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Updated: 25 मार्च, 2022 05:46 PM
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निर्देशक अच्छी से अच्छी फिल्म बनाता है लेकिन फिल्म की पहचान एक्टर्स की वजह से होती है. किसी निर्देशक के नाम पर फ़िल्में बिकने का उदाहरण भारतीय सिनेमा में खोजना दुर्लभ किस्म का मामला है. याद नहीं आता कि पॉपुलर धारा में दर्शकों ने कब निर्देशकों की वजह से सिनेमा का खरीदा हो. अगर दर्शकों से कहा जाए- पसंदीदा फिल्मों की लिस्ट बनाइए और उसके निर्देशकों का नाम भी दर्ज करिए. इसमें कोई शक नहीं कि लोग शायद ही एक दो निर्देशकों के नाम से आगे बढ़ पाए. जबकि पसंदीदा फिल्मों और उनके एक्टर्स का नाम बताने को कहा जाए तो बहुतायत आमदर्शक सक्षम मिलेंगे. सच्चाई है कि पॉपुलर धारा में फ़िल्में एक्टर्स के चेहरे से बेची जा रही हैं.

लेकिन पीरियड ड्रामा आरआरआर बनाने वाले एसएस राजमौली चुनिंदा निर्देशकों में से हैं जो इसे चुनौती देते नजर आते हैं. राजमौली को सही अर्थों में सबसे बड़े शोमैन कहा जा सकता है. जनता का निर्देशक. ऐसा निर्देशक जो फ़िल्मी परदे पर नजर तो नहीं आता लेकिन उनके काम ने उन्हें एक्टर्स से कहीं ज्यादा बड़ी पहचान दी है. लोग उनकी फिल्मों का इंतज़ार करते हैं. उनके नाम से टिकट खरीदते हैं. उनका नाम पैसा वसूल मनोरंजन की गारंटी है.

इस वक्त आरआरआर की रिलीज में इसे महसूस करना मुश्किल नहीं. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तो बतौर निर्देशक उनका कद कितना बड़ा है, सिनेमाघरों के बाहर लगी उनकी कटआउट्स से समझा जा सकता है. उत्तर के लिए भी राजमौली सेलिब्रिटी और जाने पहचाने चेहरा हैं. दक्षिण भारतीय एक्टर्स से कहीं कहीं ज्यादा और बड़ा चेहरा.

rrrआरआरआर में जूनियर एनटीआर साथ में राजमौली का कटआउट.

ट्रू शोमैन तो राजमौली ही हैं इस वक्त

भारतीय सिनेमा में फिलहाल कोई एक निर्देशक ऐसा नजर नहीं आता जिसके नाम से फ़िल्में प्रमोट की जाती हों. कम से कम इतना बड़ा नामा तो नहीं ही दिखता कि उसके चेहरे का इस्तेमाल फिल्म बेचने के लिए किया जा रहा हो. फिलहाल शोमैन के रूप में बॉलीवुड से संजय लीला भंसाली और राजकुमार हीरानी के रूप में दो नाम जरूर लिए जा सकते हैं. लेकिन सच्चाई को खारिज करना मुश्किल है कि आम दर्शकों के बीच इन दो चेहरों को फिल्म प्रमोट के लिए इस्तेमाल किया गया हो. या इनके नाम पर ही दर्शकों ने टिकट खरीद ली हो. इससे पहले राजकपूर और हृषिकेश मुखर्जी लीजेंड शोमैन के रूप में नजर आते हैं. उनका सिनेमा उनके नाम की वजह से जाना जाता है.

राजकपूर अभिनेता भी थे तो यह अंतर करना मुश्किल है कि उनका स्टारडम बतौर एक्टर था या निर्देशक. जहां तक हृषिकेश मुखर्जी की बात है- उनकी आधा दर्जन फ़िल्में साबित करती हैं कि उनके सिनेमा में 'स्टारपावर' जैसी चीजों का बहुत महत्व ही नहीं रहा. उन्होंने बावर्ची में जया भादुड़ी के लव इंटरेस्ट के रूप में एक ऐसे एक्टर को कास्ट किया जिसका नाम शायद ही लोगों को पता हो. आनंद और बावर्ची दो ऐसी फ़िल्में हैं जिसमें मुख्य हीरो राजेश खन्ना के लिए 'लव इंटरेस्ट' की जरूरत ही नहीं महसूस हुई.

साउथ में मणिरत्नम जरूर ऐसे निर्देशक हैं जिनकी छवि बहुत बड़ी है और फ़िल्में उनके नाम से पहचानी जाती हैं. बावजूद उनका भी कटआउट कभी प्रमोशन के लिए इस्तेमाल होता नहीं दिखा जैसा कि राजमौली का दिख रहा है. राजमौली की सितारों जैसी हैसियत बैक टू बैक मनोरंजक फ़िल्में देने की वजह से बनी है. 21 साल पहले निर्देशक के रूप में 'स्टूडेंट नंबर 1' के साथ शुरुआत करने वाले राजमौली ने अबतक 12 फ़िल्में बनाई हैं. आरआरआर भी शामिल हैं. यह अपने आप में रिकॉर्ड है कि राजमौली की कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप ही नहीं हुई है.

राजमौली की अलग मनोरंजक फिल्मों ने बनाया उन्हें बिकाऊ चेहरा

राजमौली के फिल्मों की खासियत परंपरा, भावुकता और भव्यता है. अपनी कहानियों में हमेशा वे इन्हीं चीजों का ख्याल रखते हैं और दर्शकों को सिनेमाई जादू में जकड लेते हैं. उनका सिनेमा भीड़ में अलग नजर आता है. राजमौली ने 21 साल के करियर में रोमांस, कॉमेडी, ड्रामा, पीरियड और एक्शन लगभग हर तरह की फ़िल्में बनाई हैं. उनकी चार फिल्मों मगधीरा, एगा (मक्खी), बाहुबली और बाहुबली 2 ने तो छप्परफाड़ कमाई की.

बाहुबली 2 की कमाई भारतीय सिनेमा में अब तक मील का पत्थर है. निश्चित ही बाहुबली के दोनों हिस्सों ने उन्हें ऐसी हैसियत दी है जिसका सपना हर निर्देशक देखता तो है मगर हासिल नहीं कर पाता. कहना नहीं कि रिलीज के बाद हमेशा उनकी अगली फिल्म का दर्शक इंतज़ार करने लगते हैं. बाहुबली 2 साल 2017 में आई थी और अब कहीं जाकर आरआरआर रिलीज हो रही है.

सोशल मीडिया पर आरआरआर की रिलीज से जुड़े सोशल ट्रेंड देखें तो जिस तरह जूनियर एनटीआर और रामचरण के कटआउट्स सिनेमाघरों के बाहर नजर आते हैं उसी तरह राजमौली के भी बड़े-बड़े कटआउट लगे हैं. फूलों-नोटों के हार चढ़ाए जा रहे हैं. टिकट के लिए मारामारी है. लोग भोर के 3 बजे का टिकट पाकर भी खुश हैं और सही समय पर फिल्म देखने के लिए पूरी रात जागते हुए बैठे हुए हैं. सिनेमाघरों में मंदिर जैसा दृश्य दिख रहा है. दर्शक फूल चढ़ा रहे और अगरबत्तियां जला रहे हैं. कटआउट्स के 'अभिषेक' की भी कुछ तस्वीरें दिख रही हैं.

दक्षिण में सिनेमा को लेकर जुनून है. हिंदी पट्टी में यह नजर नहीं आता और साउथ की तमाम गतिविधियों को जुनून या पागलपन की तरह देखा जाता है.

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