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Updated: 06 फरवरी, 2022 07:28 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' कहे जाने वाले देश के महान वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा और अंतरिक्ष में स्वदेशी सैटेलाइट भेजने का सपना साकार करने वाले वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई की जीवनी पर आधारित वेब सीरीज 'रॉकेट ब्वॉयज' सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही है. फिल्म निर्माता निखिल आडवाणी, रॉय कपूर फिल्म्स और एम्मे एंटरटेनमेंट द्वारा बनाई गई वेब सीरीज को अभय पन्नू ने निर्देशित किया है. अभय फिल्म मेकर निखिल आडवाणी के असिस्टेंट रहे हैं. उन्होंने 'मरजावां' और 'नाम शबाना' जैसी फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर का काम भी किया है. इसके साथ ही वेब सीरीज में जिम सरभ, इश्वाक सिंह, रेजिना कैसेंड्रा, सबा आजाद, दिब्येंदु भट्टाचार्य, रजित कपूर, नमित दास और अर्जुन राधाकृष्णन जैसे कलाकार अहम किरदारों में नजर आ रहे हैं. इसकी कहानी अभय कोराने और कौसर मुनीर के साथ अभय पन्नू ने खुद लिखी है. यही वजह है कि बतौर निर्देशक उनकी पटकथा पर पकड़ अंतिम एपिसोड तक बनी रहती है.

वेब सीरीज 'रॉकेट ब्वॉयज' को मुख्यत: हिंदी ऑडिएंस के लिए ही बनाया गया है. इसमें इंग्लिश सब्सटाइटल्स भी दिए गए हैं. लेकिन एक बात सबसे ज्यादा खटकती है, वो ये कि वेब सीरीज में जरूरत से ज्यादा इंग्लिश में ही डायलॉग बोले गए हैं. सही मायने में कहें तो करीब 60 फीसदी बातचीत इंग्लिश में ही हो रही है. इंग्लिश भी ऐसी कि आम पढ़े-लिखे दर्शकों के सिर के ऊपर से निकल जाए. यदि इसमें इंग्लिश इतनी इस्तेमाल करनी थी, तो बेहतर होता कि इसे इसी भाषा में बनाया जाता. साथ में हिंदी सब्सटाइटल्स दे दिए जाते. ऐसे में हिंदी भाषी दर्शकों पर फैसला होता कि उनको देखना है या नहीं. कम से कम सीरीज देखते समय झेलना तो नहीं पड़ता. इस इंतजार में कि आने वाले सीन में सामान्य हिंदी के संवाद सुनने को मिल जाए. इस एक कमी ने पूरी वेब सीरीज की खूबियों पर पानी फेर दिया है, कम से कम खाटी हिंदी दर्शकों के नजरिए से देखें तो आपको ये बात सही लगेगी. अच्छी अंग्रेजी जानने वाले दर्शकों को तो वेब सीरीज देखकर बहुत आनंद आएगा.

untitled-1-650_020622061143.jpgवेब सीरीज 'रॉकेट ब्वॉयज' में अभिनेता जिम सर्भ और इश्वाक सिंह लीड रोल में हैं.

आप सोच रहे होंगे कि पैन इंडिया सिनेमा के विस्तार के बीच जब भाषाई दीवार गिर रही है, तो ऐसे में किसी भाषा विशेष पर इतनी ज्यादा गंभीर टिप्पणी करने की क्या जरूरत है. तो आपको बता दें कि भाषाई आधार पर फिल्म इंडस्ट्री का विभाजन बहुत पहले हो चुका है. जैसे कि हिंदी के लिए बॉलीवुड, मलयालम के लिए मॉलीवुड और तमिल के लिए कॉलीवुड आदि. यहां भाषा विशेष की फिल्में ही बनती हैं. यदि इन फिल्मों के पैन इंडिया रिलीज की योजना बनती है, तो हर भाषा में अलग-अलग फिल्मों को डब किया जाता है, ताकि वहां के दर्शक अपनी भाषा में फिल्म को समझकर आनंद ले सकें. लेकिन पिछले कुछ समय से ऐसा देखा जा रहा है कि हिंदी वेब सीरीज में अंग्रेजी, तमिल या तेलुगू भाषा के संवाद इतने ज्यादा भर दिए जाते हैं कि दर्शक बोर होने लगते हैं. जैसे कि मनोज बाजपेयी की वेब सीरीज 'द फैमिली मैन' सीजन 2 देख लीजिए. इसमें इतने ज्यादा तमिल और तेलुगू के डायलॉग हैं कि कई बार सीन ही समझ में नहीं आता. मेकर्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए.

'रॉकेट ब्वॉयज' की कहानी डॉ. होमी जहांगीर भाभा और डॉ. विक्रम साराभाई के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है. लेकिन उनके साथ ही हिंदुस्तान के उस दौर की दास्तान पेश करती है, जब भारत निर्माण की प्रक्रिया अपने प्रारंभिक दौर में थी. उस वक्त देश अंग्रेजों की गुलामी से आजादी की आखिरी लड़ाई लड़ रहा था. गांधी जी के अगुवाई में लोग संघर्ष कर रहे थे. उसी दौर में डॉ. सीवी रमण जैसे दिग्गज वैज्ञानिक के नेतृत्व में होमी जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई नए भारत की तस्वीर बना रहे थे. देश की आजादी के बाद साल 1962 में जब चीन ने हमला किया तो संसाधनों के अभाव में हमारी सेना हार गई. उस वक्त हजारों की संख्या में हमारे जवान मारे गए. इसे देखकर डॉ. भाभा ने एटम बम बनाने का प्रस्ताव न्यूक्लियर कमेटी के सामने पेश किया, लेकिन साराभाई इसका विरोध करने लगे. क्योंकि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने एटम बम की विभीषिका को देखा था. उस वक्त नागासाकी और हिरोशिमा में लाखों लोग मारे गए थे. इस वजह से वो इस घातक हथियार के पक्ष में नहीं थे.

एटम बम के मुद्दे पर भाभा और साराभाई के बीच मतभेद हो जाता है. दोनों का राहें अलग हो जाती हैं. यहीं से कहानी फ्लैश में जाती है. जब दूसरे विश्व युद्ध के बाद डॉ. भाभा और साराभाई विदेश छोड़कर हिंदुस्तान में रहने लगते हैं. इस दौरान कैम्‍ब्र‍ि‍ज में रिसर्चर रहे डॉ. भाभा ने सीवी रमन के इंडियन इं‍स्‍ट‍िट्यूट ऑफ साइंस जॉइन किया था. वो इसके बाद टाटा इंस्‍ट‍िट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में फिजिक्‍स के प्रोफेसर बने और फिर मुंबई में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की शुरुआत की थी. वहीं इंडियन इं‍स्‍ट‍िट्यूट ऑफ साइंस में साराभाई भी उनके साथ रहे, लेकिन जब दोनों की राहें अलग हुईं, तो वो बंगलुरू से चले आए. बाद में उन्होंने अहमदाबाद में फिजिकल रिसर्च लेबोरेट्री और इंडियन इंस्‍ट‍िट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की स्‍थापना में योगदान दिया. साराभाई को फिजिक्‍स और ऐस्‍ट्रोनॉमी में महारत हासिल थी. उन्होंने अपने देश को अंतरिक्ष विज्ञान में पुरोधा बनाया, जिसका सपना उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान देखा था, जिसे पूरा करने के लिए वो जरूरत पड़ने पर डॉ. भाभा से भिड़ गए थे.

इस वेब सीरीज में हिंदुस्तान के विज्ञान की विकास यात्रा को बहुत सलीके से पेश किया गया. इसमें इन दो महान वैज्ञानिकों के सपने भी हैं, तो उनकी निजी जिंदगी की दिलचस्प कहानी भी है. इसमें देश की राजनीतिक हालत भी बयां की गई है, तो आजादी हासिल करने की प्रक्रिया के दौरान किए गए संघर्ष को भी दिखाया गया है. इस शो में डॉ. होमी भाभा के रोल में जिम सरभ, विक्रम साराभाई के रोल में इश्वाक सिंह, मृणालिनी साराभाई के रोल में रेजिना कैसेंड्रा, जवाहर लाल नेहरू के रोल में रजित कपूर, एपीजे अब्दुल कलाम के रोल में अर्जुन राधाकृष्णन नजर आ रहे हैं. सभी कलाकारों ने कमाल का काम किया है. जिम सरभ और इश्वाक सिंह ने अपने किरदार को इस तरह से जिया है, जैसे कि वो किरदार नहीं वास्तविक जिंदगी जी रहे हैं. अहमदाबाद के एक उद्योगपति के बेटे साराभाई की पत्नी मृणालिनी स्वामीनाथन के किरदार में रेजिना कैसेंड्रा भी खूब जंचती हैं. तमिल फिल्मों में अभिनय करने वाली रेजिना ने एक भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना के किरदार को बूखबी निभाया है.

परवाना ईरानी उर्फ ​​पिप्सी की भूमिका अभिनेत्री सबा आज़ाद निभा रही हैं, जो एक वकील हैं और होमी से प्यार करती हैं. वह एक पारसी लड़की के रूप में प्यारी लगती हैं, जो हमेशा होमी का समर्थन करती है. दो महान वैज्ञानिकों की इस कहानी में दोनों महिलाओं की भूमिका छोटी तो है, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण छाप छोड़ती है. इसके साथ ही जवाहरलाल नेहरू के किरदार में रजित कपूर, एपीजे अब्दुल कलाम के किरदार में अर्जुन राधाकृष्णन, डॉ. रजा मेंहदी के रोल में दिब्येंदु भट्टाचार्य, रिपोर्टर प्रोसेनजीत डे के रोल में नमित दास, केसी विश्वेश माथुर के रोल में शंकर ने अच्छा काम किया है. चूंकि इस वेब सीरीज में 1940 से लेकर 1963 तक के भारत की कहानी पेश की गई है, इसलिए इसका छायाकंन महत्वपूर्ण हो जाता है. ऐसे में सिनेमैटोग्राफर हर्षवीर ओबेरॉय ने अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई है. इस सीरीज का लुक डिजाइन करने में शोमा गोस्वामी, कॉस्ट्यूम डिजाइनर उमा बिजू, बिजू एंटनी, प्रोडक्शन डिजाइनर मेघना गांधी और कास्टिंग डायरेक्टर कविश सिन्हा का योगदान बहुत अहम है. कुल मिलाकर, यह एक बेहतरीन वेब सीरीज है. इसे जरूर देखना चाहिए, लेकिन यदि आपको अंग्रेजी कम समझ आती है, तो बोर हो जाएंगे.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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