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Updated: 20 सितम्बर, 2022 01:23 PM
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साल 2012 में देश का राजधानी दिल्ली निर्भया गैंगरेप केस की वजह से दहल उठी थी. इस वारदात में पीड़ित लड़की के साथ जिस तरह की हैवानियत की गई थी, उसे देखने और सुनने के बाद पूरे देश में सनसनी फैल गई थी. पीड़िता के लिए इंसाफ की मांग करते हुए लोग सड़कों पर निकल पड़े थे. लोगों की हुंकार के बाद जगी सरकार ने रेप के खिलाफ कई नए कानून बनाए, लेकिन ऐसी घटनाओं पर विराम नहीं लगा. इसके दो साल बाद ही साल 2014 में उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में दो नाबालिग लड़कियों का रेप करके उन्हें पेड़ से लटका दिया गया था. इस घटना की गूंज संयुक्त राष्ट्र तक पहुंच गई. आज भी हर रोज 86 महिलाओं की इज्जत लूटी जाती है. हर घंटे 49 महिलाएं किसी न किसी अपराध का शिकार होती हैं. ऐसी घटनाओं में केवल पीड़िता ही नहीं उसका पूरा परिवार प्रताड़ित होता है. इसी विषय पर आधारित फिल्म 'सिया' 16 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है.

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'मसान', 'आंखों देखी' और 'न्‍यूटन' जैसी फिल्‍मों का न‍िर्माण कर चुके मनीष मुंदड़ा 'सिया' का निर्देशन कर रहे हैं. फिल्म में पूजा पांडे और व‍िनीत कुमार स‍िंह लीड रोल में हैं. इससे पहले व‍िनीत 'गैंग्स ऑफ वासेपुर', 'मुक्‍काबाज', 'सांड की आंख' जैसी फिल्‍मों और 'बार्ड ऑफ ब्लड', 'रंगबाज' जैसी वेब सीरीज में अपने अभिनय का जौहर दिखा चुके हैं. पूजा पांडे मुख्य रूप से थियेटर कलाकार है, जो कि जयेश भाई जोरदार और अर्जुन रेड्डी जैसी फिल्मों में काम कर चुकी एक्ट्रेस शालिनी पांडे की छोटी बहन हैं. इस फिल्म में पूजा के अभिनय को बहुत ज्यादा सराहा जा रहा है. दर्शक हो या समीक्षक, फिल्म की हर कोई तारीफ कर रहा है. एक यूजर रोहित जायसवाल फिल्म को 5 में से 4 स्टार देते हुए लिखते हैं, ''शानदार फिल्म, सिया की कहानी कई बार डराती है, तो कई बार लड़ने की ताकत देती है. पूजा पांडे का बेहतरीन डेब्य है. विनीत कुमार सिंह ने हमेशा की तरह जबरदस्त काम किया है.''

ट्विटर पर निशित शॉ फिल्म सिया को 5 में से 3 स्टार देते हुए लिखते हैं, ''फिल्म के निर्देशक मनीष मुंदड़ा एक नाबालिग लड़की की कहानी सुनाते हैं, जो न्याय के लिए संघर्ष करती है. विनीत कुमार सिंह ने उत्कृष्ट अभिनय प्रदर्शन किया है. पूजा पांडे ने दिया नॉक आउट प्रदर्शन किया है. अत्यधिक यथार्थवादी. शक्ति और प्रभाव के नकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डालती ये फिल्म हर किसी को देखनी चाहिए.'' इशिता जोशी फिल्म को 5 में से 4 स्टार देते हुए लिखती हैं, ''एक बहुत ही मजबूत कंटेंट के साथ एक हार्ड हिटिंग स्टोरी. रेप जैसे जघन्य अपराध को बहुत ईमानदारी से पर्दे पर पेश करती है. इसमें हर किरदार में कलाकारों ने जबरदस्त काम किया है. मनीष मुंदड़ा ने अच्छे निष्पादित किया है. ये फिल्म सीधे दिल को छू जाएगी.'' कुलप्रीत यादव लिखती हैं कि 'सिया' सामाजिक मुद्दे पर आधारित एक जरूरी फिल्म है. भारत में ऐसी फिल्में बनाने की अभी ज्यादा जरूरत है.

फिल्म पत्रकार मुबारक लिखते हैं, ''फिल्म सिया की एक अच्छी बात ये है कि रेप सीन्स के ग्राफिक फिल्मांकन की बजाय इस जघन्य अपराध के इम्पैक्ट पर फोकस करती है. उसके बाद की लड़ाई को फुटेज देती है. समर्थों की ड्योढ़ी के परमानेंट पहरेदार बने सिस्टम के हिंसक चेहरे को रॉ ढंग से पेश करती है. बस इन सबके एग्ज़िक्युशन से कोई बेहद पावरफुल सिनेमाई एक्सपीरियंस नहीं जनरेट हो पाता. कुछेक सीन्स ऐसे ज़रूर हैं, जो आपकी संवेदनाओं को झकझोर देने का सामर्थ्य रखते हैं. एक्टिंग और कास्टिंग के फ्रंट पर 'सिया' काफी उम्दा साबित होती है. शीर्षक भूमिका के लिए पूजा पांडे बेहतरीन चुनाव साबित हुई हैं. 'सिया' एक असली केस का उम्दा डॉक्यूमेंटेशन ज़रूर है लेकिन उसका मारक इफेक्ट आप तक पहुंचाने में थोड़ी सी कमज़ोर पड़ जाती है. चाहें तो देख सकते हैं. समय खराब तो नहीं ही होगा. बाकी ओटीटी पर आने के इंतज़ार का ऑप्शन तो है ही.''

हिंदुस्तान में अपनी फिल्म समीक्षा में अविनाश सिंह लिखते हैं, ''फिल्म सिया के लोकेशन्स से लेकर बेहद संजीदा और कसे हुए डायलॉग्स तक, फिल्म में वैसे तो काफी कुछ खास है लेकिन एक बात जो काफी इम्प्रेस करती है वो है फिल्म का कैमरा वर्क और सिनेमैटोग्राफी. फिल्म में ऐसे कई बेहतरीन कैमरा शॉट्स हैं, जो अपने आप में काफी कुछ बयां करते हैं. जैसे मकड़ी के जाले से सिया को दिखाना, रेप से जुड़ी बातचीत के दौरान तुलसी पर चुनरी को दिखाना, या बस में लड़के घूरने पर सिया का धीरे- धीरे सीट की आड़ में छिपते जाना. इसके साथ ही फिल्म में कलर्स का भी अच्छा इस्तेमाल किया गया है, जो सीन की गहराई को दिखाने का काम करता है. एक ओर जहां फिल्म का तकनीकी पक्ष मजबूत दिखता है तो दूसरी ओर कहानी में थोड़ी सी गुंजाइश रह जाती है और फिल्म देखते हुए कई सवाल आपके जेहन में आते हैं, जिन पर कहानी टिकती नहीं है.''

कुल मिलाकर, दर्शकों और समीक्षकों की प्रतिक्रिया देखने पर यह तो साबित हो जाता है कि सिया एक देखने योग्य फिल्म है. इसमें 17 साल की एक लड़की का दर्द और उसके परिजनों की कड़ी परीक्षा को जिस तरह से दिखाया गया है, हर किसी का दिल झकझोर देता है. समाज और सिस्टम से लाचार पीड़िता इंसाफ के लिए दर-दर भटकती है. फिल्म के जरिए पुलिस और प्रशासन की भी पोल खोली गई है, जो आज भी अमीर-गरीब का भेद करती है. फिल्म के ओटीटी पर आने का इंतजार नहीं करना चाहिए.

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