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Updated: 17 मई, 2021 08:42 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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बात 70 के दशक की है. बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन तब अपने फिल्मी करियर के लिए संघर्ष कर रहे थे. उनकी लंबाई और भारी आवाज की वजह से ज्यादातर निर्माता-निर्देशक उनको अपनी फिल्मों में लेना पसंद नहीं करते थे. यहां तक कि करियर के शुरूआत में ही करीब 10 फिल्में फ्लॉप हो चुकी थीं. इनमें फिल्म 'सात हिंदुस्तानी', 'परवाना', 'रेशमा', 'शेरा', 'प्यार की कहानी', 'बंसी-बिरजू', 'एक नजर', 'संजोग', 'रास्ते का पत्थर', 'गहरी चाल' और 'बंधे हाथ' शामिल थी. सिर्फ दो ही फिल्मों 'बॉम्बे टू गोवा' और 'आनंद' में उनको थोड़ी सफलता मिली थी. फिल्म इंडस्ट्री में अमिताभ बच्चन को 'अपशकुनी' हीरो माना जाने लगा. इससे निराश होकर वो मुंबई से इलाहाबाद वापस आने की योजना बनाने लगे, तभी उनकी जिंदगी में एक निर्देशक का प्रवेश हुआ, जिसने बिगबी को 'बॉलीवुड का बादशाह' बना दिया.

जी हां, हम बात कर रहे हैं, हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर निर्माता और निर्देशक प्रकाश मेहरा की, जिनकी आज पुण्यतिथि है. उनको बॉलीवुड में मसाला और मनोरंजक फिल्में बनाने के लिए जाना जाता था. कहा जाता है कि वो कभी डायलॉग या स्क्रिप्ट लेकर फिल्म के सेट पर नहीं जाते थे. सब कुछ उनके दिमाग़ में होता था. वो हर कलाकार को मनमुताबिक काम करने की पूरी छूट देते थे. यही वजह है कि उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अक्सर सफल हुआ करती थी. उन्होंने 'जंजीर', 'मुक़द्दर का सिकंदर', 'लावारिस' और 'शराबी' जैसी मशहूर और कामयाब फिल्में बनाईं, जिनकी वजह से अमिताभ बच्चन अपनी 'मुकद्दर' के 'सिकंदर' बन पाए. साल 1973 में 'जंजीर' प्रकाश मेहरा होम प्रोडक्शन में बनने वाली पहली फिल्म थी. लेकिन इस तरह की फिल्म बनाना आसान नहीं था. उस वक्त बॉलीवुड में रोमांटिक फिल्मों का दौर था.

untitled-12-650_051721055352.jpgबॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन और दिग्गज निर्माता-निर्देशक प्रकाश मेहरा की दिलचस्प दास्तान.

सुपरस्टार राजेश खन्ना जैसे चॉकलेटी हीरो का हिंदी सिनेमा में दबदबा था. आलम ये था कि फिल्म के हीरो को महिलाएं खून से लिखे पत्र भेजती थी. यहां तक कि कई दीवानी महिलाओं ने उनकी तस्वीरों से शादी तक कर ली थी. ऐसे समय में मनमौजी और सनकी पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका उस समय के कई प्रमुख अभिनेताओं को पसंद नहीं आई. प्रकाश मेहरा ने धर्मेंद्र, राजकुमार से लेकर देव आनंद तक, कई बड़े अभिनेताओं को अप्रोच किया, लेकिन सभी ने इस फिल्म को रिजेक्ट कर दिया. इस फिल्म की एक्ट्रेस मुमताज़ ने भी अपनी शादी की बात कहकर, इससे किनारा कर लिया. मेहरा निराश हो गए, ऐसा लगा कि फिल्म जंजीर अब कभी नहीं बनने वाली है. उसी वक्त पटकथा लेखक सलीम खान और जावेद अख्तर ने उनको अमिताभ बच्चन का नाम सुझाया. उनको 'बॉम्बे टू गोवा' में बिगबी की एक्टिंग अच्छी लगी थी.

अमिताभ बच्चन को साइन करने पर हुई आलोचना

प्रकाश मेहरा ने अमिताभ बच्चन को फिल्म जंजीर के लिए साइन कर लिया, लेकिन इसके लिए उनकी खूब आलोचना हुई. क्योंकि उसी साल 1973 में अमिताभ और मुमताज की फिल्म 'बंधे हाथ' फ्लॉप हुई थी. तब लोगों ने कहा कि 'जंजीर' का सफल होना नामुमकिन है. उधर, अमिताभ बच्चन खुद भी 'बंधे हाथ' की असफलता के बाद बहुत परेशान थे. उन्होंने प्रकाश मेहरा ये यहां तक कहा था कि यदि जंजीर भी फ्लॉप हो गई तो वे अपने गृह नगर इलाहाबाद वापस चले जाएंगे. खैर, हीरो की तलाश पूरी होने के बाद मेहरा हीरोइन की तलाश में लगे, जो जया भादुड़ी के रुप में पूरी हो गई. फिल्म बनने के बाद इसे कोई डिस्ट्रीब्यूटर लेने को तैयार नहीं हो रहा था. बकौल मेहरा, 'वे मुझपर हंसते थे और कहते थे यह लंबा बेवकूफ हीरो कौन है?' इस पर अमिताभ बच्चन रोते थे. आखिर किसी तरह फिल्म जंजीर रिलीज की गई.

बॉलीवुड में ऐसे हुआ 'एंग्री यंग मैन' का अवतार

फिल्म का प्रदर्शन कोलकाता में तो अच्छा था, लेकिन मुंबई में शुरूआती चार दिन अच्छे नहीं थे. प्रकाश मेहरा को लगा कि फिल्म फ्लॉप हो जाएगी. इसका अमिताभ बच्चन पर इतना बुरा प्रभाव पड़ा कि उन्हें बुखार आ गया. लेकिन चार दिन बाद जब दूसरे सप्ताह की बुकिंग शुरू हुई, सिनेमाघरों के सामने लोगों की लंबी कतार लग गई. 5 रुपए का टिकट 100 रुपए में ब्लैक किया जाने लगा. अमिताभ ने जब इस बारे में सुना तो उनका बुखार बढ़कर 104 डिग्री हो गया. उन्हें यकीन नहीं हुआ था कि वे अब स्टार बन चुके थे. फिल्म जंजीर ने मेहरा और बच्चन दोनों को बचा लिया, क्योंकि दोनों अपना सबकुछ दांव पर लगा चुके थे. इसके बाद अमिताभ ने लंबे समय तक पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक के बाद एक उनकी फिल्में हिट होती गईं. इस तरह बॉलीवुड में 'एंग्री यंग मैन' के रूप में अमिताभ बच्चन का दूसरा जन्म हुआ था.

प्रोडक्शन कंट्रोलर से फिल्मी करियर की शुरूआत

प्रकाश मेहरा का जन्म 13 जुलाई, 1939 उत्तर प्रदेश के बिजनौर में हुआ था. दिल्ली में उनके चाचा-चाची रहा करते थे. इसलिए घरवालों ने बचपन में ही पढ़ाई के लिए पुरानी दिल्ली भेज दिया. यहां चांदनी चौक की गलियों में खेलते हुए उनका बचपन बीता. लेकिन शुरू से ही उनके मन में मुंबई जाकर फिल्मों के लिए काम करने की इच्छा थी. इसलिए पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई चले आए. इंडस्टी में बतौर प्रोडक्शन कंट्रोलर अपने काम की शुरूआत की. 'उजाला' (1959) और 'प्रोफेसर' (1962) जैसी फिल्मों में उन्होंने प्रोडक्शन कंट्रोलर का काम किया था. साल 1968 में फ़िल्म 'हसीना मान जाएगी' का पहली बार निर्देशन किया, जिसमें अभिनेता शशि कपूर ने डबल रोल किया था. इसके बाद साल 1971 में उन्होंने फिल्म 'मेला' का निर्देशन किया. इसमें फिरोज खान और संजय खान मुख्य भूमिका में थे.

फिल्म 'जादूगर' से शुरू हुआ असफलता का दौर

साल 1973 में फिल्म 'जंजीर' के सुपरहिट होने के बाद उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म 'हेराफेरी', 'खून पसीना', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस', 'नमक हलाल' और 'शराबी' बनाई, जो सुपर हिट रही थीं. इन दोनों की आखिरी फिल्म 'जादूगर' थीं, जो फ्लॉप थी. इसके बाद फिल्म 'जिंदगी एक जुआ' बनाई, जिसमें अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित थे, लेकिन यह फिल्म भी फ्लॉप रही. साल 1996 में उन्होंने दिग्गज अभिनेता राजकुमार के बेटे पुरू राजकुमार को फिल्म ब्रह्मचारी के जरिए लॉन्च किया, लेकिन यह फिल्म भी असफल रही. यह उनके निर्देशन की आखिरी फिल्म थी. इंडिया मोशन पिक्चर्स डायरेक्टर्स एसोसिएशन ने साल 2006 में उनको लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया था. 17 मई 2009 को निमोनिया की वजह से उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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