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Updated: 01 अगस्त, 2022 11:40 AM
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धार्मिक रूप से तो सही है मगर भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान सांस्कृतिक आधार पर भी खुद को अरब जगत के ही केंद्र में देखते हैं. धार्मिक रीति रिवाजों को छोड़ दिया जाए तो खानपान, रहन सहन और पहनावे को लेकर भी भारतीय मुसलामानों का जबरदस्ती का आग्रह अरब को फॉलो करना ही नजर आता है. यहां तक कि फतवा आदि के जरिए दबाव भी डाला जाता है. हाल के कई फतवे गिनाए जा सकते हैं जिसमें इस्लाम का हवाला देकर धर्मगुरुओं ने भारतीय रहन सहन, खानपान और पहनावे को अधार्मिक करार दिया और अरब संस्कृति का अनुसरण करने को कहा. भारतीय मुसलमानों में अरब देशों की अहमियत बहुत अलग है. मानों अरब उनके पूर्वजों का ही देश हो.

हाल के दिनों में नुपुर शर्मा विवाद में दिखा भी जब अरब के तमाम देशों की संपन्नता का तर्क रखते हुए भारतीय मुसलमानों ने भारत का ही मजाक उड़ाया और बताया कि अरब देशों से कितना पिछड़ा हुआ है. खैर, गलत संदर्भ में ही सही लेकिन बॉलीवुड फिल्मों के दिग्गज और बेबाक कलाकार नसीरुद्दीन शाह की बीवी और मशहूर एक्टर रत्ना पाठक शाह ने एक बयान में स्वीकार किया कि मानवीय लिहाज से सउदी अरब असल में एक बर्बाद मुल्क है. खासकर वैयक्तिक आजादी और महिलाओं की स्वतंत्रता के मामलों में अरब नरक ही है. हालांकि रत्ना पाठक की स्थापना से हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं जरूर आहत हुई होंगी.

रत्ना ने क्यों कहा- लग रहा भारत सऊदी अरब बनने की राह पर है?

असल में रत्ना पाठक ने पिंकविला को दिए एक इंटरव्यू में करवा चौथ का व्रत करने वाली भारतीय महिलाओं को पागल करार दे दिया. जब उनसे पूछा गया कि क्या वे पति (नसीरुद्दीन शाह) की लंबी उम्र के लिए करवा चौत का व्रत रखेंगी, करवा चौथ को अंधविश्वास और रुढ़िवादी बताते हुए उनका जवाब था- मैं पागल हूं क्या जो ऐसे व्रत करूंगी? उन्होंने कहा- "आश्चर्य है कि आज के दौर में पढ़ी लिखी महिलाएं भी पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. भारत में विधवा होना भी भयावह स्थिति है, महिलाएं इसी डर से करवा चौथ का व्रत करती हैं."

ratna pathak shahरत्ना पाठक शाह और नसीरुद्दीन.

उन्होंने कहा- "दुनिया के किसी भी रुढ़िवादी समाज को देख लीजिए, (कुरीतियों से) महिलाएं सबसे पहले प्रभावित होती हैं. सऊदी अरब को ही देख लीजिए. क्या हम सऊदी अरब बनना चाहते हैं." जाहिर सी बात है कि करवा चौथ पर रत्ना पाठक शाह की टिप्पणी लोगों को ज्यादा पसंद नहीं आई होगी. खासकर तब जब हाल के कुछ महीनों में उनके पति के बयान धार्मिक रूप से एक पक्षीय नजर आए और बहुसंख्यकों की भावनाएं आहत होती दिखीं. किसी भी धर्म और उसकी परंपराओं में विश्वास करना लोगों का निजी मसला है. बड़ा सवाल है कि लोग अगर अपने भरोसे में सहज हैं और उससे किसी दूसरे का नुकसान नहीं हो रहा तो किसी रत्ना पाठक शाह को आपत्ति क्यों है?

सोशल मीडिया पर रत्ना पाठक की टिप्पणी के खिलाफ लोगों का गुस्सा नजर आ रहा है. लोग आरोप लगा रहे कि बॉलीवुड के सितारों की फितरत हो गई है कि बहुसख्यकों के धर्म और त्योहारों को किसी ना किसी बहाने ओछा बताने की. हर त्योहार में कोई ना कोई एक कुतर्क गढ़कर उसे ना करने करने की अपील की जाती है. होली पर लोगों को स्किन की फ़िक्र होने लगती है, दीपावली पर पर्यावरण की, मकर संक्रांति पर पक्षियों की. लेकिन यह फ़िक्र एकतरफा है. इन सितारों की चिंता दूसरे धर्मों के त्योहारों/परंपराओं और रूढ़ीवाद को लेकर नहीं दिखती.

भारतीय महिलाओं के बुरका पहनने को लेकर कब राय जाहिर करेंगी रत्ना पाठक शाह?

सोशल मीडिया पर लोगों ने यहां तक लिखा कि रत्ना पाठक शाह ने भारत के सउदी बनते जाने की चिंता जताई है तो लगे हाथ उन्हें यह भी बताना चाहिए कि "बुरका" पहनने से महिलाएं भला किस तरह आत्मानिर्भर, सशक्त और प्रगतिशील हो जाती हैं. सउदी अरब जब इतना बर्बाद मुल्क है तो उसका अन्धानुकरण क्यों? कुछ लोगों ने रत्ना के बयान की तीखी निंदा करते हुए कहा कि बहुत सी महिलाएं करवा चौथ का व्रत नहीं करती. हिंदुओं में किसी व्रत त्योहार को मानने ना मानने को लेकर दबाव नहीं डाला जाता. जिसे नहीं पसंद नहीं करता. मगर निजी पसंद के आधार पर अन्य लोगों की भावनाओं का मजाक उड़ाना जायज नहीं है. वह भी तब जब दूसरे धर्म की रुढियों को लेकर आपकी तरफ से बयान ना आते हों. इससे तो यही पता चलता है कि आप किसी धर्म को लेकर घृणा से भरी हुई हैं.

करवा चौथ की खिलाफत करने की वजह से रत्ना पाठक शाह आलोचनाओं के केंद्र में हैं. वैसे जहां तक इस त्योहार के लोकप्रियता की बात है इसे पंजाब केंद्रित बॉलीवुड की फिल्मों और टीवी सीरियल्स ने खूब लोकप्रिय बनाया है. 20-30 साल पहले करवा चौथ को लेकर इवेंट जैसा माहौल नजर नहीं आता था- मगर पिछले दो दशकों में इस त्योहार ने बहुत व्यापक जगह बनाई है. पढ़ी-लिखी  और नौकरी पेशा महिलाएं भी वर्त करती हैं. यह त्यौहार सुहागन महिलाओं के लिए है जो पति की सलामती के लिए इसे मनाना पसंद करती हैं. वैसे कई पति भी अपनी पत्नियों के लिए करवा चौथ का व्रत रखते नजर आते हैं.

करवा चौथ विवाद में रत्ना पाठक के बयान से एक बात साबित हुई कि इस्लाम के नाम पर बार बार अरब का उदाहरण देने वाले लोगों को समझ लेना चाहिए कि तमाम मामलों में आज भी वहां कोई आदर्श व्यवस्था नजर नहीं आती बल्कि आदिम व्यवस्था का ही बोलबाला है. और महिलाओं को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है. अरब के देशों में धर्म के नाम पर महिलाओं पर तमाम तरह की बंदिशें थोपी गई हैं. पुरुषों के साथ उनकी बराबरी की बता छोड़ दीजिए- तमाम मौलिक अधिकारों में भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं दिया गया है. हालांकि भारत का संविधान और क़ानून इस लिहाज से अलग है. धर्म चाहे जो व्याख्या करे मगर कानूनी तौर पर देश में महिला और पुरुषों को बराबरी पर ही देखा जाता है.

रत्ना पाठक शाह जी भारत और सउदी अरब में जमीन असामन का अंतर है.

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