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Updated: 05 मई, 2023 08:15 PM
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अदब और नजाकत के शहर लखनऊ ने फिल्म इंडस्ट्री को कई नायाब फनकार दिए हैं. इनमें नौशाद अली का नाम सबसे अहम है. इनके बनाए गीत गंगा-जमुनी तहजीब की बेमिसाल धरोहर हैं. ''मोहब्बत की झूठी कहानी'', ''मेरे महबूब तूझे मेरी मोहब्बत'', ''दुनिया में हम आए हैं, तो जीना ही पड़ेगा'', ''नैन लड़ जई हैं'' और ''मोहे पनघट पे नंदलाल'' जैसे गानों को संगीत देने वाले नौशाद पहले फिल्म फेयर विजेता संगीतकार हैं. फिल्म 'मदर इंडिया' के संगीत के लिए उनका नाम ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था. इसी से उनकी प्रतिभा का अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके संगीत दिए गाने को गाकर कई गायक सुपरस्टार बन गए.

इन गायकों में मुकेश, मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, सुरैया और उमा देवी का नाम प्रमुख है. शकील बदायूंनी और मजरूह सुल्तानपुरी जैसे गीतकारों को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने का श्रेय भी नौशाद को ही जाता है. उनके जमाने के सभी गीतकार और गायक उनका बहुत सम्मान किया करते थे. हर नए गायक की चाहत होती थी कि उनके संगीत निर्देशन में बने गीत गाने का मौका मिल जाए. क्योंकि वो जानते थे कि उनके गानों से ही उन्हें मशहूर होने का मौका मिल सकता है. जिस पर उनकी विशेष कृपा होती, वो संगीत की दुनिया का सितारा बन जाता था. इस मुकाम तक पहुंचने के लिए नौशाद को बहुत मेहनत और संघर्ष करना पड़ा था.

650x400_050423082735.jpgबॉलीवुड के महान संगीतकार नौशाद की 5 मई को डेथ एनिवर्सरी है.

साल 1940 में नौशाद अली ने फिल्म 'प्रेम नगर' से अपने करियर की शुरुआत की थी. महज चार बाद ही वो सफलता के सोपान पर पहुंच गए. साल 1944 में फिल्म 'रतन' रिलीज हुई थी. इस फिल्म के गानों ने लोगों का मन मोह लिया था. उनके संगीत निर्देशन में जोहराबाई अंबालेवाली का गाया गाना ''अखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना'' आज भी लोगों के जुबान पर रहता है. इस फिल्म के संगीत को 35 सिल्वर जुबली, 12 गोल्डन जुबली और 3 डायमंड जुबली हिट्स मिले थे. उनको फिल्मों में क्लासिकल म्यूजिक को एक कुशल रूप देने के लिए जाना जाता है. जैसे फिल्म 'बैजू बावरा' के सभी गानों में सांस्कृतिक राग का संगीत दिया था.

साल 1952 में रिलीज हुई फिल्म 'बैजू बावरा' में संगीत के लिए नौशाद को बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था. नौशाद अपने गानों में अलग-अलग तरह के प्रयोग भी किया करते थे. आज के जमाने में आधुनिक तकनीक के सहारे जो प्रयोग किए जा रहे हैं, वो उनके द्वारा पहले ही किए जा चुके हैं. जैसे कि संगीत में साउंड इफेक्ट्स का इस्तेमाल, नए म्युजिकल इंस्ट्रूमेंट्स का इस्तेमाल और बड़ी संख्या में म्जुशियन को शामिल करना है. फिल्म 'मुगल-ए-आजम' के एक गीत 'ए मोहब्बत जिंदाबाद' में उन्होंने 100 लोगों से कोरस में आवाज दिलवाई थी. इस फिल्म के गाने की वजह से नौशाद का नाम ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुआ था.

नौशाद ने 'धर्म कांटा', 'पाकिजा', 'संघर्ष', 'साथी', 'आदमी', 'राम और श्याम', 'गंगा जमुना', 'कोहीनूर', 'बाबुल', 'संयासी', 'गीत' और 'नई दुनिया' जैसी फिल्मों में भी संगीत दिया था. उनकी आखिरी फिल्म 'ताज महल' है, जो साल 2005 में रिलीज हुई थी. उन्होंने कुछ फिल्में भी प्रोड्यूस की थी, जिनमें मालिक (1958), उड़न खटोला (1955) और बाबुल (1950) का नाम प्रमुख है. भारतीय सिनेमा में उनके अहम योगदान को देखते हुए साल 1981 में 'दादा साहेब फाल्के' सम्मान से नवाजा गया था. साल 1992 में भारत सरकार ने 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था. इसके अलावा लता मंगेशकर अवॉर्ड, अमीर खुशरो अवॉर्ड और अवध रत्न अवॉर्ड से भी उनको सम्मानित किया गया था.

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आइए उन पांच गानों के बारे में जानते हैं, जिनके जरिए नौशाद आज अमर हैं...

1. दुनिया में हम आए हैं, जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा...

फिल्म- मदर इंडिया

गायक- लता मंगेशकर, उषा मंगेशकर और मीना मंगेशकर

गीतकार- शकील बदायूंनी

2. प्यार किया तो डरना क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या...

फिल्म- मुगल-ए-आजम

गायक- लता मंगेशकर

गीतकार- शकील बदायूंनी

3. मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम...

फिल्म- मेरे महबूब

गायक- मो. रफी

गीतकार- शकील बदायूंनी

4. मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोये...

फिल्म- मुगल-ए-आजम

गायक- लता मंगेशकर

गीतकार- शकील बदायूंनी

5. अखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना...

फिल्म- रतन

गायक- जोहराबाई अंबालेवाली

गीतकार- डी एन मधोक

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