New

होम -> सिनेमा

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 20 जुलाई, 2022 01:08 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

''बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है; हवाओं रागिनी गाओ, मेरा महबूब आया है''...चाहे शादी विवाह हो या फिर प्रेमी जोड़े का मिलन, अक्सर इस गाने को गाते या गुनगुनाते हुए सुना जाता है. साल 1966 में रिलीज हुई फिल्म 'सूरज' का ये गाना मो. रफी ने गाया था. इसे उस जमाने के मशहूर अभिनेता राजेंद्र कुमार पर फिल्माया गया था. 60 का दशक उनकी जिंदगी का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है. इस वक्त उनकी एक-दो नहीं बल्कि छह फिल्में एक साथ सिनेमाघरों में 25 हफ्ते तक चली थीं. इसी के बाद उनको लोग 'जुबली कुमार' या 'जुबली हीरो' के नाम से पुकारने लगे. इतना ही नहीं ट्रैजिडी फिल्मों में बेहतरीन अदाकारी के चलते उन्हें दूसरा दिलीप कुमार भी कहा जाने लगा. राज कपूर और सुनील दत्त जैसे फिल्म इंडस्ट्री के कई दिग्गज उनके दोस्त बन गए. लेकिन कहते हैं ना कि वक्त हमेशा एक जैसा नहीं होता. राजेंद्र कुमार के करियर का आखिरी समय दुखदाई रहा था.

rajendra-kumar-650_071922113049.jpgबॉलीवुड अभिनेता राजेंद्र कुमार ने अपने 40 के लंबे करियर में 80 से ज्यादा फिल्में की हैं.

''इज्ज़ते, शोहरते, चाहतें, उल्फतें; कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं; आज मैं हूं जहां, कल कोई और था; ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था''...राजेंद्र कुमार की जब आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी, उस वक्त उनका बंगला खरीदने वाले अपने जमाने के सदाबहार अभिनेता राजेश खन्न अक्सर इन पंक्तियों को दोहराया करते थे. वो भी उस वक्त जब उनकी हालत भी करियर के उत्तरार्ध राजेंद्र कुमार जैसी हो गई थी. इन पंक्तियों से समझा जा सकता है कि हर किसी का एक दौर होता है. उस दौर के चले जाने के बाद हर व्यक्ति को सामान्य तरीके से ही अपना जीवन यापन करना होता है. ये बात जो समझ जाता है, उसकी बची हुई जिंदगी आसानी से कट जाती है, जो नहीं समझ पाता है, वो डिप्रेशन का शिकार होता है. कई बार तो कुछ लोग खुदकुशी तक कर लेते हैं. फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई सितारे हुए हैं, जिन्होंने अपने स्टारडम के जाने के बाद अपनी जिंदगी खत्म कर ली थी.

खैर, राजेंद्र कुमार अपने जमाने में अपनी अलहदा अदाकारी की वजह से सबके प्रिय थे. उनकी फिल्मों का लोग इंतजार किया करते थे. उन्होंने अपने करियर की शुरूआत साल 1949 में रिलीज हुई फिल्म 'पतंग' के साथ की थी. इस फिल्म में उनका किरदार बहुत छोटा था. साल 1950 में आई फिल्म 'जोगन' में उनको दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिला, लेकिन इसमें भी उनका रोल छोटा था. साल 1950 से 1957 तक राजेंद्र कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे. छह साल बाद साल 1955 में रिलीज हुई फिल्म 'वचन' में उन्होंने अहम किरदार मिला. इसके बाद साल 1957 में आई फिल्म 'मदर इंडिया' में छोटे से रोल के बावजूद उन्हें पसंद किया गया. साल 1959 में आई फिल्म 'गूंज उठी शहनाई' बतौर लीड एक्टर राजेंद्र कुमार की पहली हिट साबित हुई थी. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. सफलता की सीढ़ियां लगातार चढ़ते गए.

इसके बाद उन्होंने 'धूल का फूल' (1959), 'मेरे महबूब' (1963), 'आई मिलन की बेला' (1964), 'संगम' (1964), 'आरजू' (1965), 'सूरज' (1966) जैसी फिल्मों में काम किया. इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर बेहतरीन प्रदर्शन किया था. इस वक्त राजेंद्र कुमार का सितारा बुलंदियों पर था. लेकिन यही वो वक्त है, जब एक नया सितारा मायानगरी के आसमान में छाने के लिए व्याकुल हो रहा था. राजेंद्र कुमार इस बात की भनक तक नहीं थी कि वो सितारा फिल्म इंडस्ट्री में उनकी जगह ही नहीं एक दिन उनका बंगला भी खरीद लेगा. जी हां, हम बात कर रहे हैं, सदाबहार अभिनेता राजेश खन्ना के बारे में, जो राजेंद्र कुमार के हमराशी होने के साथ ही आने वाले वक्त में हमराह भी बनने वाले थे. राजेश के उदय के साथ-साथ राजेंद्र का अस्त होने लगा. 70 के दशक तक आते-आते उनका सितारा गर्दिश में चला गया. कई फिल्में प्रोड्यूस करने की वजह से उनकी आर्थिक हालत खराब होती चली गई.

राजेंद्र कुमार को अपनी माली हालत सुधारने के लिए अपना बंगला बेचने तक की नौबत आ गई. उन्होंने इस बंगले को साल 1960 में खरीदा था, जो कि मुंबई के बांद्रा के कार्टर रोड पर समुद्र किनारे स्थित था. इसको खरीदने के लिए उनको 60 हजार रुपए की जरूरत थी, लेकिन उस वक्त उनके पास पैसा नहीं था. ऐसे वक्त में बी.आर चोपड़ा ने उनको तीन फिल्मों की फीस एडवांस में दे दी थी. उन्हीं पैसों से उन्होंने अपने सपनों का आशियाना खरीदा था. लेकिन जब उस बंग्ले को बेचने की बात सामने आई तो राजेश खन्ना ने उसे खरीदने की ख्वाहिश जाहिर कर दी. उनको पता था कि ये लकी बंगला है. इसे लेने के बाद जैसे राजेंद्र कुमार की किस्मत खुली, वैसे उनकी किस्मत भी खुल सकती है. इस बंग्ले को खरीदने के बाद राजेश खन्ना ने उसका नाम डिंपल से बदलकर 'आशीर्वाद' रख दिया. बंगला सच में लकी साबित हुआ. यहां शिफ्ट होने के बाद उन्होंने लगातार 15 हिट फिल्में दी थीं.

लेकिन ऊपर लिखा है ना, ''कोई भी चीज़ दुनिया में रहती नहीं; आज मैं हूं जहां, कल कोई और था''...राजेश खन्ना के साथ भी वही हुआ है. 18 जुलाई 2012 को उनके निधन के बाद इसे बेच दिया गया. 90 करोड़ रुपए में बिजनेसमैन शशि किरण शेट्टी ने इस बंग्ले को खरीदने के बाद तुड़वा दिया. उन्होंने वहां बहुमंजिला इमारत बनवाई है. इधर, राजेंद्र कुमार ने अपने बेटे कुमार गौरव को साल 1981 में फिल्म लव स्टोरी के जरिए लॉन्च कर दिया. ये फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई. इसके बाद साल 1986 में उन्होंने फिल्म नाम बनाई. इसमें कुमार गौरव के साथ संजय दत्त भी अहम रोल में थे. इस फिल्म ने भी बॉक्स ऑफिस पर बेहतरीन प्रदर्शन किया था. इसके बाद अंदाज और वंश जैसे कुछ टीवी सीरियल में भी उन्होंने काम किया था. 20 जुलाई, 1927 में पाकिस्तान में पैदा हुए राजेंद्र कुमार का 12 जुलाई, 1999 को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने की वजह से निधन हो गया.

#राजेन्द्र कुमार, #राजेश खन्ना, #सुनील दत्त, Actor Rajendra Kumar, Rajendra Kumar Birth Anniversary, Unknow Life Facts Of Rajendra Kumar

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय