. सभी कलाकारों का अभिनय प्रदर्शन संतोषजनक हैं, उनसे जो अपेक्षित था, सभी ने वैसा ही किया है. हनुत सिंह के किरदार में अक्षय खन्ना कोई खास असर नहीं छोड़ पाए हैं.

अक्षय खन्ना का ये डिजिटल डेब्यू था. बॉक्स ऑफिस पर निराशा हाथ लगने के बाद ओटीटी उनके लिए वरदान साबित हो सकता था, जैसे कई कलाकारों के लिए हुआ है, लेकिन अक्षय यहां भी चूक गए हैं. दरअसल, इस फिल्म में उनके किरदार के लिए बहुत कुछ खास करने के लिए है ही नहीं. एक सामान्य कमांडो या उनके लीडर के किरदार में जितना बेहतर हो सकता था, उतना तो उन्होंने किया है, लेकिन यादगार नहीं बन पाए, जैसे 'द फैमिली मैन' में मनोज बाजपेयी. एनएसजी के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल नागर की भूमिका के साथ प्रवीन डब्बास ने न्याय किया है. सीएम किरदार में समीर सोनी ठीकठाक लगे हैं. सबसे ज्यादा असरदार अदाकारी तो आतंकी बने कलाकारों की लगती है. एक्टिंग के साथ ही उनकी बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग डिलीवरी एनएसजी टीम में शामिल कई कलाकारों पर भारी पड़ती है.

आतंकवादी गिरोह के सरगना अबू हमजा के किरदार में अभिमन्यु सिंह, उसके दाहिने हाथ बिलाल नाइकू के किरदार में मीर सरवर और अहमदाबाद के मंदिर में हमले के लिए गए चारों आतंकवादी इकबाल के रूप में अभिलाष चौधरी, हनीफ के रूप में धनवीर सिंह, फारूक के रूप में मृदुल दास और उमर के रूप में मिहिर आहूजा ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. उनमें स्थानीय पाकिस्तानी-पंजाबी लहजे की अच्छी पकड़ साफ दिख रही है. कुल मिलाकर मुंबई हमलों पर आधारित अभिमन्यु सिंह के 'स्टेट ऑफ सीज: 26/11' के बाद कॉम्बैट ड्रामा 'स्टेट ऑफ सीज- टेंपल अटैक' हमारे एनएसजी कमांडों को एक सच्ची श्रद्धांजलि है. इसे देखा जाना चाहिए.

iChowk रेटिंग: 5 में से 3.5 स्टार

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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