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Updated: 11 अगस्त, 2022 01:27 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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इस बार का रक्षा बंधन का त्योहार हिंदी सिनेमा के नजरिए से बहुत खास है. इस दिन बॉलीवुड की दो बड़ी फिल्में एक साथ सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. पहली अक्षय कुमार की फिल्म 'रक्षा बंधन' और दूसरी आमिर खान की फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा'. इन दोनों ही फिल्मों से बॉलीवुड को बहुत उम्मीदे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि ये फिल्में बॉलीवुड के सूखे को खत्म कर सकती हैं. वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है कि दोनों फिल्मों के बॉक्स ऑफिस क्लैश की वजह से नुकसान हो सकता है. खैर रक्षा बंधन जैसे त्योहार पर 'रक्षा बंधन' जैसी फिल्म की चर्चा पहले होना तो लाजमी है.

वैसे भी लंबे समय बाद भाई-बहन के इस अहम त्योहार पर आधारित कोई फिल्म रिलीज हो रही है. वरना बदलते वक्त के साथ हिंदी सिनेमा से रक्षा बंधन तो लगभग गायब सा ही हो गया है. एक वक्त था जब हर दूसरी-तीसरी फिल्म में या तो रक्षा बंधन का गाना होता था, या फिर भाई-बहन के रिश्ते की गहराई को दिखाया जाता था. कोई भी हिंदी फिल्म भाई-बहन के रिश्तों को दिखाए बिना पूरी नहीं मानी जाती थी. लेकिन जैसे-जैसे फिल्मों की कहानियां बदली हैं, वैसे-वैसे फिल्म मेकर्स की प्राथमिकताएं भी बदल गई हैं. इसकी परिणति आज के दौर के फिल्मों में दिख रही है.

650x400_080922090432.jpgभाई-बहन के इस खास त्योहार पर अक्षय कुमार की फिल्म रक्षा बंधन रिलीज हो रही है.

दरअसल, आज के दौर के सिनेमा में काल के हिसाब से कथ्य बदल गया है. बॉलीवुड में हर तरह की कहानियों का एक-एक दौर चला है. कभी देशभक्ति का स्वर प्रधान रहा है, तो कभी पारिवारिक एकजुटता का. कभी रोमांस हॉवी रहा है, तो कभी कॉमेडी और एक्शन. अब भव्य सिनेमा का नया दौर शुरू हुआ है. इसमें पौराणिक कहानियों को आधुनिक अंदाज में पेश करने का चलन तेजी से बढ़ा है. साल 2015 में रिलीज हुई एसएस राजामौली की फिल्म 'बाहुबली' ने सिनेमा के इस नए दौर को शुरू किया. इसके बाद 'केजीएफ', 'आरआरआर' और 'पुष्पा: द राइज' जैसी फिल्मों ने इस चलन का आगे बढ़ाया है.

भव्य सिनेमा दिखाने के होड़ में फिल्म के मेकर्स परिवार, समाज और संस्कृति से जुड़े विषयों को हासिए पर रख चले हैं. वरना ऐसा नहीं है कि आज हमने रक्षा बंधन का त्योहार मानना बंद कर दिया है. भाई-बहन के रिश्तों को समर्पित ये त्योहार आज भी उसी अंदाज में मनाया जाता है. लेकिन कमी इस बात की खटकती है कि अब कोई रुपहले पर्दे पर इस रिश्ते के बारे में सुरीले गीतों के जरिए याद नहीं करता. आज के समय में 90 के दशक से पहले के फिल्मों में फिल्माए और दिखाए गए रक्षा बंधन के गाने ही लोगों की भावनाभिव्यक्ति करते हैं. इन गानों के जरिए त्योहार को सेलिब्रेट किया जाता है.

याद कीजिए साल 1959 में रिलीज हुई फिल्म 'छोटी बहन' का गाना ''भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना, भैया मेरे छोटी बहन को ना भुलाना, देखो यह नाता निभाना, निभाना''...ये गाना उस दौर के समाज की स्थिति को दर्शाता है, जब महिलाएं पुरुषों के सहारे और संरक्षण में रहा करती थी. शैलेंद्र के लिखे इस गीत को स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी. इसके बाद साल 1974 में रिलीज हुई फिल्म 'रेशम की डोरी' के गाने ''बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है, प्यार के दो तार से संसार बांधा है'' को लोगों ने खूब पसंद किया था. ये गाना आज भी हर रक्षा बंधन पर लोगों के घरों में सुना जा सकता है.

समय के साथ सिनेमा के विषय बदलते रहे. केवल रक्षा बंधन पर आधारित फिल्म बनाने की बजाए फेकर्स ने अलग-अलग विषयों पर फिल्म बनाना शुरू किया, लेकिन उसमें एक कहानी भाई-बहन की जरूर रखी. उदाहरण के लिए सत्यजीत रे की फिल्म 'पाथेर पंचाली' ग्रामीण भारत में स्थित समस्याओं पर आधारित है, लेकिन इसमें भाई-बहन के संबंधों को भी दिखाया गया है. राज कपूर की फिल्म 'बूट पॉलिश' समाज के वंचित तबके के सशक्तीकरण पर केंद्रित थी, लेकिन बेबी नाज़ और नरेंद्र रूपानी के रूप में भाई-बहन अपनी गरिमा के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस तरह सिनेमा का विषय भले बदला लेकिन भाई-बहन की सत्ता कायम रही है.

अंत में साल 1962 में रिलीज हुई फिल्म 'राखी' के एक गाने की कुछ पंक्तिया पेश-ए-नज़र हैं...

बंधा हुवा एक एक धागे में

भाई बहन का प्यार

राखी धागों का त्यौहार

कितना कोमल कितना सुन्दर

भाई बहिन का नाता

इस नाते को याद दिलाने

यह त्योहार है आता

बहन के मन की आशाएं हैं

राखी के ये तार

राखी धागों का त्योहार

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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