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Updated: 28 मार्च, 2022 04:50 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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बड़ी सफलता को दोहरा पाना बहुत मुश्किल होता है. लेकिन मशहूर फिल्म मेकर एसएस राजामौली ने इसे कर दिखाया है. उन्होंने जो लकीर फिल्म 'बाहुबली' के समय खींची थी, उससे बड़ी लकीर अपनी नई फिल्म 'आरआरआर' के जरिए खींच दी है. फिल्म 'आरआरआर' ने महज दो दिनों में 300 करोड़ रुपए का कलेक्शन करके रिकॉर्ड कायम कर दिया है. फिल्म में साउथ के सुपरस्टार राम चरन और एनटीआर जूनियर के अभिनय की बहुत तारीफ की जा रही है. दोनों अभिनेता फिल्म में लीड रोल में हैं.

राम चरन कोमाराम भीम और राम चरण अल्लूरी सीताराम राजू के ऐतिहासिक किरदार में हैं. इन दोनों के अलावा बॉलीवुड के सुपरस्टार अजय देवगन और आलिया भट्ट भी अहम रोल में हैं, लेकिन फिल्म में दोनों की उपस्थिति बहुत ज्यादा खटकती है, क्योंकि दोनों ही सितारों को बहुत ही कम स्क्रीन स्पेस मिला है. इनके किरदारों को देखने के बाद इतना समझ में आ जाता है कि इनकी हैसियत साइड कलाकार से भी ज्यादा गई गुजरी है. ऐसा लगता है कि केवल पोस्टर के लिए दोनों का चेहरा इस्तेमाल किया गया है, ताकि फिल्म पैन इंडिया अपील कर सके.

1_650_032722091741.jpgफिल्म 'आरआरआर' में सुपरस्टार अजय देवगन और आलिया भट्ट भी अहम रोल में हैं.

फिल्म 'आरआरआर' में अभिनेता अजय देवगन ने अल्लूरी सीताराम राजू (राम चरण) के पिता वेंकट राम राजू का किरदार निभाया है, जो कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. गोदावरी के माग्गूल ग्राम में रहने वाले राजू ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया था. उन्होंने बचपन से ही अल्लूरी को क्रांतिकारी संस्कार दिए थे. उनको अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया था. लेकिन फिल्म में उनके जीवन का बहुत कम हिस्सा दिखाया गया है. इसकी वजह से 3 घंटे 6 मिनट की फिल्म में अजय देवगन अपने किरदार में महज 5 मिनट ही दिखाई देते हैं.

उनके हिस्से बहुत कम सीन आए हैं. इसी तरह अभिनेत्री आलिया भट्ट फिल्म में सीता के किरदार में हैं. सीता अल्लूरी (राम चरण) की मंगेतर होती है. उसके साथ स्वाधीनता संग्राम में अहम भूमिका निभाती है. लेकिन फिल्म में सीता को भी कम सीन मिले हैं. कुल मिलाकर फिल्म में उनकी उपस्थिति महज 10 मिनट ही है. सही मायने में कहा जाए तो आलिया और अजय को फिल्म में ना भी लिया जाता, तो उनके किरदारों पर कोई असर नहीं पड़ता. इसे साउथ का कोई भी कलाकार बेहतर निभा सकता था.

फिल्म में अजय देवगन और आलिया भट्ट से ज्यादा प्रभावी किरदार और स्क्रीन स्पेस तो हॉलीवुड कलाकारों ओलिविया मॉरिस, एलिसन डूडी और रे स्टीवेंसन को मिला है. ब्रिटिश शासन काल के दौर स्थापित भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों कोमाराम भीम और अल्लूरी सीताराम राजू के जीवन पर आधारित कहानी पर बनी इस पीरियड एक्शन फिल्म में स्कॉट बक्सटन के किरदार में रे स्टीवेन्सन हैं, जो कि फिल्म का मुख्य खलनायक है. इसी के साथ लेडी बक्सटन के किरदार में एलिसन डूडी हैं, जो कि स्कॉट की पत्नी है.

जेनिफर के किरदार में ओलिविया मॉरिस हैं, जो कि एनटीआर जूनियर के अपोजिट हैं. आलिया भट्ट से ज्यादा स्क्रीन स्पेस तो ओलिविया मॉरिस को मिली है. वैसे देखा जाए तो हिंदुस्तान में जबसे पैन इंडिया फिल्मों का चलन बढ़ा है, फिल्म मेकर्स ने एक फार्मूला तैयार किया है. इसमें साउथ में बनने वाली फिल्मों में बॉलीवुड के कलाकारों को कास्ट किया जाने लगा है. इसकी मुख्य वजह ये कि साउथ के साथ बॉलीवुड के सितारों के होने की वजह से फिल्म की पैन इंडिया अपील ज्यादा प्रभावी हो सके. ऑडियंस फिल्म से कनेक्ट कर सके.

ऐसा करने से फिल्म के प्रमोशन में भी आसानी होती है. लेकिन सही मायने में देखा जाए, तो साउथ की पैन इंडिया फिल्मों में बॉलीवुड के सितारे साइड कलाकार बनकर रह गए हैं. फिल्म के पोस्टर पर उनका चेहरा बहुत ही महत्व के साथ दिखाया जाता है. ट्रेलर में भी उनकी उपस्थिति शानदार होती है. इसे देखकर ऐसा लगता है कि उनका रोल भी अहम होगा, लेकिन फिल्म देखने के बाद समझ में आता है कि ये सब छलावा है. क्योंकि बॉलीवुड कलाकारों की हैसियत से बहुत छोटे उनके किरदार होते हैं.

आरआरआर के अलावा कई अन्य फिल्में भी इस बात की पुष्टि करती हैं. जैसे कि सुपरस्टार मोहनलाल की फिल्म 'मरक्कर: लॉयन ऑफ द अरेबियन सी' देख लीजिए. इसमें मोहनलाल, कीर्थि सुरेश और मंजू वारियर के साथ बॉलीवुड एक्टर सुनील शेट्टी भी नजर आए हैं. फिल्म में सुनील शेट्टी एक सूबे के योद्धा के किरदार में हैं, लेकिन पूरी फिल्म में महज 10 मिनट ही स्क्रीन स्पेस उनको मिला है. वो ज्यादातर अपने कॉस्ट्यूम में राजदरबार में बैठे हुए दिखाई देते हैं. उनके जैसे बॉलीवुड के इतने बड़े सितारे को इस किरदार के लिए लिया जाना समझ से परे लगता है.

इसके ठीक विपरीत आप बॉलीवुड की पैन इंडिया फिल्में देख लीजिए. यदि उसमें साउथ का कोई सितारा है, तो उसके महत्वपूर्ण किरदार दिया गया होगा. पूरी फिल्म में उसकी उपस्थिति होगी. जैसे कि फिल्म 'अतरंगी रे' सबसे बेहतरीन उदाहरण है. इसको अक्षय कुमार की फिल्म कहा जाता है, लेकिन सही मायने में धनुष की ज्यादा लगती है. इसमें धनुष का बहुत ही अहम और दमदार रोल है. इस तरह साउथ की कई फिल्मों को देखने के बाद एक बात समझ में आती है कि जिस तरह बॉलीवुड साउथ के स्टार्स को अपनी फिल्मों में अहम रोल देता है, उस तरह साउथ सिनेमा के मेकर्स अपनी फिल्मों में बॉलीवुड कलाकारों को अहमियत नहीं देते हैं. वो इन कलाकारों को सिर्फ एक चेहरे के रूप में इस्तेमाल करते हैं.

इसके लिए काफी हद तक बॉलीवुड के सितारे भी दोषी हैं. क्योंकि किसी फिल्म को साइन करने से पहले सभी कलाकार फिल्म की स्क्रिप्ट जरूर पढ़ते हैं. अपने किरदार के बारे में चर्चा करते हैं. यदि उनके पहले से ही पता है कि उनके किरदार का क्या हश्र होने वाला है, तो उनको फिल्म ही नहीं करनी चाहिए. यदि यही सिलसिला चलता रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब बॉलीवुड के बड़े से बड़े सितारे साउथ की फिल्मों में साइड कलाकार के रूप में स्थापित हो जाएंगे. साउथ के सितारे ही सुपरस्टार कहे जाएंगे.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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