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Updated: 02 नवम्बर, 2020 10:01 PM
सर्वेश त्रिपाठी
सर्वेश त्रिपाठी
  @advsarveshtripathi
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Shahrukh Khan Birthday: हिंदी सिनेमा (Hindi Cinema) में नब्बे का दशक कई मायनों में अलग और कई खूबियों से भरा था. यह बात मेरे लिए और ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि हमारी टीनएज के कीमती साल भी इसी दशक में गुजरे. हम सब की पीढ़ी कुमार शानू के गाए गीतों को गुनगुनाते गोविंदा के 'राजा बाबू' और 'नंबर वन' सीरीज की फिल्मों पर गुदगुदाते - हंसते और शाहरूख की फिल्म 'दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे (DDLJ)' के लंदन की सपनीली चमक से लेकर पंजाब के सरसों के पीले पीले खेत की सोंधी महक तक लहालोट होते कब बचपन से जवानी की दहलीज पर पहुंच गए पता ही नहीं चला. ग़ज़ब समय था वह भी. जब हर घर में एक न एक गुड्डू, पप्पू , बंटी या पिंटू ज़रूर होता था. घर और मोहल्ले के किसी आत्मीय चेहरे मोहरे की शक्ल और सूरत वाले शाहरूख खान आज भले ही 'किंग खान' और 'एसआरके (SRK)' के रूप में एक बिजनेस ब्रांड हो गए हो लेकिन उनकी आरम्भिक स्वीकृति तो एक भोले भालेे मासूमियत से भरे ऐसे ही नवयुवक की थी जो मानो अपने घर का ही बच्चा हो. वैसे उस दौर में कोई माने या न माने आमिर और सलमान के बीच शाहरूख का एक अलग क्रेज तो था ही. भले सलमान का कई फिल्मों में नाम प्रेम हो पर अपन लोगों की पीढ़ी में असली प्रेम वाली फीलिंग्स तो गुरु शाहरूख खान की फिल्म 'डीडीएलजे' यानि 'दिल वाले दुल्हनियां लेे जाएंगे' ने ही जगाई.

Shahrukh Khan, Birthday, Film Industry, Actor, Bollywood, DDLJशाहरुख वो एक्टर हैं जिन्होंने हम हिन्दुस्तानियों को प्यार करना सिखाया

एक 'एनआरआई' लड़का लड़की शुद्ध मुंबईया स्टाइल में पंजाब के खेतों में रोमांस करते करते, न जाने कितने राज और सिमरन की आत्माओं को तृप्त ही नहीं किया होगा बल्कि उनका मार्गदर्शन भी किया होगा. सच पूछिए तो आम घरों में प्यार स्यार को लेकर जो फ्रैंकनेस आई उसके पीछे शाहरूख खान और उनकी फिल्मों का बहुत बड़ा हाथ है. एक चीज और मैंने गौर की थी कि कुछ लोग यह मानते है कि शाहरूख खान की एक्टिंग पर दिलीप कुमार साहब की छाप है, लेकिन मुझे उनके मसखरेपन वाली एक्टिंग में तो शम्मी कपूर साहब की याद आती है.

बाकी अभिनेता के विभिन्न रूपों को नए सिरे से गढ़ने और विलेन तक को सहानुभूति और मुख्य अभिनेता के रूप में स्थापित करने के लिए बॉलीवुड को शाहरूख खान का शुक्रिया अदा करना चाहिए. फिलहाल बात नब्बे के दशक की हो रही थी. एक सादगी और सहजता लोकजीवन से लेकर फिल्म इंडस्ट्री में भी स्वभावतः ही दिखती थी. उस समय की फिल्मों में केवल मुख्य विलेन के पास ही एक रिवाल्वर होती थी और उसके चंटू बंटू बेचारे डंडे से ही काम चलाते थे. बिना किसी भभ्भड़ के पिक्चर हाल में शुक्रवार को फिल्में रिलीज हुआ करती थी.

कॉलेज से क्लास बंक मार कर 'फर्स्ट डे फर्स्ट शो' ( हालांकि बंक शब्द आज प्रचलन में है , हम सब तो घंटा ही गोल करते थे!). उस समय सोशल मीडिया तो छोड़िए किसी भी मीडिया का इतना भसड़ नहीं था. दूरदर्शन पर शाम साढ़े आठ बजे सुकूं से 'सलमा सुलतान' टीवी पर समाचार बांचती थी. बुधवार और शुक्रवार की शाम टेलीविजन नए पुराने चित्रहार के गीतों से क्या अमीर क्या गरीब सब के घरों पर सुहाना मौसम रच देता था.

यही वह समय भी था जब उदारीकरण और उपभोक्तावाद की धीमी आंच पर हमारी पीढ़ी भी किशोर हो रही थी. यानि कि अमिताभ बच्चन की फाइटिंग वाइटिंग से अब अपन लोगो का मन भी ऊबकर ये काली काली आंखे...ये गोरे गोरे गाल गाना शुरू कर दिया था. अपने कॉलेज से लौटते वक्त गर्ल्स कॉलेज के गेट पर पहुंचते ही अक्सर सायकिल की चेन उतरने की शुरुआत का भी यही समय था.

धन्य हो शाहरूख खान बाऊ का कि उनका यह डायलॉग 'अगर राज तुझे यह लड़की पसंद करती होगी तो पलटेगी जरूर... पलट..पलट' आशिकों का महामंत्र बन गया. अपन लोग भी इस मंत्र के सहारे यह खूब पता लगाए कि ट्यूशन में आने वाली सहपाठिनी लोड लेे रही है कि नहीं. यह अलग बात है कि अपने पूरे में लाइफ आज तक कोई न पलटा. शाहरूख की तमाम फिल्में आपने हमने देखी है.

दीवाना से लेकर हालिया की रईस तक मैंने भी देखी है. भले आज की मल्टीप्लेक्स पीढ़ी के लिए शाहरूख एक अभिनेता है जिन्हे लोग 'एसआरके' कहते हो. पर हम लोगों की पीढ़ी के लिए जिन्होंने पिक्चर हाल में जाकर शाहरूख के एक एक संवाद पर ताली और सीटी बजाई है उसके लिए शाहरूख एक दौर है. आज लगभग तीन दशक से हिंदी सिनेमा में शाहरूख के योगदान को आप सब को बताने की जरूरत नहीं है.

संभवतः फिल्म अभिनेत्री नेहा धूपिया ने एक बार किसी इंटरव्यू में कहा था कि 'बॉलीवुड में सिर्फ शाहरूख और सेक्स ही चलता है.' इस कथन में भले अतिरंजना और अतिश्योक्ति हो लेकिन बहुत हद तक यह बात सही भी लगती है. आज शाहरूख खान का जन्मदिन है. इनकी ऊर्जा और मेहनत देखकर यह कहना कि शाहरूख कितने साल के हुए यह सब फ़िज़ूल ही है. उनके पीछे हम लोग भी अपनी जवानी उन्हीं के अंदाज में जी ही रहे है.

बस आज शाहरूख खान के जन्मदिन पर मैं शाहरूख खान से अगर कुछ कह पाता तो यही कहता कि भाई स्वस्थ रहो और ऐसे ही एक्टिव रहो। तुम्हे एक्टिव देख कर यही लगता है कि हम सब अभी भी 90 के दशक वाले दौर में है और यही गीत गा रहे है...'अब यहां से कहां जाएं हम, तेरी बांहों में मर जाएं हम.'

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लेखक

सर्वेश त्रिपाठी सर्वेश त्रिपाठी @advsarveshtripathi

लेखक वकील हैं जिन्हें सामाजिक/ राजनीतिक मुद्दों पर लिखना पसंद है.

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