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Updated: 20 नवम्बर, 2022 10:19 PM
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साहित्य आजतक 2022. इंडिया टुडे ग्रुप का विशेष कार्यक्रम दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में आयोजित हुआ. इसमें देश की तमाम बड़ी हस्तियों ने शिरकत करके साहित्य, समाज, सिनेमा और संस्कृति पर विस्तृत चर्चा की है. इसी दौरान एक सेशन में सेंसर बोर्ड के चेयरपर्सन प्रसून जोशी भी आए. उनसे फिल्मों, गीतों और सिनेमा की स्थिति पर बातचीत हुई. इस दौरान आजतक के सलाहकार संपादक सुधीर चौधरी ने उनसे पूछा कि आजकल बॉलीवुड की फिल्में क्यों नहीं चल रही हैं? क्या अचानक से कमी आ गई है? क्या क्रिएटिवटी की धारा सूख गई है? आखिर बॉलीवुड बायकॉट की वजह क्या है? इस पर गीतकार प्रसून जोशी ने बहुत बेबाकी से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की दुर्दशा और बॉलीवुड बायकॉट की वजहों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि फिल्म इंडस्ट्री अपनी जड़ों से दूर हो चुकी है. अपने को एक बबल में सीमित कर लिया है, जिसकी वजह से आम आदमी से दूरी बढ़ गई है.

प्रसून जोशी ने कहा, 'बॉलीवुड को आत्ममंथन की आवश्यक्ता है. मैंने पहले भी कहा है कि शुरुआत में जब फिल्में बनना शुरू हुई थी, तब उनके पास एडवांटेज था. उनको बहुत अथेंटिक स्टोरी मिल रही थीं. लेकिन सवाल ये कि वो कहां से आ रही थी? तो वो या तो साहित्य से आ रही थीं, प्रेमचंद जैसे लोगों की कहानियां थीं, शरतचंद चट्टोपाध्याय और रबिन्द्रनाथ टैगोर जैसे लोगों की लिखी कहानियां थीं या फिर मैथोलॉजिकल स्टोरी थीं. कहीं न कहीं हमारी संस्कृति से, हमारी जड़ों से जुड़ी कहानियां आपके सामने रॉ मैटेरियल के रूप में मौजूद थीं. लेकिन जैसे जैसे समय बीतता चला गया हिंदी फिल्म इंडस्ट्री आत्म श्लाघा का शिकार हो गई. इस तरह से एक बबल में सीमित हो गई. जब तक आप जड़ों से नहीं जुड़ेंगे तब आपकी कहानियाों पर सत्य परीलक्षित नहीं होगी, जो आम आदमी से जुड़ी हुई हैं. फिल्मों वो लोग बना रहे हैं, जो खुद अपने जड़ों से जुड़े नहीं है.'

650x400_112022063336.jpgबॉलीवुड के मशहूर गीतकार प्रसून जोशी सीबीएफसी के चेयरपर्सन भी हैं.

उन्होंने आगे कहा, ''जैसे कि मुंबई में बैठा एक फिल्मकार किसान को अपनी फिल्मों में दिखाता है, जबकि उसने अपनी जिंदगी में कभी किसान देखा भी नहीं है. ऐसे में वो क्या करेगा, ये समझा जा सकता है. इसी वजह से बॉलीवुड अपनी जड़ों से कट गया. जड़ों से कटे पेड़ नहीं होते, वो गुब्बारे होते हैं, हवा भरकर फूलकर कुप्पा, पर यथार्थ की पिन और रबड़ चिथड़ा-चिथड़ा. पेड़ होने के लिए बीज का होना जरूरी है. उर्वर धरती आवश्यक है. वर्षा आवश्यक है. गुब्बारे हवाओं से तितर-बितर हो जाते हैं. पेड़ साधना है. गुबारे कामना. पेड़ों को ठहरना होता है. धागे से उंगली में बंधकर रहना नहीं आता है. बॉलीवुड को जीवित जड़ों के साथ उगना होगा. उन्हें समझना होगा कि उनकी जीवित जड़ें कहां हैं? मैं मानता हूं कि बॉलीवुड में अच्छी सोच वाले लोग भी हैं. जब वो साथ में बैठेंगे तो कोई ना कोई समाधान जरूर निकालेगा. विक्टिम माइंडसेट से बाहर निकलना होगा.''

बॉलीवुड के एक निश्चित माइंडसेट पर प्रकाश डालते हुए प्रसून ने कहा, ''पहले कुछ लोगों के हाथ में माइक था. आज कोई भी व्यक्ति कुछ भी कह सकता है. आपको लगता है कि कोई मेरे खिलाफ कुछ कर रहा है. ऐसा नहीं है. सोच बदलने की जरूरत है. इस युग में आलोचना और विरोधाभास को समझना और उससे सीखकर आगे बढ़ना जरूरी है. हमारे पास प्रतिभाओं की कमी नहीं है. हमें एक माइंडसेट से निकलने की जरूर है. मुझे लगता है कि वो प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और हम आगे उज्ज्वल भविष्य देखेंगे. फिल्म रिलीज से पहले बायकॉट बॉलीवुड शुरू हो जाता है. ऐसे में कई सितारे विक्टिम कार्ड खेलने लगते हैं. इस ट्रेंड को कैसे देखते हैं. इस प्रसून जोशी ने कहा, 'एक स्वाभिवक प्रक्रिया होती है, विचार आपस में टकराते हैं. अगर वो सहजता से हो रहा है तो विचार मंथन के लिए वो जरूरी भी है. हर तरह के विचार सामने और हम विवेक से निर्णय ले पाएं कि हमको कहां जाना है.''

बॉलीवुड के क्रेडिबिलिटी के सवाल पर उन्होंने कहा, ''देखिए फिल्मों का रोल बहुत फर्क था. फिल्म देखने के लिए पहले शुक्रवार का लोग इंतजार करते थे. लोगों के पास ऑप्शन बहुत कम था. पहले मां फोन करती थी कि घर जल्दी आ जा छोले बने हैं. लोग उत्साह से घर जाकर खाने का आनंद लेते थे, लेकिन आज क्या घर जाने से पहले लोग इतने स्नैक्स खा चुके होते हैं कि बदहजमी का शिकार हो जाते हैं. यही हाल आज एंटरटेनमेंट के साथ हो रहा है. पहले की तरह फिल्म आज भी शुक्रवार को ही आ रही है, लेकिन उसे देखने वाला पहले से ही भरे पेट है. इसलिए उसे फिल्म देखने के दौरान जरा भी खराब लगी तो वो सिनेमाघर से बाहर आ जाता था. आज चीजें बहुत ज्यादा बदल चुकी हैं.'' इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रसून जोशी की हर बात में दम है. बॉलीवुड को कन्नड फिल्म इंडस्ट्री से सीख लेते हुए फिल्म निर्माण से ब्रेक लेकर आत्ममंथन करने की जरूरत है.

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