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Updated: 01 मई, 2022 08:46 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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10 साल पहले साल 2012 में हॉलीवुड फिल्म 'फ्लाइट' रिलीज हुई थी. रॉबर्ट जेमेकिस के निर्देशन बनी इस फिल्म की कहानी एक प्लेन की क्रैश लैंडिंग पर आधारित है, जो कि साल 2000 में हुए अलास्का एयरलाइंस की फ्लाइट 261 के हादसे से प्रेरित है. इस हादसे में 88 लोगों की मौत हो गई थी. हॉलीवुड एक्टर डेनजेल वाशिंगटन की इस फिल्म को देखने के बाद आपको समझ में आ जाएगा कि अजय देवगन की फिल्म 'रनवे 34' किसी सच्ची घटना की बजाए, इस हॉलीवुड फिल्म से प्रेरित है. इसमें बॉलीवुड टाइप फिल्मों को तड़का लगाकर तकनीक की प्लेट में पेश कर दिया गया है. हालांकि, तकनीक बेहद उम्दा इस्तेमाल की गई है, जो कि फिल्म का स्तर कुछ हद तक हॉलीवुड फिल्मों तक ले जाती है, लेकिन जैसे ही कोर्ट रूप ट्रायल ड्रामा शुरू होता है, फिल्म क्रैश कर जाती है. इंटरवल से पहले फिल्म का पहला हिस्सा जितना रोचक और दिलचस्प है, दूसरा हिस्सा उतना ही बोरिंग है.

फिल्म की कहानी कैप्टन विक्रांत खन्ना (अजय देवगन) के इर्द-गिर्द घूमती है. कैप्टन विक्रांत खन्ना स्काइलाइन एविएशन कंपनी में पायलट है, जो कि अपनी उड़ान क्षमता के लिए बहुत ज्यादा मशहूर है. नए पायलटों के लिए रोल मॉडल है. कोची से दुबई की फ्लाइट ले जाने के बाद वापसी से पहले वो अपने होटल में आराम कर रहा होता है. उसी वक्त उसके किसी दोस्त की कॉल आती है, जो उसे पब में मिलने के लिए बुलाता है. उस रात अपने दोस्त के साथ विक्रांत जमकर शराब पीता है, जबकि अगले दिन ही उसे कोची के लिए फ्लाइट ले जानी होती है. ज्यादा शराब पीने की वजह से वो अगले पूरे दिन सोता रहता है. फ्लाइट का समय होते ही हैंगओवर की हालत में एयरपोर्ट पहुंचता है. वहां उसकी मुलाकात फर्स्ट ऑफिसर तान्या अल्बुकर्क (रकुल प्रीत सिंह) होती है. दोनों को स्काईलाइन 777 फ्लाइट लेकर जाना है. फ्लाइट टेक ऑफ करती है. उसमें 150 यात्री सवार होते हैं.

runway-34_650_043022052451.jpgफिल्म 'रनवे 34' में अजय देवगन और अमिताभ बच्चन लीड रोल में हैं.

कोची में लैंडिंग से 45 मिनट पहले पता चलता है कि वहां का मौसम बहुत ज्यादा खराब है. इस वजह से कोची में फ्लाइट लैंड कराने से मना कर दिया जाता है. फ्लाइट को त्रिवेंदरम के लिए डायवर्ट करने की सलाह दी जाती है. इसके बावजूद विक्रांत कोची में ही लैंड करने की कई बार कोशिश करता है. इस दौरान प्लेन का फ्यूल तेजी से खत्म होने लगता है. फर्स्ट ऑफिसर तान्या अल्बुकर्क त्रिवेंदरम की बजाए बंगलुरू लैंड करने की सलाह देती है, लेकिन विक्रांत नहीं मानता है. इसी दौरान त्रिवेंदरम से कोची एटीसी को अलर्ट आता है कि वहां भी मौसम खराब हो चुका है. साइक्लोन आने का खतरा है, ऐसे में फ्लाइट डायवर्ट न किया जाए. ये मैसेज कोची एटीसी के अधिकारी स्काईलाइन 777 फ्लाइट को भेज नहीं पाते.

इस दौरान फ्लाइट त्रिवेंदरम पहुंच जाती है. वहां भी खराब मौसम की वजह से फ्लाइट लैंड नहीं हो पाती, लेकिन फ्यूल खत्म होने वाला होता है. ऐसे में विक्रांत मेडे यानी इमरजेंसी घोषित करके फ्लाइट को ब्लाइंडली लैंड करा देता है. इस दौरान बहुत बड़ा हादसा होते-होते बच जाता है. इस बाद विक्रांत और उसकी को पायलट तान्या के खिलाफ इंक्वायरी बैठती है. इस इंक्वायरी कमेटी को नारायन वेदांत (अमिताभ बच्चन) लीड करते हैं. इस जांच के दौरान और बाद में क्या होता है, इसे जानने के लिए तो आपको फिल्म देखनी होगी.

फिल्म में अजय देवगन प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और लीड एक्टर की भूमिका में हैं. यहां तक कि उनकी ही कंपनी एनवाई वीएफएक्सवाला ने ही तकनीकी सपोर्ट दिया है. बतौर डायरेक्टर अजय की ये तीसरी फिल्म है, इससे पहले फिल्म 'शिवाय' (2016) और 'यू, मी और हम' (2008) को निर्देशित कर चुके हैं. दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही हैं. शायद यही वजह है कि इस फिल्म के लिए अजय ने इतना बड़ा रिस्क लिया है. क्योंकि तीनों भूमिकाएं किसी फिल्म के लिए बहुत अहम होती है. एक एक्टर के तौर पर उन्होंने पूरी फिल्म मे शानदार काम किया है. कैप्टन विक्रांत खन्ना के किरदार के लिए जो एटीट्यूड चाहिए, वो अजय में खूब दिखता है. लेकिन बतौर डायरेक्टर फिल्म को असरदार बनाने में चूक गए हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह फिल्म के दूसरे हिस्से में दिखाए गए कोर्ट रूप ट्रायल ड्रामे का प्रभावहीन रहना है.

फिल्म 'रनवे 34' का पहला हिस्सा यानी इंटरवल से पहले बहुत ही ज्यादा रोचक है. आलम ये है कि आप सांसें थामे फिल्म देखते चले जाएंगे. फिल्म में वीएफएक्स का इस्तेमाल बेहतरीन तरीके से किया गया है, जो कि हर सीन को शानदार बना रहा है. अजय की ही फिल्म भुज: द प्राइड में वीएफएक्स के इस्तेमाल के दौरान जो गलतियां की गई थी, उसे इस फिल्म में सुधारते हुए उसी को ताकत बना दिया गया है. 35 हजार फीट ऊंचाई पर एक प्लेन और उसके कॉकपिट में क्या होता है, इसे पहले बॉलीवुड के किसी फिल्म में देखने को नहीं मिला है, यही वजह है कि फिल्म रोमांच बनाए रखने में सफल रहती है. लेकिन इंटरवल के बाद के सीन देखने के बाद ऐसा लगता है कि अपनी मेहनत पर अजय ने पानी फेर दिया है. फिल्म इतनी स्लो और बोरिंग हो जाती है कि मजा किरकिरा हो जाता है. बतौर निर्देशक अजय यहां कमजोर साबित होते हैं.

फिल्म के कलाकारो की जहां तक परफॉर्मेंस की बात है, तो पूरी फिल्म में अजय देवगन के साथ रकुल प्रीत सिंह और बोमन ईरानी ने बेहतरीन काम किया है. सबसे ज्यादा निराशा अमिताभ बच्चन के किरदार नारायण वेदांत को देखने पर होती है. उनका किरदार और संवाद होनों ही प्राकृतिक नहीं लगता. कई बार तो बहुत ज्यादा लाउड लगते हैं. फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी उनके किरदार को माना जा सकता है. रकुल प्रीत सिंह के हिस्से डायलॉग बहुत ज्यादा नहीं हैं, लेकिन अपनी भाव भंगिमाओं की अभिव्यक्ति से वो बहुत ज्यादा प्रभावित करती हैं. अंगीरा धर और आकांक्षा सिंह ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. सबसे बेजोड़ काम तकनीकी टीम का है. सिनेमैटोग्राफी से लेकर वीएफक्स तक बेहतरीन है. फिल्म को प्रभावी बनाने में मदद करती है. कुल मिलाकर, 'रनवे 34' एक औसत फिल्म मानी जा सकती है. अजय के फैंस के लिए ये फिल्म है.

iChowk.in रेटिंग: 5 में से 2.5 स्टार

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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